आयुर्वेद और प्रेगनेंसी, प्रेगनेंसी टिप्स हिंदी में , Ayurveda and pregnancy, Ayurveda pregnancy tips in hindi

नवमास चिकित्सा (Navmas Chikitsa in hindi, Navmaas Chikitsa or Navmasa Chikitsa)

आयुर्वेद और प्रेगनेंसी, प्रेगनेंसी टिप्स हिंदी में , Ayurveda and pregnancy, Ayurveda pregnancy tips in hindi

नवमास चिकित्सा (Navmas Chikitsa in hindi, Navmaas Chikitsa or Navmasa Chikitsa)

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और प्रेगनेंसी, प्रेगनेंसी टिप्स हिंदी में , Ayurveda and pregnancy, Ayurveda pregnancy tips in hindi

 

आयुर्वेद और प्रेगनेंसी, प्रेगनेंसी टिप्स हिंदी में , Ayurveda and pregnancy, Ayurveda pregnancy tips in hindi

biovatica .com को ऐसी नवयुवतियों के इमेल्स प्राप्त होते रहते हैं जिनका शीघ्र ही विवाह होने वाला है इसलिए दाम्पत्य जीवन में गर्भधारण एवं गर्भकाल के आहार-विहार से सम्बंधित उपयोगी जानकारी प्राप्त करने के लिए इमेल्स भेज कर उन्होंने कुछ बातें पूछी हैं जिनके उत्तर में यह आर्टिकल प्रस्तुत किया जा रहा है.
किशोर अवस्था की लड़कियों एवं स्कूल कॉलेज की छात्राओं से प्राप्त होने वाले इमेल्स में मासिक धर्म के विषय में की गई पूछताछ का उत्तर हम एक seperate आर्टिकल में दे चुके हैं. इसके बाद अब युवा अवस्था वाली ऐसी युवतियों के प्रश्नों का उत्तर दिया जा रहा है जिसमे विवाह के बाद के जीवन के विषय में पूछताछ की गई है. ऐसे प्रश्नों के आधार पर हमने संक्षिप्त प्रश्न तैयार किये हैं जिनके उत्तर प्रस्तुत हैं.

Question - पहली बार गर्भवती होने पर क्या-क्या लक्षण प्रकट होते हैं जिन्हें देखकर ऐसी युवती यह समझे की वह गर्भवती हो गई है ?
Answer - इसका सबसे प्रमुख लक्षण तो होता है मासिक ऋतुस्त्राव का बंद होना. जो ऋतुस्त्राव २८ दिन में हुआ करता है वह यदि समय हो जाने पर भी न हो और ८-१० दिन बीत जाएँ तो यह गर्भवती होने की पहली सूचना मानी जाएगी, पहला लक्षण माना जायेगा. आजकल इसको टेस्ट करने के उपाय भी उपलब्ध हैं. गर्भवती चाहे तो स्वयं भी कर सकती है. १० दिन ऊपर चढ़ जाएँ तो 'यूरिन टेस्ट' करवाने से यह पता चल जाता है की गर्भ है या नहीं. इसे 'प्रेग-कलर' कहते हैं और यह जांच खुद भी की जा सकती है.

दूसरा लक्षण यह है की गर्भवती होने पर पहला मासिक धर्म न हो और ४-५ दिन चढ़ जाएँ तो सुबह जी मचलाना,उलटी जैसी उबकाइयां आना या उलटी होना शुरू हो जाता है. कइयों को ऐसा नहीं भी होता पर अधिकांश युवतियों को सुबह उठने पर ऐसा होता है जो २-३ माह तक या किसी-किसी को पूरे गर्भकाल तक होता रहता है. ऐसा होने पर चिंता नहीं करना चाहिए, घबराना नहीं चाहिए. कुछ युवतियों को इतनी ज़्यादा उल्टियां होती हैं की उन्हें ग्लूकोज़ की बोतल चढ़ाना पड़ती है. वे मुह से कुछ खा नहीं पाती क्योंकि कहते ही उलटी कर देती हैं तो उन्हें २ बोतल रोज़ चढ़ाना ज़रूरी हो जाता है. हालाँकि ऐसा किसी-किसी को ही होता है, पर ऐसा भी होता है. आमतौर पर सुबह early morning में या भारी मात्रा में भोजन करने पर ऐसे लक्षण प्रकट होना गर्भवती होने का दूसरा मुख्य लक्षण होता है. इसके साथ चक्कर से भी आते हैं. किसी किसी युवती को चिड़चिड़ापन या गुस्सा भी आता है ऐसा हार्मोन्स में घट-बढ़ होने से होता है.

