Hysteria and Ayurveda, हिस्टीरिया

Ayurveda treatment of hysteria in hindi,हिस्टीरिया के आयुर्वेदिक इलाज हिंदी में

Hysteria and Ayurveda, हिस्टीरिया

Ayurveda treatment of hysteria in hindi,हिस्टीरिया के आयुर्वेदिक इलाज हिंदी में

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हिस्टीरिया नाशक चूर्ण (Hysteria nashak churna )

हिस्टीरिया नाशक चूर्ण के घटक द्रव्य (ingredients of hysteria nashak churna ) :-

भुनी हींग , बच और जटामांसी - 20 -20 ग्राम . कूठ और काला नमक - 40 -40 ग्राम ; वायविडंग 160 ग्राम .

हिस्टीरिया नाशक चूर्ण बनाने की विधि ;- सभी द्रव्यों को कूट पीस कर महीन चूर्ण करके मिला लें और चलनी से तीन बार छान लें . इसे एयरटाइट शीशी में भर कर रख लें .

हिस्टीरिया नाशक चूर्ण की मात्रा और सेवन विधि :- तीन तीन ग्राम कुनकुने गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करना चाहिए .

 

हिस्टीरिया नाशक चूर्ण के फायदे ( Hysteria nashak churna uses and benefits in hindi ) :- हिस्टीरिया नाशक चूर्ण में हींग वात प्रकोप का शमन करती है , बच और जटामांसी भी वात का शमन करने के अलावा मस्तिष्क तथा स्नायविक संसथान को शांति तथा शक्ति देती है , कूठ आमाशय का दोष दूर कर आक्षेप का निवारण करता है , काला नमक वात विसर्जन , अग्नि की वृद्धि और दोषों का पाचन करता है तथा वायविडंग उदरशुद्धि तथा अनुलोमन द्वारा अपानवायु को बाहर निकालने का काम करता है . इस तरह ये सब द्रव्य मिलकर हिस्टीरिया बीमारी के कारणों का नाश करके रोगी को रोगमुक्त कर देते हैं . हिस्टीरिया नाशक चूर्ण का दो तीन महीने तक नियमित सेवन करके हिस्टीरिया रोग से मुक्ति पाई जा सकती है .

 

इन हिंदी (hysteria in hindi )

हिस्टीरिया शब्द ग्रीक भाषा के हिस्टेरा शब्द से बना है. हिस्टेरा का अर्थ है गर्भाशय. हिस्टीरिया रोग का सम्बन्ध गर्भाशय से है इसलिए इस रोग को हिस्टीरिया कहते हैं. आयुर्वेदिक भाषा में इस रोग को अपतन्त्रक कहते हैं. यह रोग प्रायः १६ वर्ष की आयु से लेकर ३०-३२ वर्ष तक की आयु में युवतियों को होता पाया जाता है. चिकित्सा शास्त्रियों के अनुसार इस रोग का सम्बन्ध यौन-भावना से भी होता है. जिन युवतियों का विवाह काफी उम्र तक नहीं होता या विवाह हो जाने पर पति से काम संतुष्टि प्राप्त नहीं होती ऐसी युवतियों को भी हिस्टीरिया रोग हो जाता है. मानसिक चिंता व् शोक की अधिकता, निराशा, अवसाद (डिप्रेशन) आदि मानसिक कारणों से ट्रस्ट युवतियां भी इस रोग की शिकार हो जाती हैं.हिस्टीरिया से मिलता जुलता एक रोग होताहै अपस्मार जिसे मिर्गी कहा जाता है.

हिस्टीरिया के कारण (causes of hysteria in hindi ) - हिस्टीरिया यानी अपतन्त्रक रोग का सम्बन्ध या तो गर्भाशय के किसी विकार से रहता है या फिर युवती की मानसिक स्थिति से रहता है. गर्भाशय से सम्बंधित कारणों में रजोरोध होना, मासिक धर्म अनियमित होना तथा स्त्राव कम या ज्यादा मात्रा में होना, पति सहवास में अतृप्ति का अनुभव होना, शरीर में रक्त की कमी होना, परिवार से उपेक्षापूर्ण या दमनकारी व्यवहार मिलना, ज्यादा भावुक स्वभाव होना आदि कारणों से युवती हिस्टीरिया रोग की शिकार हो जाती है. इसके आलावा कुछ शारीरिक कारण भी होते हैं जैसे लगातार लम्बे समय तक कब्ज़ और अजीर्ण बना रहना आदि. इससे वात कुपित होता है और वायु का गोला नाभि से उत्पन्न होकर ऊपर को उठता है और फेफड़े या ह्रदय या कंठ क्षेत्र पर दबाव डालता है जिससे दम घुटता हुआ मालूम देता है और बहुत बेचैनी होती है, बहुत पीड़ा होती है. ऐसी स्थिति में किसी किसी का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और रोगी कभी हँसता है कभी रोने लगता है कभी कभी सिर घूमने लगता है या यूँ ही हिलने-डुलने लगता है जिसे प्रायः भूत प्रेत बाधा समझ लिया जाता है. ऐसा रोगी कुछ समय के लिए बेहोश हो जाता है.

