शिशु के शरीर और स्वास्थ्य
की रक्षा करने में माँ का दूध ही सर्वश्रेष्ठ है. आयुर्वेद ने तो माँ के दूध को अमृत माना है. आयुर्वेद के अनुसार, जिस प्रकार देवता अमृत का सेवन करने से दीर्घायु हुए, उसी प्रकार माँ का अमृत रस रूपी दुग्धपान करके बालक स्वास्थ्य और दीर्घायु होता है. माँ के दूध से बढ़ कर शिशु के लिए पौष्टिक आहार अन्य कुछ नहीं इसलिए कम से कम छह मॉस तक शिशु सिर्फ माँ के दूध पर ही निर्भर रहता है और एक वर्ष का होने तक अन्नाहार लेते हुए भी वह माँ का दूध पीता है. लेकिन कभी कभी माँ का दूध पीते हुए भी या दूध छोड़ने के बाद शिशु किसी व्याधि से पीड़ित हो जाता है और उसका शरीर कमज़ोर हो जाता है. ऐसी स्थिति में उसके लिए एक गुणकारी आयुर्वेदित योग "बालार्क रस " (Balark Rasa ) का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है :-
बालार्क रस दो प्रकार से बनाया जाता है. एक तो केसर व् गोरोचन युक्त और दूसरा साधारण. यहाँ केसर गोरोचन युक्त नुस्खे का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है.
नुस्खा - शुद्ध खपरिया या यशद भस्म , प्रवाल भस्म, श्रृंग भस्म, शुद्ध हिंगुल, गोरोचन, कचूर और केशर - प्रत्येक समभाग ले कर ब्राह्मी के रस में खरल (घुटाई) करके १-१ रत्ती की गोलियां बना लें. शिशु को १-१ गोली सुबह शाम माँ के दूध के साथ या शहद में मिला कर चटा दें या जल के साथ निगला दें. यह नुस्खा बच्चों के लिए बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ है. इसके सेवन से शिशु-रोग जैसे ज्वर , अतिसार, हरे पीले और फटे हुए सफ़ेद झागदार दस्त होना, बाल शोथ, डब्बा रोग, पेट में कीड़े आदि नष्ट होते हैं और बच्चा स्वस्थ हो कर हष्ट पुष्ट होता है. मोतीझरा रोग में भी वैद्यगण इसका सेवन कराते हैं. 'बालार्क रस' श्री बैद्यनाथ द्वारा बनाया हुआ बाजार में मिलता है.
किशोर एवं नवयुवा आयु के जो युवक युवतियां शरीर से कमज़ोर व् दुबले पतले हों , उन्हें निम्नलिखित अत्यंत पौष्टिक व् गुणकारी घरेलु नुस्खा तैयार कर पूरे शीतकाल के दिनों में सेवन करना चाहिए. इसे अन्य ऋतू में भी सेवन किया जा सकता है.
नुस्खा - असगंध, विधारा, आंवला, गोखरू और गिलोय, सब १००-१०० ग्राम लेकर कूट पीस कर खूब महीन चूर्ण कर लें. इस चूर्ण को शतावरी के रस की तीन भावना देकर सुखा लें . फिर २५० ग्राम पिसी मिश्री मिलाकर तीन बार छान कर एक जान कर लें और शीशी में भर कर एयर टाइट ढक्कन लगा कर रखें. एक एक चम्मच चूर्ण सुबह शाम मीठे गर्म दूध के साथ सेवन करें. इन योग के सेवन से शरीर पुष्ट व् सुडौल होता है, चेहरा भरा हुआ व् तेजस्वी होता है और शरीर चुस्त दुरुस्त व् फुर्तीला रहता है. इस योग का सेवन करते हुए खटाई, खट्टे पदार्थ, तले हुए, उष्ण प्रवृत्ति वाले और तेज़ मिर्च मसालेदार पदार्थों का सेवन न करें. किशोर और नवयोव अवस्था वाले (teenagers ) युवक युवतियों के शरीर को बलवान बनाने वाला यह उत्तम नुस्खा है.
प्रौढावस्था का आरम्भ ४०-४५ वर्ष की आयु से माना जाता है. प्रौढावस्था में स्वास्थ्य रक्षा के लिए दो मुख्य बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए. (१) अपनी पाचनशक्ति का पूरा ध्यान रख कर मंदाग्नि और कब्ज़ न होने देना और (२) अपनी शक्ति और क्षमता से अधिक कोई काम या शक्ति व्यय नहीं करना चाहिए. उचित आहार-विहार तथा अच्छी दिन चर्या का पालन करके पहली मुख्य बात का ध्यान रखा जा सकता है और उचित आहार-विहार यानि आचरण पर अमल करके दूसरी मुख्य बात का ध्यान रखा जा सकता है. ऐसा करते हुए निम्नलिखित चिकित्सा इस शीतकाल में तो अवश्य ही करें, शेष ऋतुओं में भी करते रहें तो बहुत ही अच्छा रहेगा.
चिकित्सा - सुबह शाम एक बड़ा चम्मच भर स्वामला कंपाउंड और एक चम्मच अश्वगंधादि चूर्ण दूध के साथ लें. सुबह खली पेट एक चम्मच साबुत मेथी दाना, एक गिलास पानी के साथ निगल जाएँ. सुपाच्य, सादा व् ताज़ा भोजन ठीक वक़्त पर ३२ बार कौर को चबाते हुए खाया करें, भूख सहन न करें यानी भोजन करने में विलम्ब न करें. सुबह सूर्योदय से पहले शौच, स्नान व् वायुसेवन (टहलना ) से निपट जाया करें और सोते समय दूध अवश्य पिया करें. सोने से पहले शौचालय ज़रूर जाया करें. दूध में दो अंजीर या दो छुहारे के टुकड़े डाल कर दूध उबाल कर पिया करें. अंजीर या छुहारे चबाते हुए घूंट घूंट कर दूध पिया करें.
- वृद्धावस्था में स्वास्थ्य रक्षा के लिए करने योग्य प्रयासों का अभ्यास प्रौढावस्था में ही कर लिया जाना चाहिए अर्थात प्रौढ़ावस्था में अपने आहार-विहार और आचरण में जो परिवर्तन एवं सुधार किये जाते हैं वे दरअसल वृद्धावस्था के दिनों में पालन योग्य दिनचर्या और आहार-विहार का प्रशिक्षण ही होता है. प्रकृति ने युवावस्था और वृद्धावस्था के मध्य में प्रौढ़ावस्था को संधिकाल के रूप में इसलिए रखा है की मनुष्य वृद्धावस्था में स्वास्थ्यरक्षा के लिए किये जाने वाले प्रयासों और आहार-विहार का पूर्व अभ्यास कर ले. आयुर्वेद के अनुसार ६० वर्ष की आयु के बाद यौनक्रीड़ा (sex ) त्याग देना चाहिए और इस आयु मर 'काम' की बजाये 'राम' में मन लगाना चाहिए.