इन लक्षणों के अलावा बार-बार पेशाब होना, भोजन से अरुचि होना, उदासीनता होना, मुंह का स्वाद फीका होना आदि लक्षण भी होते हैं. इनका अनुभव गर्भ धारण होने के बाद स्त्री को होता है. कुछ शारीरिक परिवर्तन भी होते हैं, जैसे स्तनों के अग्रभाग में जो गहरे लाल रंग का घेरा होता है वह काला होना शुरू हो जाता है.धीरे धीरे गर्भाशय बढ़ना शुरू हो जाता है. गर्भशाव ग्रीवा (cervix ) नरम हो जाती है जिसे लेडी डॉक्टर ही देख कर बता सकती है. स्तनों का परिवर्तन युवती स्वयं ही देख सकती है. एक दूसरा जो परिवर्तन वह स्वयं अनुभव कर सकती है वह है 'बेसल बॉडी टेम्परेचर' का थोड़ा बढ़ा हुआ रहना. शरीर के नार्मल टेम्परेचर से जरा ज़्यादा तापमान बना रहना गर्भ स्थित होने का सूचक होता है. जैसे ओवुलेशन पीरियड में टेम्परेचर एक डिग्री बढ़ जाता है, वैसे प्रेगनेंसी में बढ़ा हुआ ही रहता है. इससे युवती पक्के तौर पर जान सकती है की वो प्रेग्नेंट हो गयी है.

यह तो हुई प्रारंभिक स्थिति की बातें, अब पूरे गर्भकाल की चर्चा करने की लिए इस अवधि को तीन त्रेमासिक भागों में बांटना होगा. ३-३ माह की अवधि मान कर, प्रथम अवधि में जांच द्वारा शारीरिक स्थिति, स्वास्थ्य और प्रजनन अंगों की स्थिति की जानकारी प्राप्त कर लेना चाहिए ताकि आने वाले समय में किसी विपरीत स्थिति बनने की सम्भावना हो तो पहले से ही उसकी जानकारी हो जाये और उससे बचाव के उपाय किये जा सकें. इसके लिए किसी स्त्री रोग विशेषज्ञा लेडी डॉक्टर से संपर्क कर अपना केस रजिस्टर करवा लेना चाहिए.गर्भ स्थित होने की जानकारी होते ही यह कार्यवाही कर लेना चाहिए.
दूसरी त्रेमासिक अवधि चौथे माह से छटवे माह पूरे होने तक की होती है जिसमे जांच करके शारीरिक स्थिति , रक्त की स्थिति, वज़न, रक्तचाप और गर्भ में बच्चे की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है. तीसरी त्रेमासिक अवधि सातवें माह से प्रसव होने तक की होती है.

Question - गर्भ स्थित होते ही जो चक्कर आना, उलटी होना, जी मचलाना आदि उपद्रव होते हैं इनके लिए क्या घरेलु उपाय किये जा सकते हैं?
Answer - बहुत से घरेलु उपाय हैं जैसे लौंग, छोटी इलायची, दालचीनी - इन्हें बारीक़ पीस कर रख लें और थोड़ा सा शहद ले कर एक चुटकी भर चूर्ण मिला कर चाटें.एक उपाय और है की निम्बू बीच में से काट कर दो टुकड़े कर लें. दोनों टुकड़ों पर एक मिश्रण बना कर भर दें और चूस लें. मिश्रण इस प्रकार है - काला नमक १०० ग्राम और काला जीरा १० ग्राम, सेंधा नमक १०० ग्राम और काली मिर्च २५ ग्राम , इनको कूट पीस क्र मिला लें और शीशी में भर कर रख लें. यह हमेशा घर में रहना ही चाहिए. यह बहुत ही उपयोगी और बहुत गुणवाला मिश्रण है. अब निम्बू गरम करके इस मिश्रण में लगा-लगा कर चूसें तो उल्टियां, चक्कर आना, जी घबराना आदि सब उपद्रव दूर हो जायेंगे. अगर बहुत उल्टियां हो रही हों,डिहाइड्रेशन के लक्षण दिख रहे हों तो चार चम्मच शक्कर एक गिलास पानी में घोलकर एक पूरा निम्बू निचोड़ दें और एक चम्मच यही मिश्रण डाल कर घोल लें और पिला दें. यह घरेलु 'इलेक्ट्रोल पाउडर' है. यह सस्ता भी पड़ता है और बहुत गन करता है. यदि इतने उपाय करने पर भी आराम न हो तो लेडी डॉक्टर को दिखाना ज़रूरी हो जायेगा.

