प्रवाल पिष्टी, रस सिंदूर, मुक्तापिष्टी, अभ्रक भस्म, - 40 -40 ग्राम . रौप्य (चांदी) भस्म, स्वर्ण भस्म - 20 -20 ग्राम . लौह भस्म, नाग भस्म और बंग भस्म- 30 -30 ग्राम. अम्बर 20 ग्राम. अन्य पदार्थ निर्माण विधि के अनुसार आवश्यक मात्रा में.
सभी भस्मों को अच्छी तरह मिला कर एक जान कर लें. फिर अडूसे के रस की भावना दें. इसके बाद हल्दी के काढ़े की भावना दें. इसी तरह गन्ने के रस , कमल के फूलों के रस की, मालती पुष्प के रस की, शतावरी के रस की, केले के खम्बे के रस की और अंत में चन्दन के क्वाथ की भावना अलग अलग दें. प्रत्येक भावना में तीन से छह घंटे तक घुटाई की जानी चाहिए. अंत की भावना के समय २० ग्राम अच्छी कस्तूरी मिला कर तीन घंटे तक घुटाई करें और एक एक रत्ती की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें.
वसंत कुसुमाकर रस की एक एक गोली सुबह शाम दूध, मलाई या मक्खन मिश्री के साथ सेवन करना सामान्य विधि है. अलग अलग बिमारियों में अलग अलग मात्रा में इसका सेवन किया जाता है.
वसंत कुसुनकर रस का उपयोग सम्पूर्ण शरीर को बल,स्फूर्ति और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए उत्तम है. इसका विशेष प्रभाव मस्तिष्क, ह्रदय, पाचन संसथान, फुफ्फुस, तंत्रिका तंत्र , जननेन्द्रिय अंडकोष एवं धातुओं पर पड़ता है यानी शरीर के सभी अंग प्रत्यंग इससे प्रभावित होकर पुष्ट और शक्तिशाली होते हैं. वसंत कुसुमाकर रस यौन दौर्बल्य , नपुंसकता, शीघ्रपतन, आदि पुरुष बिमारियों एवं पाए या पुराने श्वेत प्रदर, गर्भाशय की शिथिलता, वात वाहिनियों की शिथिलता, व् अतिसेहवास से उत्पन्न हुई शारीरिक शिथिलता आदि नारी रोगों को दूर करने वाला उत्तम पौष्टिक योग है. वृद्ध स्त्री-पुरुषों के लिए श्वास, कास, दौर्बल्य और जीर्ण विकारों को दूर करने के लिए यह वसंत कुसुमाकर रस बहुत गुणकारी है.