"गंधक रसायन ६४ भावना" या "गंधक रसायन" एक ऐसा अद्भुत आयुर्वेदिक योग है जो अपनी विशिष्ट गुणवत्ता के कारण अनेक बिमारियों को नष्ट करने में उपयोग व् सफल सिद्ध होता है. विद्वान् और अनुभवी वैद्यों को यह योग बहुत प्रिय है. कुशल वैद्य इस योग को स्वयं ही बनाकर अपने रोगियों को देते हैं. गंधक रसायन योग बना बनाया आयुर्वेदिक दवा की दुकानों पर भी मिलता है.
गंधक रसायन के घटक द्रव्य (ingredients of gandhak rasayana ) - शुद्ध गंधक, गाय का दूध, चातुर्जात ( इलायची, तेजपात, नागकेशर, दालचीनी) , गिलोय, हरड़, बहेड़ा, आंवला , भांगरा और अदरक .
गंधक रसायन निर्माण विधि (gandhak rasayana preparation method ) - शुद्ध गंधक को गाय के दूध में फिर चातुर्जात, गिलोय के रस, हरड़ बहेड़ा, आंवला, इनका अलग अलग बनाया हुआ काढ़ा, भांगरे के रस और अदरक के रस की अलग-अलग आठ भावना देकर सुखा लें. फिर पीस कर महीन चूर्ण कर लें.
गंधक रसायन मात्रा और सेवन विधि ( gandhak rasayana quantity and dosage ) - यह चूर्ण २० ग्राम लेकर इसकी ८० पुड़िया बना लें पाव पाव ग्राम की. एक पुड़िया प्रतिदिन थोड़ी सी मिश्री मिलाकर , दूध के साथ लाभ न होने तक सेवन करना चाहिए.
गंधक रसायन के स्वास्थ्य लाभ (advantage and health benefits of gandhak rasayana ) - गंधक रसायन ६४ भावना एक ऐसा अद्भुत योग है की इसके सेवन से कई बीमारियां दूर हो जाती है. शरीर में शुक्र की वृद्धि होती है, शरीर में दृढ़ता आती है, पाचन शक्ति बलवान होती है. खुजली त्वचा रोग व् उग्र विष दोष दूर होता है. घोर अतिसार,ग्रहणी, रक्त और शूलयुक्त ग्रहणी , जीर्णज्वर, प्रमेह,वात रोग, उदर रोग, अंडकोष वृद्धि और सोमरोग जैसी बीमारियां गंधक रसायन से दूर होती है. दुबले पतले और कमज़ोर शरीर वाले लोगों के लिए यह एक वरदान है क्योंकि इसके सेवन से छह माह में शरीर के विकार दूर हो जाते हैं, शरीर की धातुएं शुद्ध होती हैं, पुष्ट होती हैं और शुक्र की वृद्धि होती है.यह योग वात पित्त कफ को सामान्य रखता है और यदि ये कुपित (बढे हुए ) हों तो इनका शमन करता है. गंधक रसायन वीर्य की वृद्धि करता है,पुष्टि करता है और इससे नपुंसकता दूर होती है और शरीर में यौन शक्ति की वृद्धि होती है. यह योग जीर्ण ज्वर, जीर्ण रोग, राजयक्ष्मा, प्रमेह,पाण्डु, क्षय, श्वास, अर्श आदि रोगों को जड़ से दूर कर शरीर को ओउनह स्वस्थ, सशक्त और बलवान बनाता है.
आयुर्वेद ने गंधक रसायन का गुणगान करते हुए इसे अनेक बिमारियों को नष्ट करने की क्षमता रखने वाला बताया है परंतु यह भी कहा है की इसको एक विशेष प्रकार की दोष-दृश्यों की संगती चाहिए. इस योग का विशेष कार्यक्षेत्र रक्त और त्वचा है. किसी भी प्रकार से दूषित हुए रक्त को पुनः स्वस्थ और शुद्ध बनाना इस योग का प्रमुख कार्य है. इसी प्रकार शरीर में संचित हुए विकारों और विकृत द्रव्यों का रूपांतर और भेदन करके शरीर को शुद्ध व् निरोग कर देना भी गंधक रसायन का एक प्रमुख कार्य है. रक्त में अशुद्धि होने पर शरीर की सप्त धातुओं में मलिनता व् विकृति आती है जिससे धातुओं का धर्म अर्थात आवश्यक तत्वों का संशोषण और रूपांतरण करके उनको आत्मसात करने का गुण काम हो जाता है. ऐसी स्थिति में रक्त को संशोदित कर धातुओं की स्वस्थ स्वाभाविक स्थिति स्थापित करना ज़रूरी होता है. यह कार्य गंधक रसायन अति उत्तम ढंग से करताहै. इस दृष्टि से यह योग उपदंश, सुजाक जैसे रोगों के विशिष्ट विष को दूर करने में बहुत उपयोगी सिद्ध होता