Question - प्रेगनेंसी के प्रारंभिक दिनों में युवती को कैसा आहार लेना चाहिए जो उसके शरीर को और गर्भ को बल-पुष्टि देने वाला हो?
Answer - शुरुआती प्रेगनेंसी की स्थिति में एक बार में ज़्यादा आहार न लेकर थोड़ी-थोड़ी देर से , थोड़ी-थोड़ी मात्रा में खाना चाहिए ताकि एकदम से पेट भारी न हो और उलटी न हो. फल ज्यादा खाएं क्योंकि फलों से ग्लूकोज़ मिलेगा जिसकी इस वक़्त मुख्य रूप से ज़रूरत होती है. इससे पेट की सफाई होती है जो ज़रूरी भी है वरना पेट व् आँतों के भारीपन का दबाव गर्भाशय पर पड़ता है. ज़रूरी नहीं की महेंगे फल खाए जाएँ. खा सकते हैं तो अच्छा है वार्ना आजकल तरबूज़, ख़रबूज़, आम, ककड़ी की बहार है , इन्हें खाना चाहिए. तरबूज़, ख़रबूज़ में सेल्यूलोस होता है जो साड़ी आँतों की सफाई कर देता है. मौसमी फल ज़रूर खाना चाहिए. कच्ची सब्ज़ियां खाना चाहिए जैसे गाजर, मूली, टमाटर, पत्ता गोभी, चुकंदर आदि. लाल टमाटर, लाल तरबूज़, लाल गाजर जैसे लाल फल खून बढ़ने वाले होते है इसलिए इन्हें अवश्य खाना चाहिए. रात को सोते समय दूध ज़रूर पीना चाहिए क्योंकि दूध एक सम्पूर्ण आहार है जिससे शरीर में प्रोटीन,कैल्शियम आदि पौष्टिक तत्वों की पूर्ति होती है. प्रतिदिन एक लीटर दूध तो सेवन करना ही चाहिए. भोजन सादा, सुपाच्य और सात्विक होना चाहिए.

Question - प्रेगनेंसी के कुछ मामलों में गर्भपात हो जाते हैं , इससे बचने के क्या उपाय हैं?
Answer - प्रेगनेंसी के कुछ केसों में गर्भपात का कारण या तो गर्भवती का रहन-सहन होता है या शारीरिक स्थिति में कोई दोष होना होता है.रहन सहन में गर्भवती स्त्री को भरी वज़न उठाना,झटके से पेअर रखना या शरीर को कोई तेज़ झटका लग्न आदि से बचना चाहिए. सीढ़ियों पर चढ़ने या उतरने में झांकता नहीं लगना चाहिए. प्रथम तीन माह और अंतिम तीन माह में उन्मुक्त पति-सहवास नहीं करना चाहिए.अब रही शारीरिक स्थिति की बात तो इसके लिए लेडी डॉक्टर से संपर्क करना जरुरी होता है ताकि उचित उपाय करके गर्भपात की स्थिति को टाला जा सके. इसमें हीमोग्लोबिन, यूरिन टेस्ट, ब्लड ग्रुपिंग, ब्लड प्रेशर, किडनी आदि कई तरह की जांच हर माह चेकअप करके की जाती है.

Question - प्रेगनेंसी के प्रथम तीन माह और अंतिम तीन माह के दिनों में उन्मुक्त रूप से पति-सहवास नहीं करना नाव विवाहित दंपत्ति के लिए आज का माहौल को देखते हुए बड़ा मुश्किल होगा. कितने पीरियड के लिए पाबन्दी करना अनिवार्य है?
Answer - प्रेगनेंसी के पहले तीन माह के लिए बिलकुल बंद ही रखें क्योंकि गर्भ में बच्चे की बुनियाद ही इन महीनों में बनती है मज़बूत होती है और शरीर के पूरे अंग तैयार होते हैं. इस अवधि में सहवास करने से इस प्रक्रिया में बाधा पड़ती है. इसी तरह अंतिम तीन महीनों में भी सहवास बिलकुल नहीं करें क्योंकि उन दिनों में बच्चे का शरीर पूरा विकसित हो जाने से गर्भ का आकर और भार बहुत बढ़ चुका होता है. वैसी स्थिति में सहवास करना आनंददायक नहीं बल्कि गर्भवती के लिए न सिर्फ असुविधा और पीड़ाकारक ही होता है बल्कि कभी-कभी गर्भपात होने की स्थिति भी बन जाती है. सिर्फ मध्य के तीन महीनों में थोड़ी छूट दी जा सकती है वह भी इस शर्त पर की गर्भवती को कोई कष्ट न हो.

