शरीर के स्वस्थ बने रहने में हमारे श्वसन तंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. दूषित और विषाक्त पर्यावरण वैसे ही हमारे स्वास्थ्य को ग्रस रहा है उस पर हमारा गलत आहार-विहार और सही जीवन शैली सम्बन्धी हमारी अज्ञानता इसमें इजाफा कर रहे हैं. Biovatica .Com इस लेख के माध्यम से श्वसन तंत्र को सशक्त और शरीर को स्वस्थ बनाने में आहार और उचित जीवन शैली की भूमिका पर प्रकाश डाल रहे हैं.
प्राकृतिक चिकित्सा की मान्यता के अनुसार हमारा शरीर तभी अस्वस्थ होता है जब शरीर में विषाक्त द्रव्य एकत्रित होने लगते हैं. शरीर को शुद्ध रखने वाले अंग जब अपनी क्षमता के अनुरूप कार्य नहीं कर पाते तब यह स्थिति उत्पन्न होती है. हमारा शरीर जीवित रहे और उसके सारे क्रिया-कलाप सुचारु ढंग से चलते रहें इसके लिए हमारे शरीर को निरंतर ऊर्जा व् शक्ति की आवश्यकता रहती है जिसकी आपूर्ति के लिए हमें नियमित रूप से भोजन, पानी व् श्वास (ऑक्सीजन) ग्रहण करते रहना होता है. अब नियमित रूप से शरीर द्वारा ग्रहण किये गए विभिन्न आहार से ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया से उत्पन्न पदार्थों के रूप में शरीर में निरंतर गंदगी भी एकत्रित होती रहती है. इतना ही नहीं शरीर में नियमित रूप से होने वाली टूट-फुट और चयापचय के कारण भी कई अनावश्यक तत्व शरीर में इकठ्ठा होने लग जाते हैं. शरीर से नियमित रूप से गंदगी का निष्कासन होता रहे इसके लिए शरीर के चार सफाई कर्मचारी नियमित रूप से काम करते रहते हैं. शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शरीर को गन्दगी से मुक्त रखना बहुत आवश्यक है और इसके लिए इन प्रमुख सफाई अंगों को शक्तिशाली व् कार्यक्षम बनाये रखना बहुत आवश्यक है ताकि वे अपनी पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य कर सकें और शरीर में गंदगी एकत्र ही न हो. मनुष्य शरीर के, सफाई करने वाले चार प्रमुख अंग हैं - १) त्वचा, २) मूत्र संस्थान, ३) मल संस्थान, ४) श्वसन संस्थान . इनमे से सबसे महत्वपूर्ण संस्थान - श्वसन संस्थान को सशक्त बनाने सम्बन्धी कुछ साधारण बिंदुओं पर इस आर्टिकल में विस्तृत विवरण दिया जा रहा है.
श्वसन तंत्र अर्थात फेफड़ों के कार्य, उनकी उपयोगिता और उनको सबल बनाने वाले आहार विहार और जीवन शैली साधारण दिखने वाले लेकिन प्रभावी और महत्वपूर्ण बिंदुओं पर हम सिलसिलेवार चर्चा करेंगे. अंत में शरीर में कफ वृद्धि होने पर किन बातों का ख्याल रखना चाहिए इस पर बात होगी. तो लीजिये, इस विषय पर बिंदुवार चर्चा शुरू करते हैं.
