पथ्य आहार-विहार के अंतर्गत पानी के उपयोग के बारे में यह जानना जरुरी है की पानी अत्यावश्यक और दैनिक जीवन में कई बार सेवन योग्य पदार्थ होते हुए भी , किस प्रकार इसका सेवन करना चाहिए और किस प्रकार नहीं करना चाहिए , किसी रोग से ग्रस्त होने पर पानी का सेवन करने के नियम क्या हैं? ऐसे कुछ स्वास्थ्य हितकारी, महत्वपूर्ण और उपयोगी प्रश्नो के उत्तर यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं.
विशिष्ट परिस्थितियों एवं रोगग्रस्त अवस्था में पानी का सेवन करने की मात्रा और विधि के विषय में चर्चा शुरू करने से पहले सामान्य रूप से स्वस्थ व्यक्ति को किस प्रकार पानी का सेवन करना चाहिए इस मुद्दे पर चर्चा करना उपयोगी होगा.
प्रायः ज्यादातर लोगों की आदत एक बार में ही अधिक मात्रा में पानी पीने की होती है यानी एक गिलास पानी पीकर उन्हें संतोष नहीं होता. कई लोग भोजन करते करते तो पानी पीते ही हैं भोजन के अंत में भी १-२ गिलास पानी पी जाते हैं. यह तरीके गलत हैं क्यूंकि इससे जठराग्नि ठंडी हो जाती है और आहार के पाचन में देर लगने से अजीर्ण यानी अपच होने की स्थिति बनती है. थोड़े समय बाद इस आदत के फलस्वरूप मंदाग्नि , अजीर्ण, आध्मान आदि कई उदर रोग, विशेष कर कब्ज़ हो जाता है. कब्ज़ होना कई रोगों को उत्पन्न करने का मुख्य कारण होता है.
इसी तरह भूख लगने पर भोजन के पहले पानी पीना भी गलत आदत है. भूख लगने पर भोजन करने से आहार अच्छी तरह पच जाता है लेकिन भोजन के पहले पानी पीने से पाचक रस घुल जाते हैं और जठराग्नि ठंडी हो जाती है इसलिए भोजन के पहले पानी पीना भी हानिकारक होता है. शौच जाने के बाद, धुप में से आकर , व्यायाम या परिश्रम करके तत्काल पानी पीना भी ऐसी ही हानिकारक आदत है. थोड़ा आराम करके व् पसीना सुखाकर ही पानी पीना चाहिए.
प्रातः सूर्योदय से पहले उठ कर पानी पीना सबसे श्रेष्ठ नियम है. उठते ही ३-४ गिलास पानी पी कर शौच क्रिया करनी चाहिए. इस नियम का पालन करने से अम्लपित्त और कब्ज़ होने की शिकायत नहीं होती और यदि ऐसी स्थिति हो तो दूर होती है. दिन भर में १-१ घंटे से एक एक गिलास पानी पीना चाहिए. इस तरह दिन भर में ८-१० गिलास पानी पीना स्वास्थ्य और त्वचा के सौंदर्य के लिए बहुत गुणकारी होता है.
(१) ठंडा पानी (cold water ) - पित्त प्रकोप, गर्मी, जलन, विष विकार, रक्त विकार, परिश्रम करते हुए, कब्ज़ और प्यास लगने पर ठंडा पानी पीना हितकर है. उलटी होने पर, भोजन के पहले और अंत में ठंडा पानी पीना हानिकर है.
(२) गरम पानी (hot water ) - जुकाम, पेट में दर्द, बवासीर, वात विकार, अफारा , नया ज्वर, मंदाग्नि, अरुचि, नेत्र रोग, संग्रहणी, कफ प्रकोप , श्वास, खांसी, हिचकी, आदि रोगों में गरम पानी या गरम करके ठंडा किया हुआ पानी पीना हितकर है. गरम किया हुआ पानी शाम तक और शाम को गरम किया हुआ पानी सुबह तक रोगी को पीना चाहिए. रक्त पित्त, मूर्छा, रक्त विकार और पित्त प्रकोप के रोगी के लिए गरम पानी पीना हानिकर है.
(३) अधिक पानी पीना (drinking more water ) - एक ही वक़्त में अधिक मात्रा में पानी पीना अपच व् मंदाग्नि करने वाला होने से हानिकर होता है.
इन तीन विशेष नियमों के अलावा पानी पीने के विषय में आर्टिकल के आरम्भ में जो चर्चा की जा चुकी है उसे ध्यान में रखकर उचित विधि और मात्रा के अनुसार ही पानी का सेवन करना पथ्य आहार विहार करना है.