Ayurveda Child Care

Ayurveda tips on Infant and Child Care in Hindi

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Ayurveda tips on Infant and Child Care in Hindi

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Ayurveda on Infant and Child Care in Hindi

ayurveda child care

नवजात शिशु की देखभाल, पालनपोषण और किसी बीमारी से उसके ग्रस्त हो जाने पर चिकित्सा करना बहुत कठिन होता है क्योंकि शिशु कुछ भी बोल नहीं सकता, बता नहीं सकता की उसे क्या चाहिए या क्या कष्ट है. इस अवधि में उसका रोना ही भाषा का काम करता है. बच्चा भूखा होता है तो रोता है और किसी कष्ट से पीड़ित होता है तो रोता है. अब यह माता की चतुराई और सूझबूझ पर निर्भर करता है की वह बच्चे के रोने का कारण समझ सके. यदि वह ठीक ठीक कारण समझ पाती है तो उसका निवारण करके बच्चे को चुप करने में सफल हो जाती है अन्यथा बच्चा रोते रोते बेहाल हो जाता है. शिशुओं की देखभाल करने वाली माताओं को ऐसे कारणों की जानकारी रखनी होगी जिनसे शिशुओं के रोने और बेचैन होने की स्थिति निर्मित होती है तभी वह उस कारण को दूर करने के उचित उपाय कर पायेगी. इस आर्टिकल में संक्षिप्त रूप से बच्चे के रोने के कुछ कारण और उसके निवारण के विषय में गुणकारी जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं.

बड़ी उम्र वालों की तरह शिशु किसी प्रकार की मानसिक चिंता, तनाव या घुटन को अनुभव नहीं करते इसलिए उनके रोने का कारण मानसिक नहीं शारीरिक ही होता है और उनका कष्ट भी शारीरिक ही होता है. यदि शारीरिक कष्ट कम हो तो बच्चा कम रोता है और कष्ट ज्यादा हो तो बच्चा ज्यादा रोता है और तब तक रोता रहता है जब तक कष्ट दूर नहीं हो जाता. इसका निष्कर्ष यह निकलता है की बच्चे के चुप हो जाने का मतलब है की उसका कष्ट दूर हो गया है.

रात में बच्चे के रोने के मुख्यतः दो कारण होते हैं या तो पेट दर्द करना या सर्दी के असर से छाती या पीठ में दर्द होना. यदि दस्त साफ़ न होता हो, अपच हो और पेट फूला हुआ हो तो गरम तवे पर कपडा तह करके गर्म करें और अपने हाथ पर रख कर देख लें की ज़्यादा गरम न हो ताकि बच्चा सहन कर ले, इस कपडे से सेक करने से पेट, छाती व् पीठ के दर्द में तात्कालिक लाभ हो जाता है.
छाती या पीठ में दर्द हो तो सरसों के आधी कटोरी तेल में दो कली लहसुन की डाल कर खूब गरम करके ठंडा कर लें. इस तेल से छाती व् पीठ में हलके हलके मालिश करें और गरम कपडे से सेंक कर दें. पीठ व् पसलियों को हवा न नग्न दें. बच्चे को आराम हो जायेगा.

बच्चा कान में दर्द होने पर भी रोता है. इसी तेल दी दो दो बूँद कानों में डालने और और बहुत हलके गरम कपडे से सेक करने से बच्चे को आराम मिलता है और वह चुप होकर सो जाता है.
बच्चे का पेट फूला हो और वायु न निकल रही हो तो सेकने के बाद दो चम्मच पानी में जरा सी हींग घोल लें और नाभि के पास पेट पर गोलाकार २-२ इंच लेप कर दें. इससे गैस निकल जाएगी.

रोते हुए बच्चे के सारे शरीर का बारीकी से निरिक्षण करके रोने के कारण को समझना चाहिए ताकि उस कारण को दूर करने का उचित उपाय किया जा सके. कई बार बच्चे के कपडे में कोई चींटी या कीड़ा घुस जाता है और काट लेता है. उस स्थान पर त्वचा लाल हो जाती है. इस पर फिटकरी का पानी या पानी में लोहा घिस कर लगाने से आराम हो जाता है. इसी प्रकार घरेलु उपाय करके बच्चे की पीड़ा के कारण का निवारण किया जा सकता है.