* शरीर का सर्वाधिक शक्तिशाली सफाई करने वाला अंग - फेफड़ा - मनुष्य शरीर से निष्कासित होने वाली गंदगी का ३% मल संस्थान के माध्यम से , ७ % स्वेदन संस्थान यानी पसीने के माध्यम से, १५% मूत्र संस्थान के माध्यम से और ७५% फेफड़ों के माध्यम से नियमित रूप से निष्कासन होता रहता है. सीने में दो फेफड़े होते हैं . इनमे से प्रत्येक का वज़न ६२५ ग्राम व् ५७५ ग्राम होता है. फेफड़ों की संरचना करीब ७०-८० वर्ग मीटर होती है जो की त्वचा की तुलना में ४० गुना अधिक होती है. यदि फेफड़ों को एक समान सतह पर बिछा दिया जाए तो करीब ७० वर्ग मीटर (७५० वर्ग फ़ीट ) स्थान को घेरता है यानी यदि फेफड़े अपनी पूर्ण क्षमता से कस्सरी करें तो इतना बड़ा क्षेत्र श्वास द्वारा ली गयी वायु के संपर्क में आता है. इससे हम फेफड़े के महत्व को जान सकते हैं की इसका क्षेत्रफल कितना अधिक होता है और क्या हम इसके सम्पूर्ण क्षेत्रफल का उपयोग कर पाते हैं? प्रायः यह देखा गया है की व्यक्ति फेफड़ों का सही प्रकार और सही विधि से न तो उपयोग करता है और न फेफड़ों को ऑक्सीजन ग्रहण करने के लिए आदर्श वातावरण ही प्रदान करता है. यही वजह है की वह हमेशा थका-थका, साइनस , सर्दी, दमा जैसे कई कफजनित रोगों से ग्रसित रहता है. इतना ही नहीं फेफड़ों की पूरी क्षमता का उपयोग न कर पाने की वजह से उसका पाचन भी प्रभावित होता है.
* मनुष्य अपने फेफड़ों की क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं करता - सामान्य अवस्था में मनुष्य अपने फेफड़ों की बहुत ही कम क्षमता का उपयोग करते है. प्रायः मनुष्य फेफड़ों की ३३ प्रतिशत कार्यक्षमता का ही प्रयोग अपने सामान्य जीवन में कर पाते हैं क्यूंकि उनकी जीवनशैली में व्यायाम, योग, टहलना या अन्य कोई शारीरिक गतिविधि शामिल नहीं होती है. इस पर जुल्म यह की प्रदूषित वातावरण के कारण उसे पर्याप्त ऑक्सीजन भी नहीं मिलता उल्टा विभिन्न विषाक्त गैस और रसायन उसके शरीर में पहुँचते रहते हैं. सामान्य श्वास-प्रश्वास के माध्यम से ५०० मिली वायु ग्रहण की जाती है जबकि फेफड़ों की कार्यक्षमता पुरुषों में ३.६ से ६.३ लीटर व् महिलाओं में २.५ से ४.७ लीटर होती है. इससे यह पता चलता है की फेफड़ों की कार्यक्षमता का कितना कम प्रतिशत मनुष्य उपयोग में लाता है.
ऑक्सीजन का हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. मनुष्य ऑक्सीजन के बिना जीवित नहीं रह सकता. इसीलिए श्वास द्वारा फेफड़ों में जाने वाली वायु को प्राणवायु कहते हैं. हमारी जीवन यात्रा के लिए पर्याप्त मात्रा में प्राणवायु की आवश्यकता रहती है और कम प्राणवायु से शरीर स्वस्थ कैसे रह सकता है. कहने का तात्पर्य ये है की जितना अधिक हम अपने फेफड़ों को दूषित वातावरण से बचा सकें और स्वस्थ शुद्ध वातावरण में अपने फेफड़ों को पर्याप्त ओक्सिजेन उपलब्ध करा सकें तो शरीर उतना ही स्वस्थ व् निरोगी रहेगा.
* ऑक्सीजन का चमत्कार - हम जब घर में रहते हैं तो थोड़े से भोजन को भी पचाने के लिए पाचक चूर्ण और दवा-गोलियों का सहारा लेना पड़ता है और वहीँ जब हम बाहर घूमने जाते हैं तो सामान्य की तुलना में अधिक आहार खाकर उसे बड़ी आसानी से पचा लेते हैं. पहाड़ी इलाकों के शुद्ध वातावरण में जीवन जीने वाले लोग दिन में चार चार बार खाना खाते हैं और वो भी बिना किसी औषधि के सहारे के पच जाता है. उक्त बातें शुद्ध वायु के महत्त्व को प्रतिपादित करने के लिए पर्याप्त हैं. और यही कारण है की जब हम बाहर जाते हैं तो अत्यधिक मात्रा में सेवन किये गए भोजन का भी आसानी से पाचन हो जाता है.