Question - प्रेगनेंसी के मध्यकाल के तीन महीनों के लिए कुछ टिप्स दीजिये?
Answer - प्रेगनेंसी के मध्यकाल की इस अवधि में उलटी होना, जी मचलाना आदि शिकायत जारी रह सकती है. वैसे अधिकाँश स्त्रियों की यह शिकायत इस वक़्त तक ख़त्म हो चुकी होती है. यदि शिकायत हो तो वही उपाय करना चाहिए जो अभी बताये गए हैं. इस अवधि में गर्भाशय का आकर बढ़ जाता है और फिर बढ़ता ही रहता है. इन दिनों में बार बार पेशाब हो तो चिंता नहीं करना चाहिए. ऐसा होना स्वाभाविक होता है. इन दिनों में पानी काफी मात्रा में पीना चाहिए. घबराना नहीं चाहिए. इस अवधि में स्तन भरी हो जाते हैं और भारीपन धीरे धीरे बढ़ता जाता है. यदि गर्भाशय का आकर ठीक से न बढ़ रहा हो तो 'सोनोग्राफी' करके इसके कारण का पता लगाया जा सकता है. २० से २४ सप्ताह के बीच गर्भस्थ शिशु हिलनाडुलना शुरू कर देता है. गर्भवती इस हलन-चलन या पेट में कुछ घूमता हुआ सा अनुभव करके घबरा जाती है, पर डरने की कोई ज़रूरत नहीं. ३२ सप्ताह तक बच्चा ऊपर नीचे उल्टा सीधा घूमता रहता है इसके बाद स्थिर स्थिति में आ जाता है.
तो मध्यकाल के तीन महीनों में अपने खानपान का पूरा ध्यान रखते हुए, प्रसन्नचित रहना चाहिए. अच्छे-अच्छे विचार करना चाहिए हल्का फुल्का शारीरिक श्रम करते रहना चाहिए ताकि शरीर चुस्त-दुरुस्त और शक्तिशाली बना रहे वार्ना प्रसव के समय शरीर कमज़ोर होने से काफी कष्ट होता है. हर तीसरे महीने में खून की जांच ज़रूर करते रहना चाहिए ताकि शरीर में रक्त कितनी मात्रा में है इसका पता चलता रहे क्योंकि गर्भस्थ शिशु भी माँ के शरीर से रक्त प्राप्त करने लगता है और यदि गर्भवती की खुराक खूब पौष्टिक और रक्तवर्धक न हो तो गर्भवती का शरीर रक्ताल्पता (अनीमिया) का शिकार हो जाता है जो उसके शरीर और शिशु के लिए खतरनाक हो सकता है. साथ ही ब्लूडप्रेशर और पेशाब की भी जांच ज़रूरी है. यह साडी कार्यवाही लेडी डॉक्टर से मिलते रहने पर की ही जाती है. शरीर का वजन भी देखते रहना चाहिए. कम से कम १ पौंड प्रतिमाह यानि प्रसव के समय तक ९-१० पौंड वज़न बढ़ जाता है.

Question - प्रेगनेंसी के बारे में ऐसा कहते हैं की बच्चा गर्भ के अंदर रहते हुए सब सुनता है और सीखता है जैसा की अभिमन्यु की कथा कहती है . आधुनिक शरीर विज्ञान की इस मामले में क्या राय है?
Answer - बहुत अच्छी राय है जो भारतीय विचारधारा को सही सिद्ध करती है . लन्दन के सुबकॉन्सियस मेन्टल सेंटर्स वालों ने यह सिद्ध कर दिया है की बच्चा जब गर्भ में रहता है , तब अपने वातावरण को रिकॉर्ड करता रहता है, माँ की जो भी मानसिक स्थिति रहती है वह सब अंकित करता रहता है यानि उसका अवचेतन मन सब इकठ्ठा करता रहता है और जन्म लेने के बाद इन्ही संस्कारों से प्रभावित और निर्देशित होता रहता है. अपने यहाँ शास्त्रों ने इसलिए तो गर्भवती को अच्छी तरह रखने का निर्देश दिया है ताकि भावी संतान पर भी अच्छा असर पड़े. आधुनिक विज्ञान ने हमारे शास्त्रों की इस धारणा को सच्चा साबित कर दिया है. इसलिए प्रेगनेंसी के दिनों में गर्भवती को सात्विक विचार, धार्मिक विचार और शांत मानसिकता रखना चाहिए ताकि बच्चे पर भी अच्छा प्रभाव पड़े.

Question - गर्भवती ठीक समय पर सुखपूर्वक यानि बिना ऐसे किसी कष्ट के, की सीज़ेरियन डिलीवरी करना पद जाए, स्वस्थ सुडौल शिशु को जन्म दे सके इसके लिए उसे क्या करना चाहिए?
Answer - प्रेगनेंसी के दिनों में एक तो गर्भवती को हलके घरेलु कामकाज खुद ही करना चाहिए ताकि उसका व्यायाम होता रहे. व्यायाम समझ कर हलके घरेलु काम खुद ही करना चाहिए. यह ज़रूर ध्यान रखना चाहिए की ऐसे काम ज्यादा भारी और अधिक परिश्रम के कतई न हों. किसी योग्य और कुशल योगाचार्य के निर्देशन में कुछ योगासनों का ज्ञान प्राप्त कर प्रतिदिन योगासन करना चाहिए. इस तरह पूरे गर्भकाल में युवती अच्छा आहार-विहार करते हुए यथाशक्ति घरेलु काम करके व्यायाम करती रहे और नव मास चिकित्सा का पालन करते हुए प्रसन्नचित्त रहे तो डिलीवरी के समय ठीक वक़्त पर , सुखपूर्वक, स्वस्थ सुडौल बच्चे को जन्म दे सकती है और प्रसव के बाद भी स्वस्थ तथा सुडौल शरीर वाली बानी रह सकती है. जो स्त्रियां शरीर और स्वास्थ्य का ध्यान रख कर स्वस्थ शरीर रखती हैं उनके गर्भ के शिशु के शरीर का समुचित विकास होता है जिससे शिशु का शरीर भी स्वस्थ रहता है और वे गर्भकाल को पूरा कर अपनी शारीरिक शक्ति के बल पर सुखपूर्वक सामान्य प्रसव करने में सक्षम रहती हैं.