इन कारणों में से किसी भी कारण से हिस्टीरिया रोग हो सकता है और रोग होने पर ये लक्षण प्रकट होते हैं जो ऊपर लिखे गए हैं. किसी किसी को हिस्टीरिया का दौरा पड़ने से पहले वक्षस्थल में शूल उठता है , शरीर के विभिन्न अंगों में दर्द होता है और मानसिक उत्तेजना के लक्षण अनुभव में आते हैं.यह रोग ज्यादातर युवतियों को ही होता है. जो युवतियां अत्यधिक शर्मीली, संकोची तथा भावुक स्वभाव की होती हैं वे इस रोग का शिकार ज्यादा होती हैं. आजकल टीवी के विभिन्न चैनलों पर कामुक दृश्य धड़ल्ले से दिखाए जा रहे हैं . अश्लील और कामोत्तेजक साहित्य और websites भी आसानी से उपलब्ध रहते हैं और वातावरण भी कामोत्तेजना पैदा करने में सहायक सिद्ध हो रहा है. इन सबसे प्रभावित होने वाली युवतियां उत्तेजना काअनुभव करती हैं और जब उस उत्तेजना का शमन नहीं होता तो उनके मन में व्याकुलता बढ़ने लगती है और युवती को हिस्टीरिया का दौरा पड़ जाता है. हिस्टीरिया का दौरा पड़ने पर भी युवती को यह ज्ञान रहता है की उसे चक्कर आ रहा है और वो गिरने वाली है इसलिए वह गिरने से बचने की कोशिश करती है ताकि चोट न लग जाए इसलिए गिरती तो है पर संभलते हुए गिरती है. इस रोग से ग्रस्त युवती सहानुभूति भरा व्यवहार पाना चाहती है इसलिए अक्सर किसी की मौजूदगी में ही उसे हिस्टीरिया का दौरा पड़ता है.

हिस्टीरिया की चिकित्सा (Ayurveda treatment of hysteria in hindi ) - सबसे पहले यदि कब्ज़ और अजीर्ण हो तो इन्हे दूर करना चाहिए. इसके लिए घी में भुनी हींग, काला नमक और एलुआ - तीनों १०-१० ग्राम लेकर, निम्बू के रस में घोंट कर मटर के दाने बराबर गोलियां बना कर छाया में सूखा लें और शीशी में भर लें. एक-एक गोली सुबह शाम पानी के साथ लेने से कोष्टबद्धता , अजीर्ण, पेट फूलना आदि शिकायतें दूर होती हैं. काम-वासना बढ़ने और उत्तेजना पैदा करने वाले आचार-विचार से बच कर रहना चाहिए. पौष्टिक और शक्तिवर्धक आहार ठीक समय पर दोनों वक़्त लेना चाहिए. किसी भी कारण से मानसिक उत्तेजना उत्पन्न न होने दें. खूब चबा चबा कर भोजन करें. मस्तिष्क को बल देने के लिए शंखपुष्पी टेबलेट १-१ गोली सुबह शाम दूध के साथ लेना चाहिए. सिरप शंखपुष्पी और ब्राह्मी वटी का सेवन भी इस रोग में बहुत लाभ करता है. दौरा पड़ने पर बेहोशी हो जाए तो कायफल का महीन चूर्ण नाक में सूंघना और चेहरे पर पानी के छींटे मरना चाहिए. मधुर वचन बोल कर सांत्वना देना चाहिए और रोगी की इच्छा के विरुद्ध कोई बात या काम नहीं करना चाहिए. उनकी हाँ में हाँ मिलानी चाहिए , किसी बात का विरोध नहीं करनाचाहिए और न ही चिढ़ाने वाली कोई बात करनाचाहिए.

हिस्टीरिया के इलाज के कुछ घरेलु आयुर्वेदिक चिकित्सा (Some Ayurvada home remedies for hysteria treatment )

१) वच और काली मिर्च २०-२० ग्राम लेकर कूटपीस कर महीन चूर्ण कर लें. इस चूर्ण को आधा चम्मच मात्रा में , छाछ के साथ दिन में तीन बार हिस्टीरिया के मरीज को देना चाहिए.
२) जुनदेबेदस्तार ५ ग्राम लेकर खूब कूटपीस कर महीन चूर्ण कर लें. इसकी बराबर बराबर ५० पुड़िया बना लें. एक-एक पुड़िया सुबह शाम शहद के साथ चाट लेंऔर सिरप शंखपुष्पी २-२ चम्मच एक कप पानी में डाल कर पिला दें. यह उपाय लाभ न होने तक जारी रखें.
३) प्रतापलंकेश्वर रस , ताप्यादी लोह १०-१० ग्राम, रोप्य भस्म व् प्रवाल पिष्टी ५-५ ग्राम, मिला कर ४० पुड़िया बना लें और शहद के साथ ऊपर वाली पुड़िया देने के एक घंटे बाद चटा दें.
४) भोजन के बाद दशमूलारिष्ट २ बड़े चम्मच भर आधा कप पानी में डाल दें और अशोक टेबलेट २ गोली मुंह में रख कर ऊपर से दशमूलारिष्ट दोनों वक़्त भोजन के बाद देना चाहिए.
इतनी चिकित्सा निरंतर रूप से लाभ न होने तक करना चाहिए. इस रोग में आयुर्वेदिक चिकित्सा से बहुत लाभ होता है और रोगी हिस्टीरिया बीमारी से मुक्त हो जाता है.