छोटे बच्चों की देखभाल, नवजात शिशु की देखभाल के आयुर्वेदिक टिप्स व् उपाय

इस आर्टिकल में कुछ ऐसे आयुर्वेदिक नियम व् टिप्स प्रस्तुत कर रहे हैं जो छूटे शिशु (नवजात बच्चे ) का पालन पोषण करने में हितकारी व् सहयोगी सिद्ध होंगे और जिनकी जानकारी सभी नवयुवती माताओं को होना ही चाहिए. इस आर्टिकल में नवजात शिशुओं (नवजात बच्चों) की देखभाल सम्बन्धी नियम प्रस्तुत किये जा रहे हैं.

(१) छह माह तक शिशु (बच्चा) पूरी तरह माता के आश्रय में रहता है. माता के दूध पर ही निर्भर रहता है और इस काल में उसका शरीर धीरे धीरे सुडौल और पुष्ट होता है. इसलिए माता को शिशु (बच्चे) की देखभाल पूरी सावधानी से करना चाहिए. बच्चे को अपना दूध कम से कम १० महीने तक तो पिलाना ही चाहिए. दूध पिलाने वाली माता को अपने खानपान और रहन-सहन को ठीक और पोषण करने वाला रखना चाहिए ताकि उसका दूध पीने वाला शिशु(बच्चा) भी स्वस्थ बना रहे. बदपरहेजी करने , खटाई, तेज़ मिर्च मसालेदार पदार्थ और मादक द्रव्य सेवन करने वाली माता का दूध पीने वाला शिशु (बच्चा) बीमार रहता है.

(२) नवजात शिशु (छोटे बच्चे) को ठीक समय पर और नियमित रूप से दूध पिलाना चाहिए. न इसमें कमी और देरी करना अच्छा है और न अधिक और जल्दी जल्दी पिलाना अच्छा है. दूध पिलाते समय माता का शरीर गर्म न हो, ज्वरग्रस्त या रोग ग्रस्त न हो, थका हुआ न हो, मन में क्रोध, शोक, चिंता, ईर्ष्या का भाव न हो, यह ज़रूरी है. माँ का दूध पर्याप्त मात्रा में न होता हो तो गाय या बकरी का दूध थोड़ा थोड़ा कई बार पिलायें.

(३) दूध पिलाने के बाद शिशु (बच्चे) को ज्यादा हिलना डुलाना, उछालना या पेट के बल सुलाना ठीक नहीं. पेट दबने या जोर से झटके लगने से शिशु(बच्चा) उलटी करके दूध फेंक देता है.

(४) कुछ लोग, ज्यादा लाड बघारते हुए शिशु को गलत ढंग से खिलते है जैसे ऊपर उछालना, उल्टा सीधा करना और हाथ पकड़ कर उठा लेना, चक्कर खिलाना आदि. ये सब काम शिशु(बच्चे) के लिए हानिकारक हैं, अतः नहीं करना चाहिए.

(५) छह महीने का होने पर शिशु(बच्चे) को अन्न खिलाना शुरू कर दिया जाता है. शुरू में हल्का, सुपाच्य और मधुर रस वाला आहार जैसे दूध, दलीय, खीर , दूध-शहद, मीठे फलों का गूदा आदि देना चाहिए.

(६) छह माह से कम आयु के शिशु (बच्चे) को उठाते समय गर्दन व् सिर के निचे हाथ लगा देना चाहिए ताकि गर्दन में झटका न लगे. शिशु (बच्चे) को बिठाना या बैठी हुई पोजीशन में गोद में न लेकर लेटी हुई पोजीशन में ही रखना चाहिए. जब शिशु (बच्चा) स्वयं सशक्त होकर बैठने लगे तभी बिठाना चाहिए.

(७) शिशु (बच्चा) साल भर का होने को आये और उसके दांत निकलने लगे तो सुहागा फुला कर, बारीक़ पीस कर , शहद में मिला कर, मसूड़ों पर धीरे धीरे मलना चाहिए. इससे दांत सरलता से निकल आते हैं. दांत निकलते समय शिशु (बच्चे) को ज्वर होना, अपच होना, हरे पीले दस्त होना, दूध फेंकना, चिड़चिड़ाना, रोना आदि शिकायतें होती हैं जिनका कारण दांत निकलना भी हो सकता है. इस काल में शिशु को दिन में ३ बार आधा चम्मच चूने के पानी का शरबत बना कर पिलाना चाहिए या कोई भी अच्छा टीथिंग सिरप पिलाना चाहिए.

(८) शिशु (बच्चे) को डराना, डांटना या धमकाना उचित नहीं. दीवार पर पड़ने वाली परछाईं दिखाना ठीक नहीं, इससे शिशु (बच्चा) डर जाता है.