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नवमास चिकित्सा (Navmas Chikitsa, Navmaas Chikitsa or Navmasa Chikitsa)

आयुर्वेद के ग्रन्थ चरक संहिता ( charak samhita ) के शारीर-स्थान नामक आठवें अध्याय में विस्तार से नवमास चिकित्सा का विधि-विधान प्रस्तुत किया गया है उसे हम यहाँ सरल भाषा-शैली में प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि biovatica .com की visitors को इसे समझने में असुविधा न हो. नवमास चिकित्सा के अन्तर्गत गर्भकाल के आरम्भ से प्रसव होने तक की अवधि में प्रतिमास अलग-अलग ढंग से कुछ औषधियों एवं आहार द्रव्यों का सेवन करना होता है. नवमास चिकित्सा का यही मतलब और उद्देश्य है की गर्भवती महिला पूरे नौ मास तक ऐसा आहार-विहार करे की वह किसी व्याधि से ग्रस्त न होने पाए और उसका तथा गर्भस्थ शिशु का स्वास्थ्य अच्छा रहे , शरीर का समुचित विकास होता रहे और गर्भवती शरीर से इतनी सक्षम और शक्तिशाली रह सके की (चरक संहिता शारीर . ८/३२ ) के अनुसार सुखपूर्वक, उचित समय पर, मन के अनुकूल , सर्वगुण संपन्न एवं स्वस्थ सुखी शिशु को जन्म दे सके.

In the ancient Ayurveda text “Charak Samhita”, in the eighth chapter named “shaarir-sthan”, detailed guidelines, descriptions and explainations of ‘Navmas Chikitsa' are given. Literally, ‘navmas chikitsa''s meaning in english is ‘nine month treatment'. Navmas chikitsa has given pregnancy tips and guidelines on a month wise basis starting from the day of conceiving until the delivery.

प्रथम मास (first month ayurveda pregnancy tips in hindi ) - नवमास चिकित्सा का आरम्भ गर्भाधान करने वाले दिन के दूसरे दिन से ही करना होता है. पिछला मासिक धर्म जिस तारीख को हुआ हो वहां से प्रथम मास शुरू होना मानकर गर्भाधान के बाद के दिनों को प्रथम मास मान के, स्त्री को सुबह और रात को सोते समय मिश्री मिला दूध पीना चाहिए. इसी प्रथम मास से निम्नलिखित अनुभूत सफल प्रयोग भी शुरू कर देना चाहिए :-
एक चम्मच मक्खन, एक चम्मच पिसी मिश्री और रूचि व् स्वाद के हिसाब से पिसी काली मिर्च मिला कर चाट लें. इसके बाद पानीयुक्त जटावाले नारियल की दूधिया सफ़ेद गिरी के २-३ टुकड़े बहुत चबा चबा कर खा लें. अंत में एक दो चम्मच ( ५-१० ग्राम के लगभग वज़न ) सौंफ खूब चबा चबा कर खा लें. यह प्रयोग पौष्टिक, शक्तिवर्धक और स्निग्धता देने वाला तो है ही, इसका सबसे बड़ा उपयोग ये है की इस नुस्खे के प्रभाव से गर्भस्थ शिशु का शरीर भी पुष्ट और सुडौल होता है. यह प्रयोग पूरे गर्भकाल में करते रहें तो भी बहुत गुणकारी होता है.

दूसरा महीना (Ayurveda pregnancy tips in hindi for second month ) - दूसरा महीना शुरू होने पर १० ग्राम शतावर का महीन पिसा हुआ चूर्ण और १० ग्राम पिसी हुई मिश्री फांक कर कुनकुना गर्म दूध घूंट घूंट करके पी लें. यह प्रयोग सुबह और रात को सोने से आधा घंटे पहले, प्रथम महीने की तरह सेवन करना है. दूध पीने के बाद दंतमंजन कर मुह साफ़ कर लेना चाहिए.

