अल्ज़ाइमर्स रोग एक निरंतर बढ़ने वाला रोग है जो स्मरणशक्ति को नष्ट करने के साथ मस्तिष्क के अन्य कार्यों को भी प्रभावित करता है. यह स्मृतिहास (dementia ) का सबसे महत्वपूर्ण कारण होता है. मस्तिष्क की कोशिकाओं का अपक्षय (degeneration ) कर उन्हें नष्ट करने वाले रोग को नियंत्रित करने में आयुर्वेदिक औषधियों की उपयोगिता सम्बन्धी विवरण, इस आर्टिकल में माध्यम से Biovatica .Com आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं.
क्या आप साठ वर्ष से ऊपर की आयु के हैं और आप भूलने की समस्या से पीड़ित हैं? क्या आपको अधिक गुस्सा आने लगा है? क्या आप बोलने में भाषा सम्बन्धी व्यवधान महसूस करते हैं? क्या आप खुद के निर्णय के प्रति आश्वस्त नहीं रहते हैं? क्या आप अक्सर नींद में व्यवधान महसूस करते हैं? यदि ये सब लक्षण हैं तो हो सकता है अल्ज़ाइमर्स रोग आप पर अपना शिकंजा कास रहा हो. यह एक degenerative रोग है जिसमे मस्तिष्क की कोशिकाओं के बीच आपसी संपर्क ख़त्म होने लगता है जिससे स्मरणशक्ति ही कमज़ोर होना शुरू नहीं होती बल्कि धीरे-धीरे मस्तिष्क के अन्य कार्य भी कमजोर होते जाते हैं. अमरीकी अल्ज़ाइमर्स संगठन के अनुसार ६५ वर्ष से अधिक आयु वर्ग में दस में से एक तथा ८५ वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों में ५० प्रतिशत लोगों को यह रोग प्रभावित करता है. दुनिया में लगभग २ करोड़ लोग अल्ज़ाइमर्स से पीड़ित हैं. आइये पहले इस रोग के कारण व् लक्षणों पर चर्चा करते हैं फिर इस रोग के उपचार में वनस्पतियों की उपयोगिता सम्बन्धी चर्चा करेंगे.
हालांकि अल्झाइमर्स रोग की उत्पत्ति के पीछे जिन कारणों की भूमिका रहती है वे स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है लेकिन आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के जानकारों के अनुसार अधिकाँश मामलों में अनुवांशिकी , जीवनशैली और वातावरण तत्वों के मिले जुले , मस्तिष्क पर पड़ने वाले, दुष्प्रभाव के कारण यह उत्पन्न होता है. वैज्ञानिकों ने ने इस रोग से ग्रस्त मस्तिष्क का लेबोरेटरी में सूक्ष्मदर्शी परिक्षण कर यह पता लगाया है की मस्तिष्क की कोशिकाओं के बाहर बीटा - एमिलॉयड नामक प्रोटीन के जमा होने से इन कोशिकाओं का आपसी संपर्क बाधित होता है और इन कोशिकाओं को पोषक तत्व तथा अन्य आवश्यक तत्वों की आपूर्ति करने वाले स्त्रोत में एक प्रोटीन (Tau ) का असामान्य आकार लेकर फंस जाने से मस्तिष्क का आतंरिक परिवहन तंत्र बाधित होता जाता है जिससे धीरे-धीरे ये कोशिकाएं मर कर नष्ट होती जाती हैं.
कुछ जोखिम तत्वों की यहाँ चर्चा करना ज़रूरी है क्यूंकि ये रोग की उत्पत्ति की सम्भावना में वृद्धि करते हैं.
आयु - वयोवृद्धि यानी बढ़ती आयु इस रोग को उत्पन्न करने वाला महत्वपूर्ण तत्व होती है. हालाँकि यह रोग वयोवृद्धि की सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है पर ६५ की आयु पर पहुँचने पर इस रोग के होने की सम्भावना बढ़ने लगती है. कभी कभार अनुवांशिक प्रभाव के चलते ५० वर्ष की आयु में भी इसके लक्षण देखे जाते हैं.
