कभी-कभी किसी को अचानक चक्कर आने लगते हैं और व्यक्ति समझ नहीं पाता की चक्कर क्यों आ रहे हैं. इस विषय में उपयोगी और वैज्ञानिक विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है. चक्कर आने की तकलीफ, जिसे मेडिकल भाषा में वर्टिगो (vertigo) या डिज़्ज़िनेस्स (dizziness ) कहते हैं , कई कारणों से होती है और सही इलाज किया जा सके इसके लिए यह ज़रूरी है की आवश्यक जांचें कर के चक्कर आने का सही कारण मालूम किया जाए.
शरीर का संतुलित बना रहना एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा शरीर अपनी स्थिति यानि पोजीशन को चलते फिरते, हिलते डुलते, दौड़ते भागते और गति परिवर्तित करने और विश्राम के दौरान संतुलित बनाये रखता है. यह प्रक्रिया तीन सिस्टम्स पर निर्भर रहती है जैसे आँखों की दृष्टि, समन्वयकारी रचना तंत्र यानि वेस्टिबुलर (vestibular ) सिस्टम तथा मांसपेशियों, जोड़ों और त्वचा में मौजूद रिसेप्टर्स यानि प्रोप्रियसेप्टिव (proprioceptive ) तंत्र. इसमें वेस्टिबुलर तंत्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है और इसे इसलिए छठी इंद्री (sixth सेंस) कहा जाता है.चक्कर आने में इस छठी इंद्री का काफी हाथ होता है इसलिए इस मुद्दे को ठीक से जान समझ लेना हम सबके लिए उपयोगी सिद्ध होगा.
किसी भी प्रकार की गति या गति परिवर्तन के कारण वेस्टिबुलर लेबिरिंथ की रचनाओं में शीयरिंग मोशन (shearing motion ) होती है जिसके फलस्वरूप अंदरूनी कान की सेंसरी (sensory )हेयर कोशाओं में मेकेनिकल एनर्जी, हलकी विद्युत् धरा (electrical current ) में परिवर्तित हो जाती है जो वेस्टिबुलर नाड़ी द्वारा , सिर में स्थित केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में सम्बंधित भागों में प्रवाहित होती है.दिमाग में, एक जटिल प्रक्रिया द्वारा , पुराणी याददाश्त के आधार पर, सिर या शरीर की स्थिति या गति परिवर्तन का विश्लेषण होता है एवं संतुलित बनाये रखने की प्रक्रिया संपन्न होती है. संतुलन की इस प्रक्रिया में , दाहिनी एवं बायीं ओर के वेस्टिबुलर तंत्र, जो की अलग-अलग कार्य करते हैं, में आपसी सामंजस्य- संतुलन भी ज़रूरी होता है. इसी प्रकार आँखों द्वारा देखने की प्रक्रिया, वेस्टिबुलर तंत्र एवं प्रोप्रिएसेप्टिव तंत्र में भी संतुलन-सामंजस्य बना रहना ज़रूरी होता है चूँकि संतुलन की प्रक्रिया में कान, केंद्रीय नान्त्रिका तंत्र, ऑटोनोमिक तंत्रिका तंत्र, आँखों, लोकोमोटर तंत्र की प्रत्यक्ष भूमिका के साथ-साथ रक्त, कार्डियोवैस्कुलर तंत्र यानी रक्त-प्रवाही एवं एंडोक्राइन ग्रंथियों की भी अप्रत्यक्ष भूमिका होती है अतः इनमे से किसी की कार्यप्रणाली में अवरोध या असंगति होना, जो की विभिन्न प्रकार की बिमारियों या स्थितियों के कारण होता है, या कभी कभी सामान्य व्यक्ति में भी असामान्य परिस्थितियों में होता है, असंतुलन का कारण बनता है. यह असंतुलन विभिन्न प्रकार का हो सकता है जैसे वर्टिगो(vertigo ), डिज़्ज़िनेस्स (dizziness ) या फाल्स (falls ). असंतुलन के इन प्रकारों में थोड़ा खुलासा बताते हैं.
वर्टिगो (vertigo ) - ऐसा लगना जैसे सब कुछ घूम रहा है, वातावरण घूम रहा है, घर घूम रहा है, अपन स्वयं घूम रहे हैं ऐसी भृम की स्थिति में जो अस्थिरता और बेचैनी का अनुभव होता है और सिर चकराने लगता है इसे वर्टिगो यानि चक्कर आना कहते हैं.
