लौंग की सम्पूर्ण आयुर्वेदिक जानकारी (laung ayurveda uses in hindi , lavang )

लौंग के आयुर्वेदिक उपयोग, (Ayurveda uses of clove in hindi , laung , lavang ), लवंगादि वटी (lavangadi vati ), लवंगादि चूर्ण ( lavangadi churna )

लौंग की सम्पूर्ण आयुर्वेदिक जानकारी (laung ayurveda uses in hindi , lavang )

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लौंग (laung , lavang )
laung laung

लौंग और इलायची से सभी परिचित हैं क्यूंकि स्वागत सत्कार हेतु इन्हे पेश किया जाता है, पान के साथ खाया जाता है. यहाँ हम लौंग के गुण-प्रभाव तथा घरेलु इलाज सम्बन्धी कुछ प्रयोगों के साथ साथ आयुर्वेदिक योगों के निर्माण में इसके उपयोग सम्बन्धी विवरण भी प्रस्तुत कर रहे हैं.

लौंग का विभिन्न भाषाओँ में नाम (name of laung in different languages ) :-
संस्कृत(clove इन संस्कृत) - लवंग, देवकुसुम, श्रीपुष्प
हिंदी (clove in hindi ) - लौंग
मराठी(clove लौंग in marathi ) - लविंग
गुजराती(clove in gujarati ) - लविंग
बांग्ला(clove इन बांग्ला) - लवंग
तेलुगु (clove in telugu ) - कारावळु
तमिल(clove in tamil ) - किराम्बु, करम्बू
कन्नड़ ((clove in kannada)- लवंग
फ़ारसी - महक, मेखक
इंग्लिश(laung in english )- क्लोव (clove )
लैटिन - eugenia aromatica

लौंग के गुण (characteristics and qualities of laung, lavang , clove ) - लौंग कटु व् तिक्त रसवाली (चरपरी) , लघु (हलकी), नेत्रों के लिए हितकारी, शीतल, पाचक एवं रुचिकारक (भोजन को पचने एवं भूख बढ़ानेवाली) , विष तथा शिरोरोग नाशक, दर्द शामक, दमा, खांसी, हिचकी तथा पेट रोग में लाभदायक तथा दर्द को दूर करने वाली है.

लौंग के रासायनिक संघटक (chemical ingredients of clove ) - लौंग में आर्द्रता २५.२, प्रोटीन ५.२, वसा ८.९, रेशा ९.५, कार्बोहाइड्रेट ४६, खनिज द्रव्य ५.२ प्रतिशत होते हैं. इसके अतिरिक्त कैल्शियम , फास्फोरस, लौह, आयोडीन आदि खनिज द्रव्य तथा कैरोटीन , थायमिन, रिबोफ्लेविन आदि विटामिन्स भी अल्प मात्रा में पाए जाते हैं. लौंग के तेल में यूजीनाल एसिटेट तथा कॅरियफायनिल नामक रसायन होते हैं.

संस्कृत में लौंग को गुणवाचक नामों से सम्बोधित किया गया है जैसे - श्री प्रसून अर्थात सुन्दर फूल वाली, देवकुसुम अर्थात देवताओं का फूल, चन्दनपुष्पक अर्थात चन्दन के समान सुगन्धित फूल वाली आदि. लौंग के वृक्ष हमारे देश में दक्षिण के तटीय भाग तमिलनाडु व् केरल में लगाए जाते हैं. मलेशिआ, सिंगापूर, तंज़ानिया, श्रीलंका, फ्रांस, होलेंड, ब्रिटैन तथा मलक्का द्वीप में लौंग के वृक्ष होते हैं जहाँ से इसकी आपूर्ति होती है. तमिलनाडु व् केरल में जनवरी-फरवरी माह में लौंग की प्राप्ति होती है.

लौंग स्निग्ध व् तैलीय द्रव्य है. अच्छी लौंग वही है जिसे दबाने पर तेल निकलता है. दो प्रकार की लौंग बाज़ारों में मिलती है - एक तो काली , हलकी चमकदार, तीव्र सुगंध वाली ज्यों की त्यों होती है जबकि दूसरी हलके भूरे रंग की कम चमकदार व् शुष्क होती है जो की तेल निकालने के बाद की होती है. अधिकांशतः बाज़ारों में तेल निकली हुई लोंग ही प्राप्त होती है. बाज़ारों में लौंग का तेल भी बिकता है. यह तेल तीक्ष्ण गंध वाला तथा त्वचा पर लगने पर चिरमिराहट करता है.

लौंग गहरे बैंगनी काले रंग की स्निग्ध व् चमकीली होती है. यह लगभग १० से १२ मिली मीटर लम्बी नीचे से गोल बेलनाकार और ऊपर की ओर आमने-सामने चार वृत्त निकले हुए जिसके ऊपर की ओर गोल बंद ढंका हुआ पुष्पवृत्त होता है.लौंग को आमजन प्रचलित खाद्य मसाले के रूप में जानते हैं पर इसका औषधीय उपयोग भी होता है.

