बवासीर ऐसा रोग है जो एक बार हो जाए तो आसानी से ठीक नहींबवासीर ऐसा रोग है जो एक बार हो जाए तो आसानी से ठीक नहीं होता. यह दो प्रकार का होता है, बादी और खूनी. बादी बवासीर में सिर्फ मस्से फूल जाते हैं जिनसे भारी कष्ट होता है जबकि खूनी बवासीर में खून गिरता है जिससे रोगी मानसिक रूप से भी दुखी और व्याकुल रहता है. खानपान में सख्ती से परहेज़ करना इस रोग की चिकित्सा में ज्यादा महत्वपूर्ण और लाभकारी सिद्ध होता है क्योंकि ज्यादातर यह रोग खानपान में बदपरेजी करने तथा लंबे समय तक कब्ज़ बने रहने से होता है.
आहार-विहार में अनियमितता के कारण उदर रोगों में अपच, कब्ज़, अम्लपित्त, अतिसार, आम-प्रवाहिका और अर्श (बवासीर) जैसे अनेक रोगों से ग्रस्त होना आजकल आमतौर पर पाया जाता है. इन रोगों में से एक रोग अर्श यानी पाइल्स या बवासीर के विषय में biovatica .कॉम ने इस लेख में उपयोगी विवरण प्रस्तुत किया है.
गुदा के मुख में छोटे-छोटे अंकुर (मस्से ) होते हैं. इनमे से एक, दो या अनेक मस्से फूल कर बड़े हो जाएँ तो तो इस स्थिति को आयुर्वेद में 'अर्श' कहा जाता है. "अरिवत प्राणन श्रणाती इती अर्शह " के अनुसार ये अंकुर फूल कर जब बड़े हो जाते हैं प्राणों को शत्रु की तरह पीड़ा देते हैं. इसीलिए इस रोग को अर्श कहा जाता है. गुदा के मस्से पहले कठोर होना शुरू होते हैं जिससे गुदा में कोचन और चुभन सी होने लगती है. गुदा को हाथ से स्पर्श करने और जल से शौच क्रिया करने पर कष्ट का अनुभव होता है. यह अर्श रोग की प्रारम्भिक अवस्था होती है. ऐसी स्थिति होते ही व्यक्ति को सतर्क हो जाना चाहिए. ऐसा ना करने पर मस्से फूलते जाते हैं और एक-एक मस्से का आकार मटर के दाने या चने के बराबर हो जाता है. ऐसे स्थिति में मॉल विसर्जन करते समय तो भारी पीड़ा होती ही है बैठने तक में पीड़ा होती है लिहाज़ा बवासीर का रोगी सीधा बैठ नहीं पाता. यह बादी बवासीर होती है. बवासीर रोग में यदि खून भी गिरे तो इसे खूनी बवासीर (रक्तार्श) कहते हैं. यह बहुत भयानक रोग है क्योंकि इससे पीड़ा तो होती ही है साथ में शरीर का खून व्यर्थ नष्ट होता है. चरक संहिता के अनुसार, प्रकुपित हुई पाँचों वायु एवं पित्त व् कफ व्यक्ति पर आक्रमण कर इस अर्श अर्थात बवासीर रोग को उत्पन्न कर देते हैं.
Causes of piles in Hindi (बवासीर रोग के कारण हिंदी में ) -
बवासीर रोग का प्रमुख कारण है लंबे समय तक कठोर कब्ज़ बना रहना . दोनों वक़्त सुबह - शाम शौच ना जाने या जाने पर ठीक से पेट साफ़ ना होने और काफी देर तक शौचालय में बैठने के बाद मल निकलने , जोर लगाने पर मल निकलने या जुलाब लेने पर मल निकलने की स्थिति को कब्ज़ होना कहते हैं . कई लोगों की ये आदत होती है की सिर्फ सुबह के वक़्त शौच जाते हैं और शाम के वक़्त जाते ही नहीं . अब ज़रा इस बात पर गौर करें की एक व्यक्ति शाम को शौच नहीं जाता इसका परिणाम यह होता है की जो मल शाम को निकल जाता - वह शाम को शौच के लिए नशि जाने से , रात भर मलाशय में पड़ा रहेगा जिससे पेट में उष्णता बढ़ेगी , मल सड़ेगा तो गैस बनेगी और मल सूखेगा तो ऊपरी परत कठोर हो जायेगी और मल भी रात भर सूखकर कठोर हो जाएगा . इसलिए इस व्यक्ति जब सुबह शौचालय में बैठता है तो मल निकलने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है . ऐसी स्थिति में जो जोर लगाते हैं और आमतौर पर लगाते ही हैं ताकि मल बाहर निकल सके , वे बवासीर के रोगी हो जाते हैं क्योंकि एक तो , ज़ोर लगाने से गुदा के मस्सों पर बार - बार जोर पड़ता है व् उनमे तनाव आ जाता है . दूसरे , ज्यादा अवधि तक मलाशय में पड़ा रहने से मल सूख कर कठोर हो जाता है और गैस पैदा करता है . कठोर मल जब बलपूर्वक निकलता है तो गुदा की कोमल वलियों और मस्सों पर रगड़ मारता है उधर गैस यानी वायु कुपित होकर मस्सों पर तनाव व् दबाव डालती है इन सब कारणों का ही परिणाम होता है मस्सों का फूलना . अनुचित ढंग से गरिष्ठ , तले हुए , नमकीन , तेज मिर्च - मसालेदार , उष्ण और वातवर्धक ( बादी बढ़ाने वाले ) पदार्थों का अतिसेवन करने से और वक़्त - बेवक़्त भोजन करने से अपच और कब्ज़ होता ही है . जब लंबे समय तक ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है तो बवासीर रोग होता है .