(९) डिब्बे का दूध पिलाना पड़े तो सफाई का पूरा ध्यान रखें. दूध की शीशी खाली होने पर गरम पानी से धोकर दूध भरें और शीशी खाली होने पर गरम पानी से धोकर ही रखें. दूध का डब्बा अच्छी क्वालिटी वाला होना चाहिए.

(१०) शिशु (बच्चे) को कभी अकेला न छोड़ें. उसके आसपास धारदार चाकू, छुरी, ब्लेड , माचिस, पैसों के सिक्के आदि छोटी चीजें न छोड़ें क्यूंकि शिशु (बच्चे) का स्वाभाव होता है की वह हाथ में आयी चीज को मुंह में रख लेता है. यह शिशु (बच्चे) के लिए बहुत संकट का कारण हो सकता है.

(११) शिशु (बच्चा) चलने लगे तब उसका विशेष ध्यान रखें की वह अकेला न रहे, किधर भी चला न जाए . उसे अपनी भाषा बोलना सिखाते समय इस बात का ध्यान रखें की वह तुतलाना या हकलाना न सीख ले.

(१२) शिशु (बच्चे) को बाजार की चीज दिलाने या खिलाने का शौक न लगाएं. यह आदत बुरी होती है. बाजार की चीजें स्वास्थ्य ख़राब कर सकती हैं, ऐसा बच्चा बड़ा होकर जिद करके मनचाही चीजें मांगने लगता है और लेकर ही मानता है.

(१३) सोते हुए शिशु (बच्चे) को अचानक न जगाएं. उसके पास अचानक जोर की आवाज़ न करें. शिशु (बच्चे) को जुलाब न दें. दांत निकलते समय होने वाले उपद्रव या रोग की दवा न देकर उसे टॉनिक , कैल्शियम और पोषक आहार ही देना चाहिए. दांत और दाढ़ निकल आने पर सब उपद्रव खुदबखुद ठीक हो जाते हैं.

(१४) शिशु (बच्चे) को आये दिन छोटी मोती व्याधियां हो जाया करती हैं और उसको लेकर डॉक्टर के पास जाना पड़ता है. जबकि ऐसी मामूली व्याधियों की चिकित्सा जानकार बुज़ुर्ग महिलाएं स्वयं ही कर लिया करती हैं.
-- जब शिशु (बच्चा) अन्न खाने लगे तब अपच होने की स्थिति में यह घुट्टी घिस कर पिलाना चाहिए --> अतीस, आम की गुठली, नागरमोथा, काकड़सिंगी और सौंठ - इनको २५-२५ ग्राम साबुत ही लाकर अलग-अलग रखें. एक एक करके इनको साफ़ पत्थर पर, पानी के साथ चन्दन की तरह, बराबर-बराबर संख्या में घिस कर लेप कटोरी में उतार लें. मागभग आधा छोटा चम्मच लेप सुबह शाम शिशु(बच्चे) के मुंह में डालकर ऊपर से १-२ चम्मच पानी डाल दें या माता अपना दूध पीला दे. यदि शिशु को पतले, हरे पीले व् फटे दस्त बार बार होते हों तो इस प्रयोग को दिन में ३-४ बार भी दे सकते हैं. ऐसी स्थिति में इस नुस्खे में जायफल घिस कर मिला लेना चाहिए. दस्त बंध कर आने पर जायफल का प्रयोग बंद कर दें सिर्फ घुट्टी का प्रयोग जारी रखें. शिशु का पाचन क्रम सुधार कर दस्त को बाँधने वाली यह घुट्टी कई बार की परीक्षित घरेलु दवा है.
-- पेट का दर्द, पेट का फूलना, और हरे पीले दस्त होना - इन व्याधियों को दूर करने के लिए अजवाइन के ५-७ दाने माँ या बकरी के दूध में पीस कर चटाना चाहिए. शिशु (बच्चे) के पेट पर नाभि के चारों ओर हींग के पानी का लेप करने से आराम होता है. आधी कटोरी पानी में आधे चावल बराबर हींग घोल कर यह पानी तैयार कर लें.
-- छाती या पीठ में दर्द हो, शिशु (बच्चा) खांसता हो , गले में कफ हो तो सरसों के तेल में महीन पिसा हुआ जरा सा संधानक मिला कर, छाती व् पीठ पर लगा कर , हलके हलके मसलें व् गरम कपडे से थोड़ा सेक कर दें. थोड़ा तेल गुदा के मुंह पर भी लगा दें. आराम हो जाएगा.