लौंग के आयुर्वेदिक उपयोग (Ayurveda uses of clove , laung , lavang )

लौंग का उपयोग, तिक्त व् कटु रसयुक्त होने से, कफ का शमन करने के लिए और शीतवीर्य होने से पित्त का शमन करने के लिए किया जाता है. इसके उपयोगी गुणधर्म के कारण इसे प्रसिद्द आयुर्वेदिक योगों , जैसे लवंगादि वटी (lavangadi vati ), लवंगादि चूर्ण (lavangadi churna ) , लवंगादि तेल (lavangadi oil ), अविपत्तिकर चूर्ण (avipatikar churna ) आदि में शामिल किया जाता है. लौंग की उपयोगिता को समझने के लिए इसके गुणधर्मों के बारे में थोड़ा विवरण देना ज़रूरी है. इसके कुछ गुणधर्मों के विषय में जानकारी निम्नलिखित है :-

--> पाचक (digestive qualities of clove, laung ) - लौंग के इस गुण से, मुख में लाला रस और आमाशय में पाचक रसों का स्त्राव होता है जिससे भूख बढ़ती है और पाचन शक्ति प्रबल होती है. दीपन और पाचन औषधि होने के साथ साथ ये चरपरी और सुगन्धित भी होती है जिससे खाद्य व्यंजनों में मसाले के रूप में प्रयोग की जाती है और भोजन में रूचि बढ़ने का काम करती है. उदरवात होने से पेट के अफारे में लौंग का फ़ॉन्ट पिलाया जाता है.

-->कीटाणुनाशक व् श्वेत रक्त कणिका वृद्धिकारक (bacteria killer and white blood corpuscles increaser ) - इस गुण के कारण यह मुख, आमाशय और आँतों में रह रही सूक्ष्म कृमियों को नष्ट करती है. यह रक्त की श्वेत कणिकाओं (white blood corpuscles ) की वृद्धि करती है जिससे शरीर में बाहर से प्रवेश करने वाले बैक्टीरिया का नाश होता है. लौंग के इसी गुणधर्म के कारण पुराने समय में ही महिलाओं में प्रसव के बाद लौंग का उबला हुआ पानी पिलाया जाता था तथा ज्वर का नाश करने वाली औषधियों में लौंग को मिलाया जाता है.

--> दर्द शामक ( pain reliever ) - शरीर में किसी भी स्थान पर, खासकर संधिस्थान व् मांसपेशियों में, रक्तवाहिनियों के संकोच होने से होने वाले दर्द में लौंग को पीसकर लेप या लौंग के तेल को अति अल्प मात्रा में अन्य किसी तेल के साथ मिलाकर हलके हाथ से मालिश करने से दर्द में आराम मिलता है.

--> दुर्गन्ध हर (mouth freshner ) - कफ, आम और लार आदि के कारण मुंह से आने वाली दुर्गन्ध को दूर करने के लिए लौंग खिलाई जाती है.

--> मूत्रल (clove , lavang in urination ) - लौंग गुर्दों (kidneys ) को उत्तेजित कर मूत्रोत्पत्ति में वृद्धि करती है तथा मूत्राशय से मूत्र नलिका मुख तक के मार्ग को शुद्ध करती है.

--> ज्वर (clove in fever ) - बुखार आने पर लौंग और चिरायता को समान मात्रा में पीस कर इसके आधा चम्मच चूर्ण को गरम पानी के साथ देने से ज्वर में लाभ होता है.

--> गर्भवती vaman (clove in pregnancy nausea ) - गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान उबके आते हैं या उल्टियां होती हैं. इसे रोकने के लिए ३-४ लौंग को पीस कर २ चम्मच मिश्री की चाशनी में मिलाकर चटाना चाहिए.

--> गठिया या जोड़ों का दर्द (cloves in joint pain ) - लौंग के तेल को सरसों के तेल में मिलाकर हलके हाथ से पीड़ा के स्थान पर मालिश करने से लाभ होता है. सिरदर्द में लौंग के तेल को घी के साथ मिलाकर मालिश करने से लाभ होता है अथवा लौंग को जल में पीसकर गरम कर कनपटियों पर लेप करने से सिरदर्द में लाभ होता है.

--> दांत दर्द (clove in dental pain ) - लौंग के तेल को दांत की कोचर या दर्द वाले स्थान पर रुई के छोटे से फाहे से टपका कर फाहे को वहां रखने से दांत दर्द दूर होता है.

--> श्वास की दुर्गन्ध (clove in bad breath ) - लौंग को मुंह में रखने से मुख और सांस की दुर्गन्ध मिट जाती है.

--> श्वास रोग, दमा (clove in asthma ) - ३ लौंग, एक आंकड़े का फूल व् चुटकी भर काला नमक मिलाकर चने बराबर गोली बनाकर मुंह में रख कर चूसने से दमे में आराम मिलता है.

--> नेत्र रोग (clove for eyes ) - ताम्बे के पात्र में लौंग को बारीक़ पीस लें और उसमे शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में काजल की तरह अंजन करने से आँखों के श्वेतपटल के रोगों में लाभ होता है.

--> ह्रदय की जलन - सीने में होने वाली जलन को दूर करने के लिए लौंग को ठन्डे पानी में पीस कर छान कर उसमे मिश्री मिलाकर पीना चाहिए.

--> खांसी (clove in coughing ) - लौंग को आग पर भून कर शहद में मिलाकर चाटने से तीखी खांसी में शीघ्र लाभ होता है.

--> अजीर्ण (clove in indigestion ) - लौंग और हरड़ को मिलाकर (१ ग्राम लौंग और ३ ग्राम हरड़) उबाल कर काढ़ा करें और इसमें थोड़ा सा सेंधा नमक डालकर पीने से अजीर्ण मिट जाता है और हल्का जुलाब होकर पेट साफ़ होता है.

--> जी मचलाना (clove in nausea ) - लौंग को मुंह में रख कर चूसने से मिचलाहट दूर होकर शांति मिलती है.

लौंग से बने कुछ आयुर्वेदिक घरेलु नुस्खे निम्नलिखित है (following are some ayurveda home remedies prepared with clove , lavang )

१) लौंग का फांट

२)लवंगादि वटी (lavangadi vati ) - लवंगादि वटी खांसी में बहुत उपयोगी होती है.

३) - लवंगादि चूर्ण ( lavangadi churna ) - लवंगादि चूर्ण खांसी ठीक करता है व् भूख बढ़ाता है.