* हमें ऑक्सीजन की आवश्यकता क्यों होती है ? - अब इस बात पर विचार करना जरुरी हो जाता है की हमें शुद्ध वायु अर्थात ऑक्सीजन की आवश्यकता क्यों होती है? हमारे द्वारा भोजन में ग्रहण किये गए आहारीय द्रव्यों के पाचन का अंतिम पाचन कण ग्लूकोज़ होता है. यही ग्लूकोज़ रक्त के माध्यम से शरीर की कोशिकाओं तक पहुँचाया जाता है. श्वास के माध्यम से हम जो ऑक्सीजन लेते हैं वह भी रक्त के द्वारा प्रत्येक कोशिकाओं तक पहुँच कर ग्लूकोज़ का ज्वलन करती है. यदि किसी भाग में ग्लूकोज़ व् ऑक्सीजन न पहुंचे तो वहां की कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं. अर्थात शरीर के उस हिस्से की कोशिकाएं मर जाती हैं. इसलिए कई बार जब शरीर का अंग दबा हुआ या असक्रिय होता है तो शरीर के उस अंग में सुन्नता का अहसास होता है. इसलिए जब भी किसी अंग में सुन्नता का एहसास हो तो समझ लेना चाहिए की वहां ऑक्सीजन का संचार नहीं हो रहा है.
* ताज़ी वायु से कम समय में विश्राम - जब हम खुली छत के नीचे सोते हैं तो कम समय में ही नींद से संतुष्टि मिल जाती है क्यूंकि जब हम खुली छत के नीचे सोते हैं तो फेफड़ों को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध ऑक्सीजन की प्राप्ति नियमित रूप से होती रहती है. और शरीर कम समय में ही ताज़गी का अनुभव करने लगता है और थकान से मुक्त हो जाता है. वहीँ बंद कमरे में सोने पर देर तक सोने के बाद भी उठने की इच्छा नहीं होती और थकावट व् सुस्ती का एहसास होता है.उपरोक्त उदाहरण यह समझने के लिए पर्याप्त है की शरीर को ऊर्जा प्रदान करने में शुद्ध वायु का कितना महत्त्व है.
श्वसन को प्रायः हम श्वास लेना व् छोड़ना समझते हैं लेकिन श्वसन चार भाग में होता है :-
१) वायुमंडल से ऑक्सीजन को नासिका के माध्यम श्वास नाली से होते हुए फेफड़ों तक पहुँचाना तथा कार्बनडाइऑक्सइड को फेफड़ों के माध्यम से शरीर से बाहर निकालना.
२) फेफड़ों से ऑक्सीजन को रक्त में भेजना व् कार्बनडाइऑक्सइड को रक्त से लेकर वायुमंडल में छोड़ना.
३) फेफड़ों में शुद्ध हुए रक्त को ह्रदय की ओर ले जाना.
४) श्वसन प्रक्रिया पर नियंत्रण करना.
* कैसे बढ़ाएं अपने फेफड़ों की कार्यक्षमता - स्वस्थ शरीर की सबसे पहली आवश्यकता है की शरीर के फेफड़े स्वस्थ वातावरण में अपनी पूर्ण कार्य क्षमता से कार्य करें. फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ने के लिए श्वास की क्रियाएं व् प्राणायाम के अभ्यास बहुत ही लाभदायक होते हैं. श्वास की क्रियाएं व् प्राणायाम के नियमित अभ्यास से फेफड़ों की कार्यक्षमता में अपार वृद्धि होती है. इसके साथ ही प्राणायाम के अभ्यास से मन को भी शांत किया जा सकता है जिससे परोक्ष रूप से फेफड़ों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है. इन क्रियाओं और प्राणायाम को प्रातःकाल या सायं काल खाली पेट ही करना चाहिए.
* फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए वज़न नियंत्रित करें - फेफड़ों के श्रेष्ठ स्वास्थ्य के लिए संतुलित वज़न का होना बहुत आवश्यक होता है. पेट का अत्यधिक बढ़ा हुआ वज़न फेफड़ों व् ह्रदय की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल कर फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम करता है क्यूंकि इससे फेफड़ों पर दबाव पड़ता है. इसीलिए आज मोठे लोगों में स्लीप एप्निआ (sleep apnea ) नामक रोग की वृद्धि हो रही है. अर्थात शरीर के वज़न को आदर्श स्तर पर रखने से शरीर को ही नहीं बल्कि फेफड़ों को भी सुरक्षित स्वास्थ्य प्रदान किया जा सकता है.
*फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए मेग्नेशियम युक्त आहार का सेवन करें - फेफड़ों के श्रेष्ठ स्वास्थ्य के लिए मैग्नेसियम बहुत आवश्यक है. कफ जनित रोग होने पर आहार में मैग्नेसियम युक्त तत्वों का सेवन बढ़ने से लाभ होता है. मेग्नेशियम साबुत अनाज, हरी सब्ज़ियों विशेष तौर पर पालक, सूखे मेवे , खड़े मुंग, खड़े मोथ व् समस्त फलियों में पाया जाता है.
* क्षारीय आहार का सेवन करें - यदि फेफड़ों को स्वस्थ बनाना है तो आहार में क्षारीय तत्वों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करना चाहिए. ताज़े मौसमी फलों व् सब्ज़ियों में पर्याप्त मात्रा में क्षार होता है. खट्टे फल, हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, टमाटर, जामुन को अपने आहार में शामिल करना चाहिए. अंकुरित अनाज, ब्रोक्कोली, गाजर, सरसों की भाजी, मूली, कद्दू, अंजीर, तिल्ली, बादाम व् सेबफल का सेवन कफ जनित रोगों में लाभ देता है. प्रति सप्ताह ५ सेबफल का सेवन फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है. इसके साथ ही अनेक प्रकार के रंगों के फल व् सब्जियों का सेवन करना चाहिए ताकि शरीर को पर्याप्त मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व प्राप्त हो सके. इसके अतिरिक्त आहार में अंगूर का पर्याप्त सेवन करना चाहिए. इसी तरह स्वस्थ फेफड़ों की क्षमता के लिए किशमिश का सेवन अवश्य करना चाहिए. अलसी का सेवन करने से शरीर को ओमेगा ३ की प्राप्ति होती है तथा इसके सेवन से फेफड़ों को स्वस्थ रहने में मदद मिलती है. ओमेगा ३ की प्राप्ति अलसी के अलावा अखरोट का सेवन करने से भी होती है.
* नमक का सेवन कम करें - आहार में अत्यधिक नमक का सेवन शरीर में सूजन बढ़ने के साथ-साथ फेफड़ों को भी रोग का शिकार बनता है. नमक का सेवन शरीर का वज़न भी बढ़ता है.
* पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करें
* प्रदुषण से बचें - जो व्यक्ति सिगरेट का सेवन करते हैं और निरंतर वायु प्रदूषित पर्यावरण में रहते हैं उनके फेफड़ों की कार्यक्षमता में निरंतर कमी आती है. इसलिए सिगरेट के सेवन से बचना चाहिए तथा प्रदूषित वातावरण में जाने के पहले कपडे से नाक को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए.कफ व् कफ जनित रोगों से सुरक्षित रखने के लिए, ठंडी हवा से शरीर को सुरक्षित रखने के लिए नाक व् सिर को कपडे से ढक कर सुरक्षा प्रदान करना चाहिए.