पारिवारिक इतिहास और अनुवांशिकी - यदि किसी व्यक्ति के परिवार में किसी को यह रोग रहा हो तो उसकी इस रोग से ग्रस्त होने की सम्भावना बढ़ जाती है. हालाँकि यह सिर्फ ५% मामलों में देखा गया है.
लिंग - स्त्रियों में यह रोग अधिक होता है शायद इसलिए की वे पुरुषों से अधिक आयु तक जीवित रहती हैं.
सर पर चोट - जिन लोगों को सर पर गंभीर चोट लगी हो या बार बार सर पर चोट लगी हो उनमे भी इस रोग के उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है.
जीवनशैली और ह्रदय का स्वास्थ्य - वे कारक तत्व जो ह्रदय रोग की सम्भावना को बढ़ाते हैं वे इस रोग की उत्पत्ति की सम्भावना को भी बढ़ने वाले होते हैं. जैसे - व्यायाम न करना, धूम्रपान, उच्च रक्तचाप , बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल , अनियंत्रित मधुमेह आदि.
शुरुआत में चीजें या बातें भूल जाना या भृम उत्पन्न होना लक्षण दिखाई देते हैं. पर समय गुजरने के साथ स्मृति नष्ट होना शुरू होती है खासकर हाल ही की बातें या घटनाक्रम याद नहीं रहता.विचारों का समायोजन बिगड़ने लगता है.
कभी कभार कोई बात याद न रहना तो एक सामान्य प्रक्रिया होती है जैसे चाबी रख कर भूल जाना या किसी का नाम एकाएक याद न आना. पर अल्झाइमर्स के रोगी में भूलने की घटनाएं बढ़ती जाती हैं जिससे घर और बाहर के कार्यों में बाधा उत्पन्न होने लगती है. अल्झाइमर्स के रोगी किसी भी बात या प्रश्न को बार बार दोहराते हैं क्यूंकि उन्हें याद नहीं रहता की वे इस बात को पहले बोल चुके हैं या यह प्रश्न पहले पूछ चुके हैं.
याददाश्त में कमी कार्य क्षमता और बोलने की क्षमता को प्रभावित करती है, सामान्य कार्यों को करने में कठिनाई आने लगती है, समय और स्थान के बारे में भृमित हो जाना, कमज़ोर निर्णय, चिंतन से सम्बंधित समस्याएँ , मूड और व्यवहार में परिवर्तन आदि लक्षण धीरे-धीरे उत्पन्न होते हैं दिन, ऋतू, स्थान यहाँ तक की परिवार के सदस्यों के नाम तक आगे चलकर इसका रोगी भूलने लगता है. बोलने-लिखने की क्षमता, विचरने की तथा तार्किक क्षमता भी धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ जाती है.
जब यह रोग बहुत अधिक बढ़ जाता है तो मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तन के कारण कई अन्य समस्याएँ इसके उपद्रव के रूप में रोगी को घेर लेती हैं जैसे - निगलने व् शारीरिक संतुलन बनाये रखने में परेशानी आना, मल-मूत्र त्याग पर नियंत्रण न रहना. निगलने की समस्या के कारण न्युमोनिआ हो जाता है और मूत्र-त्याग पर नियंत्रण न होने से पेशाब की थैली लगाई जाती है. ऐसे ही संतुलन ठीक न होने से इनके गिरने की संभावना रहती है जिससे हड्डी टूटना या सर पर घातक चोट लगने की सम्भावना रहती है.
आहार, व्यायाम व् स्वस्थ जीवन शैली शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी बनाये रखने वाले होते हैं यानी इनके द्वारा इस रोग से भी बचाव संभव है.
१) नियमित व्यायाम करें.
२) कम वसा वाला और फल व् सब्ज़ियों से भरपूर आहार लें.
३) मानसिक सक्रियता बनायें रखें.
४) सोच सकारात्मक रखें.
इन तीनो औषधियों के अलावा ब्राह्मीघृत एक चम्मच रोज रात को सोते समय दूध के साथ दें तथा ४ चम्मच सारस्वतारिष्ट और २ चम्मच अश्वगंधारिष्ट संभाग पानी में मिलाकर दोनों वक़्त के भोजन के बाद दें