तीसरा महीना (Ayurveda pregnancy tips in hindi for third month ) - तीसरे महीने में दूध को ठंडा करके एक चम्मच शुद्ध घी और तीन चम्मच शहद घोल कर सुबह शाम पीना चाहिए. इस महीने से 'सोम घृत' (som ghrit ) का सेवन शुरू करके , आठवां महीना पूरा होने तक, सेवन किया जाता है. सोम घृत (som ghrit ) इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक दवाओं की दुकान पर मिलता है. गर्भवती महिलाएं सोम घृत दावा की दुकान से खरीद लें. इस घृत को आधा चम्मच मात्रा से, कुनकुने गर्म दूध में डाल कर, सुबह शाम लेना शुरू करें और अपनी पाचनशक्ति के अनुसार धीरे धीरे इसकी मात्रा बढ़ा कर डेढ़ डेढ़ बड़े चम्मच (लगभग ३० मिली ) लेने लगें. भोजन में शुद्ध घी का सेवन करते हुए सोमघृत का भी सेवन करती रहें बशर्ते पाचनशक्ति ठीक हो. अगर दोनों में से एक को चुनना पड़े तो सोमघृत को ही चुनें. सोमघृत मिले ही नहीं तो फिर शुद्ध घी का ही सेवन करती रहें. सोमघृत का सेवन तीसरे महीने से शुरू करके आठवां महीना पूरा होने तक करना चाहिए.

चौथा महीना (Ayurveda pregnancy tips in hindi for fourth month ) - प्रेगनेंसी के चौथे महीने में दूध के साथ ताज़ा मक्खन २० ग्राम मात्रा में सुबह शाम सेवन करना चाहिए. इस महीने में शुद्ध घी वाला सेवन बंद कर इड़की जगह सिर्फ मक्खन लेना है. घर में मक्खन न बनता हो और डेरी का मक्खन न मिलता हो तो बाजार में अमूल का मक्खन मिलता है सो लेकर सेवन करें. इसे सेवन करने के आधा घंटे बाद सोमघृत का सेवन करें.

पांचवां महीना (Ayurveda pregnancy tips in hindi for fifth month ) - प्रेगनेंसी के पांचवे महीने में सिर्फ दूध और शुद्ध घी का सेवन करें और सोमघृत भी सेवन करें.


छठवां महीना (Ayurveda pregnancy tips in hindi for sixth month )
- प्रेगनेंसी

के छठवे महीने में दूसरे महीने की तरह शतावर का चूर्ण और पिसी मिश्री के साथ दूध सेवन करें. सोमघृत का सेवन जारी रखें.

सातवां महीना (Ayurveda pregnancy tips in hindi for seventh month ) - प्रेगनेंसी के सातवें महीने में छठवें महीने के प्रयोग को जारी रखना चाहिए. इस महीने में शिशु के शरीर में केश (बाल) उत्पन्न होने से गर्भवती को पेट में जलन होने का अनुभव होता है पर आयुर्वेद के अनुसार गर्भ बढ़ने से पीड़ित व् कुपित हुए वातादि दोष यह जलन होने में कारण होते हैं. इस जलन के बाद पेट में खुजली का भी अनुभव होता है . सातवे महीने में गर्भ का आकार बढ़ने से पेट की त्वचा पर तनाव आता जाता है जिससे त्वचा पर सफ़ेद रंग की दरारें पद सकती हैं . इस कारण पेट की त्वचा तनाव के कारण कोमल रहती है अतः खुजली होने पर , नाख़ून से न खुजा कर, मोठे कपडे से हलके हलके रगड़ कर खुजली शांत कर लेना चाहिए.

आठवां महीना (Ayurveda pregnancy tips in hindi for eighth month ) - प्रेगनेंसी के आठवें महीने में दूध-दलिया घी डाल कर शाम के भोजन में लेना चाहिए यानी शाम का भोजन हल्का और तरल रूप में लेना सुविधापूर्ण रहता है. आठवें महीने में भी सोमघृत का सेवन जारी रहेगा. गर्भ का आकार बढ़ जाने से पेट का आकार बढ़ जाता है अतः इन दिनों कब्ज़ या वायु प्रकोप (गैस ट्रबल) बिलकुल भी नहीं होने देना चाहिए. गर्भाशय का आकार बढ़ जाने से इसका दबाव मलाशय पर पड़ता है. सुबह शाम दोनों वक़्त नियमित रूप से शौच जाने से मलाशय साफ़ रहेगा और हल्का रहेगा इससे गर्भवती को असुविधा व् पीड़ा नहीं होगी.