बवासीर के आयुर्वेदिक उपचार - सबसे पहली चिकित्सा तो ये करना चाहिए की सुबह शाम शौच करके , पानी से गुदा धोने के बाद, स्वमूत्र से गुदा को धोएं . एक डिब्बे या शीशी में अपना मूत्र ले कर रख लें . शौच से निवृत होकर, गुदा प्रक्षालन से फारिग होकर इस मूत्र से गुदा को धोएं. इसके बाद गुदा को पानी से नहीं धोना है सिर्फ हाथ से धोना है. गुदा से लगा मूत्र थोड़ी ही देर में सूख जाता है. यह प्रयोग इतना कारगर और फायदेमंद है की, कितने हो रोगियों को, बवासीर की प्रारम्भिक अवस्था में ही यह प्रयोग करने से बवासीर से छुटकारा मिल गया.
दूसरा उपाय यह है की सुबह, शाम और सोते समय रुई के फाहे को " कासीसादि तेल " में डुबो कर गुड के मस्सों पर पूरा आराम न होने तक प्रतिदिन लगाने से मस्से ठीक हो जाते हैं. यदि खूनी बवासीर हो तो रात को कासीसादि तेल ना लगाकर 'दुर्वाधिगृत' का फाहा लगाना चाहिए या दिन में भी लगाना जरुरी हो तो लगा सकते हैं. अलग-अलग वक़्त में 'कासीसादि तेल' और 'दुर्वाधिगृत' दोनों का प्रयोग कर सकते हैं सिर्फ यह ख़याल रखें की 'दुर्वाधिगृत' का प्रयोग सिर्फ खूनी बवासीर में, खून गिरना रोकने के लिए ही किया जाता है.
तीसरा उपाय यह है की भोजन के बाद 'अभयारिष्ट' २-२ चम्मच सुबह शाम आधा कप पानी में डालकर पीना चाहिए. 'अर्शकुठार रास' की १-१ गोली इसी के साथ ले लें. यह दोनों दवाएं दोनों प्रकार की बवासीर को ठीक करने के लिए उत्तम हैं. पूर्ण लाभ ना होने तक सेवन करते रहे.
चौथा उपाय यह है की फिटकरी को भून कर पीस लें और शीशी में भर कर शौचालय में रख लें. शौच करने के लिए जिस पानी का प्रयोग करें उस पानी में आधा चम्मच यह फिटकरी डाल कर घोल लें. इस पानी से ही गुड धोना चाहिए.
पांचवा उपाय यह है की सोते समय हेदेंशा या पाईलेक्स ऑइंटमेंट या कोई वेसलीन गुड में जरूर लगा लिया करें. इससे गुड के मस्से नरम रहेंगे और सुबह मॉल निकलने में सुविधा रहेगी.
आयुर्वेद ने बवासीर के लिए कुछ परहेज बताये हैं जो इस प्रकार हैं --> तले हुए, लाल मिर्च व् मसालेदार , खटाईयुक्त, बादी करने वाले व् उष्ण प्रकृति के पदार्थों का सेवन कतई बंद रखें . अरहर की दाल, बैंगन, अरबी और बेसन की चीजें ना खाएं. छिलके वाली मूंग की दाल , गिलकी, तोरई,पालक, हरी सब्ज़ियां और कच्चे सलाद का सेवन जरूर करें.
बवासीर (पाइल्स ) के लिए आयुर्वेदिक घरेलु नुस्खा ( Ayurveda home remedy for piles in hindi ) - नारियल के ऊपर की जटा लेकर माचिस की तीली से जला दें. जब जटाएं जल जाएँ तब इसकी राख को छान कर कांच के साफ़ जार में भर कर रख दें. ताज़ा जमा हुआ दही एक कटोरी भर लेकर इसमें एक चम्मच यह राख घोल दें. इस राख के अलावा दही में शक्कर या मिर्च मसाला कुछ भी न डालें. इस घोल को सुबह उठते ही बिना कुछ खायेपीये , पी जाएँ. इसके एक डेढ़ घंटे बाद तक कुछ खाएं पियें नहीं. ऐसा तीन दिन तक करें. खून गिरना बंद हो जाएगा और मस्से सूख जायेंगे. खुनी और बादी बवासीर जड़ से चली जाएगी.