नौवां महीना (Ayurveda pregnancy tips in hindi for ninth month ) - प्रेगनेंसी के नौवें महीने में सोमघृत नहीं लेना है. नौवें महीने में एक महत्वपूर्ण उपाय यह करना होगा की कब्ज़ रहता हो तो शतावर साधित तेल ५० ग्राम मात्रा में ले कर एनिमा द्वारा गुदा में रात को सोने से पहले पहुंचा दें.यह प्रयोग एक या दो दिन छोड़कर ज़रूरी लगे तो पूरे महीने करना है. इसी शतावरी साधित तेल में रुई का फाहा भिगो कर रोज़ाना रात को सोते समय योनि के अंदर गहराई तक रख लिया करें. रुई के फाहे को तेल में भिगोने से पहले एक लंबे धागे से बाँध दें फिर फाहे को तेल में डुबो कर हल्का सा निचोड़ कर इस फाहे को योनि में अंदर तक, अपनी माध्यम ऊँगली से सरक दें और धागा बाहर लटकने दें. सुबह उठने पर धागा खिंच कर फाहा निकल दें. प्रतिदिन नया फाहा तैयार करके प्रयोग करें. एनिमा लेने से मलाशय साफ़ होता रहेगा और योनि में फाहा रखने से योनि मार्ग एवं प्रजनन अंग में लोच तथा चिकनाहट बानी रहेगी. पूरे महीने ये प्रयोग करने से सामान्य प्रसव हो सकेगा.

इस प्रकार नवमास चिकित्सा का यह विवरण पूरा हुआ. प्रत्येक गर्भवती स्त्री को उचित आहार-विहार एवं उचित आचार-विचार का पालन करते हुए नियमित रूप से नवमास चिकित्सा का पालन करना चाहिए ताकि प्रसव के बाद भी उसका शरीर सशक्त, सुडौल और स्वस्थ बना रह सके साथ ही वह स्वस्थ, सुडौल , सुन्दर और हष्ट-पुष्ट शिशु को जन्म दे सके. ऐसे उपाय करने पर सिजेरियन डिलीवरी (cesarean delivery ) की नौबत नहीं आएगी क्योंकि गर्भवती , स्वाभाविक ढंग से प्रसव करने के लिए सक्षम स्थिति में होगी.

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गर्भकाल में स्वास्थ्य रक्षक खान-पान ( diet in pregnancy according to Ayurveda )

गर्भ धारण करना एक सुखद एहसास होता है और मातृत्व प्राप्त करके ही एक नारी परिपूर्ण होती है लेकिन गर्भकाल एक नाजुक समय भी होता है और इन दिनों में गर्भवती को ऐसे ही आहार-विहार का पालन करना होता है जो गर्भवती और गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य की रक्षा करने और शरीर का उचित विकास करने वाला हो. इस विषय में, गर्भवती के उचित खान-पान संबंधी विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है.

गर्भावस्था में गर्भवती स्त्री को अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि वह शरीर से स्वस्थ, शक्तिशाली व् निरोग बनी रह सके क्योंकि गर्भ में पल रहा शिशु पूर्ण रूप से माँ के खान पान पर ही निर्भर रहता है. यदि खान पान का ठीक से ख़याल न रखा जाए तो गर्भवती का वज़न घट भी सकता है और बढ़ भी सकता है और ये दोनों ही स्थितियां गर्भवती और गर्भस्थ शिशु के लिए हानिकारक होती है. इन स्थितियों में एनीमिया (रक्त की कमी ), उच्च रक्तचाप, मधुमेह, समय से पूर्व प्रसूति होना आदि व्याधियां होने की सम्भावना बढ़ जाती हैं. गर्भ धारण करने से पहले अपने वज़न और हीमोग्लोबिन पर ध्यान देना चाहिए.
गर्भावस्था के प्रारम्भिक दो तीन महीने में जी मचलाना, उलटी होना आदि के कारण गर्भवती को खाना अच्छा नहीं लगता. इससे वज़न घट सकता है, बढ़ नहीं पाता. इससे घबराने या परेशान होने की ज़रूरत नहीं क्योंकि गर्भावस्ता के शुरूआती महीनों में ऐसा होता ही है. ऐसी स्थिति में खाली पेट बिस्तर से उठना नहीं चाहिए. चाय या दूध के साथ बिस्कुट खाकर ही बिस्तर से उठना चाहिए और सोते समय भी कुछ खाकर ही सोना चाहिए.