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Regular readers or visitors of this website know very well that there are only two conditions for a healthy body. First condition is stomach should be clean and second condition is mind should be clean. If stomach is not clean and healthy then it causes several diseases. One of these diseases is piles (or haemorrhoids).
Piles is a very painful disease. If piles is not treated or controlled at an early stage then it keeps increasing and even makes sitting and getting up very difficult for the patient. In this disease sprouts of anus become enlarged and take the size of a pea or grape. In fact, these sprouts are abnormally swollen blood vessels on the walls or joint of anus. Based on its position it is called external or internal haemorrhoids (external or internal piles).
Causes of piles (haemorrhoids):- wrong eating habits, eating wrong foods, irregular or idle daily routine and fast foods are parts of today's modern lifestyle. Due to these things people suffer from disease like constipation. Why does constipation occur? Consumption of Heavy, lubricious, fried or spicy food is the major cause of constipation. Regular and heavy consumption of these foods causes digestion problems and result in continuous constipation.Constipation causes dryness of stool. Due to constipation stool becomes dry and hard. Patient then applies extra force or pressure for the hardened stool. Hardened stool causes more resistance with the walls of anus and causes damage to the blood vessels there. Due to this these blood vessels of anus gets swollen and piles disease strikes.
Though constipation is the main cause of haemorrhoids (piles) but there can be some other causes as well. These causes are genetic effects, lazy or inactive daily routine, long sitting jobs, eating wrong foods in odd times, consumption of tea and coffee in large amounts, intestine problems, drug abuse, angry and jealous nature, mental stress, worry and pregnancy etc.
Symptoms of piles: - piles or haemorrhoids is a disease which is found equally in both men and women. Many people suffer from this disease but it is not necessary that everyone should show the signs and symptoms. There are two types of piles:-
external piles (external haemorrhoids)
internal piles (internal haemorrhoids)
External piles (external haemorrhoids) – in this type of piles, sprouts are found outside the anus. Its patients suffer from pain inflammation and itching in the sprout's spots but there is no bleeding in external piles (haemorrhoids). Patient feels some wetness due to mucus.
Internal or bleeding piles (internal or bleeding haemorrhoids) – in this type of piles there is some bleeding with pain from the sprouts. It has four stages or grades based on the position of sprouts.
Grade 1 – in this, sprouts are present inside the anus and they cannot be felt from outside but sprout bleeds and patient suffer from pain bleeding.
Grade 2 – in this, sprouts comes out at the time of stool and goes back automatically after the stool.
Grade 3 – this stage is similar to grade 2 but in this sprouts needs to be inserted back with the help of fingers.
Grade 4- in this stage sprouts are always present outside the anus.
Due to bleeding, internal piles causes loss of blood in the body which result in weakness. At the time of passing the stool, pain and inflammation remains in internal piles.
1) First of all, patient should get rid of constipation and hyperacidity. For this, patient should drink more water and liquids in daily life. Avoid the foods which are heavy in digestion and are very spicy. Patient should eat lots of vegetables and fruits. Intake of green vegetables must be increased. “Whey” ( chhanchh ) is just like nectar for the piles patient. Patient should drink whey with jeera namak 2-3 times a day regularly to get rid of piles.
2) Take 20 gram butter ( makkhan) and 20 gram kaale til. Mix them properly and it every morning with much chewing for few days. This Ayurvedic home remedy cures the piles (haemorrhoids) within few days.
3)
Haemorrhoid is a small blood tumour at the anal orifice. It is also called piles. Haemorrhoids can be bleeding or non-bleeding. Non bleeding piles are called blind piles. Haemorrhoids are almost always painless & are associated with bleeding (in case of bleeding piles) during stool. Piles can be internal (within the anus) or external (tumour outside the anus).
Causes of haemorrhoids:
Defective nutrition
Lack of fibrous food
Hard stool
Habitual constipation
Sedentary habits (lack of exercise)
Spicy, seasoned food
Pregnancy
Chronic alcoholism
Dietary advice:-
Intake of water should be increased
Diet should contain fibrous food
Exercise
Relieving bowel on a daily basis.
Acupressure treatment:
SI 5
L 17
P 4, 8
K 8
Sp 1, 20
UB 18. 65
GB 39
Reflex points: diaphragm, adrenal, rectum, sigmoid colon(large intestine), back of the heel, kidney.