गर्भावस्था में कब्ज़ और एसिडिटी हो जाया करती है जो की होना नहीं चाहिए. ऐसा न हो इसके लिए रेशेदार फल व् सब्ज़ी , सलाद, अंकुरित अन्न युक्त ताज़ा भोजन निश्चित समय पर ३२ बार कौर चबा कर भोजन करना चाहिए. पाचन शक्ति कमज़ोर हो तो एक बैठक में भरपेट भोजन न करके थोड़ी मात्रा में बार बार यानी जब भूख लगे तब थोड़ी मात्रा में खूब चबा चबा कर खाएं , भूख सहन न करें. आहार में भारी यानी देर से पचने वाले, वसायुक्त और मीठे व्यंजनों का सेवन न करें ताकि ज़्यादा वज़न ना बढे. अपने आहार में अंकुरित अन्न व् सलाद अवश्य शामिल करें क्योंकि इनमे प्रोटीन व् आयरन जैसे पोषक तत्वों के साथ ही ये रेशायुक्त भी होते हैं इससे शरीर का पोषण तो होता ही है , कब्ज़ नष्ट करने में भी सफलता मिलती है. अंकुरित अन्न में मूंग, मोठ, चना, सोयाबीन व् राजमा का प्रयोग करें. सूखे मेवे का भी उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए जैसे अंजीर व् बादाम. सोते समय दूध अवश्य पीना चाहिए. शुरू के छह महीने की अपेक्षा अंतिम तीन महीने में बच्चे का विकास तीव्र गति से होता है इसलिए इन महीनों में खान पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए. लेडी डॉक्टर जैसी सलाह दे वैसा आहार व् दवाओं का नियमित सेवन करना चाहिए. गर्भवती महिला के लिए उचित आहार-तालिका प्रस्तुत है :-
सुबह ७ बजे एक कप चाय व् दो बिस्कुट या ब्रेड. ९ बजे एक गिलास दूध व् दलिया, छेने से बनी एक पीस मिठाई या मक्खन के साथ ब्रेड स्लाइस. ११ बजे अंकुरित अन्न एक कटोरी, एक मौसमी फल या फल का रस. १ बजे २-३ ताज़ी चपाती, एक कटोरी हरी सब्ज़ी, आधा कटोरी चावल या राजमा. भोजन के साथ या अंत में १-२ घूंट से ज्यादा पानी न पियें. शाम ४ बजे १ कप चाय या कॉफ़ी, साथ में बिस्कूट, ब्रेड, भुने चने , ढोकले. दूध लें तो सिर्फ ब्रेड के साथ लें. शाम को ७ बजे टमाटर या सब्ज़ियों का मिश्रित सूप एक कटोरी. रात ८ बजे रात का खाना दोपहर के भोजन जैसा लें. सोते समय एक गिलास दूध में, एक बादाम पत्थर पर चन्दन की तरह घिस कर मिला लें और घूंट घूंट कर पियें.

गर्भावस्था में वर्जित काम - तेज़ मिर्च मसालेदार, बहुत अधिक मीठे, वसायुक्त, अल्कोहल आदि का सेवन न करें. चाय-कॉफ़ी दिन में दो बार से ज्यादा न लें. तले पदार्थ और बाजार की चीजों का सेवन कम से कम करें. देर तक न जागें, सुबह सूर्योदय के बाद तक सोये न रहें. घर के हलके-फुल्के काम करते रहें, आलस्य न करें.

 

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Pregnancy and its preparation are called “garbhadhan sanskar” ( pregnancy custom) in Ayurveda. Ayurveda has advised some set of rules and guidelines for better “garbhadhan sanskar”. Below we have listed these Ayurveda rules and guidelines for the preparation of pregnancy:-

1)  Couple should keep their aahar-vihaar (food and diet) and aachar-vichar (discipline and mental state) totally chaste, pure and good from the 60 days before the “garbhadhan sanskar”.

2)  Don't eat fried, spicy, hot and sour food in your diet. Do not eat non-vegetarian food; avoid alcohol drinking, smoking and any other substance use. Eat maximum to maximum fruits, take pure vegetarian meal, eat kheer prepared with milk and rice, halva, butter, misri and dry-fruits in your diet. Keep eating dry fruits as much as possible.

3)  Must get up early in the morning and must do exercise or Yoga after getting fresh from toilet and bath.

4) In these days, husband-wife or the couple must maintain a good mutual relationship which is filled with love, affection and care for each other. Couple must avoid arguments, fights or tense atmosphere. Couple should maintain this good relationship before, during and after the “garbhadhan sanskar”.

5)  Follow all these guidelines and keep these things secret. Don't make it a topic of discussion. Entire program must be between the couple only.

6) Read good books and religious texts in these days.

7)  Keep good thoughts.

8)  Avoid worry, anger, sadness and mourning.

Ayurveda diet, food and eating habits during pregnancy

A pregnant woman has to not only take care of herself but also the fostering of the fetus as well. Thus it is the duty of the entire family, and especially the husband to arrange for the food and diet which are rich on nutrients for her. Here on Biovatica.com we will list some Ayurveda tips and guidelines for the nutrients rich food and diet for the pregnant woman.

A pregnant woman develops some lack of interest towards food in the early stage of pregnancy. In the morning she usually has the feeling of nausea. She loses her mouth's taste hence there arises the desire to eat sour and acetous food. . So she should eat natural seasonal fruits, uncooked salad and light food in her diet.