डिज़्ज़िनेस्स (dizziness ) - ऐसा लगना जैसे गिर पड़ेंगे, बैठे रहने, खड़े रहने या चलते समय संतुलन न रहना और गिरने का भृम होना, ऐसा लगना जैसे सिर में कुछ चल रहा है या सिर बिलकुल ख़ाली हो गया है, तैरने या डूबने जैसा लगना आदि इसे गिडिनेस्स(Giddiness ) कहते हैं.
चक्कर (वर्टिगो) कई तरह के होते हैं जैसे एक ही बार (सिंगल अटैक) चक्कर आये और कुछ दिन या सप्ताह तक न आये. कभी-कभी अचानक चक्कर आये, अचानक बंद हो जाए और पुनः कुछ क्षणों या दिनों या सप्ताह बाद आ जाए. सिर की किसी विशेष स्थिति में चक्कर आना जो की एक मिनट से भी कम में ही बंद भी हो जाता है. ऐसे चक्कर आना जो महीनों या सालों तक आते ही रहते हैं (क्रोनिक वर्टिगो) . चक्कर की बीमारी के साथ और भी शिकायतें हो सकती हैं जैसे जी मचलाना , घबराहट होना, उलटी होना या उलटी होने जैसा लगना, सुनने में कमी होना, कान में आवाज़ होना आदि. चक्कर आने के कई कारण होते हैं, इनमे से कुछ कारणों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :-
१.) फिसिओलॉजिकल - सामान्य व्यक्ति, स्वस्थ अवस्था में यानि कोई भी बीमारी न होने के बावजूद , अधिक ऊंचाई से निचे देखे, किसी घूमती हुई चीज़ को देखे, अचानक मुड़े, तेज़ झूला झूले , स्वयं गोल गोल घूमे, बस में यात्रा करते समय हिचकोले खाये (motion sickness ) तो उसे चक्कर आने लगते हैं. ये सब फिसिओलॉजिकल (phisiological ) यानि शारीरिक कारण हैं जिनसे मनुष्य को चक्कर आने लगते हैं.
2 बिनाइन पराक्सिस्मल पोसिशनल वर्टिगो (Benign paroxysmal positional vertigo (BPPV) ) - इस स्थिति में, एक तरफ के कान के अंदरूनी भाग में पीछे की तरफ स्थित अर्धवृत्ताकार नलिका की संरचना में कोई परिवर्तन आ जाने से गुरुत्वाकर्षण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है और सिर की स्थिति बदलने पर चक्कर आते हैं. ऐसे चक्कर आगे झुकने, ऊपर देखने , बिस्तर पर लेटने , करवट बदलने , यकायक झटके से उठकर बैठने या खड़े होने आदि स्थितियों में आते हैं. ऐसे चक्कर एक मिनट से कम समय तक रहते हैं और आते hi रहते हैं. एक बार चक्कर बंद होने के बाद फिर सालों तक नहीं आते इसलिए इसे बिनाइन कहा जाता है.
३. वेस्टिब्युलर नुरोनाइटिस (vestibular neuronitis ) - ये चक्कर अचानक आते हैं. अक्सर मरीज को नींद में से जगा देते हैं.ये चक्कर कुछ समय तक तेजी से आते रहते हैं फिर कम होते जाते हैं. इसके बाद काफी समय तक अस्थिरता व् असंतुलन की स्थिति बनी रहती है. इन मरीजों की श्रवण शक्ति सामान्य होती है. इस प्रकार के चक्कर का अभी तक सही कारण ज्ञात नहीं हो पाया है फिर भी इतना तो पता चल ही गया है की वायरस या अन्य प्रकार के संक्रमण (infection ) इसमें प्रमुख कारण होते हैं. मधुमेह के रोगी इस प्रकार की शिकायत का अनुभव कर सकते हैं.
इन प्रमुख कारणों के अलावा और भी कई कारण होते हैं जिनसे चक्कर आने लगते हैं जैसे - अंदर के कान को नुकसान पहुँचाने वाले इयर ड्राप डालना, दर्दनाशक गोलियां खाना, सिर या कान में चोट लगना. मस्तिष्क को पर्याप्त मात्रा में रक्त या ऑक्सीजेन न मिलना, मधुमेह या गुर्दे की बीमारी, माइग्रेन का दर्द बना रहना, वृद्धावस्था के कारण पैदा हुई कमजोरी, गर्दन की बीमारी जैसे सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस, आँखों की कोई बीमारी होना, रक्त की कमी (अनिमिआ) होना, पेट में कीड़े होना, हाइपोग्लाइसीमिया यानि रक्त में शर्करा (ब्लड शुगर) की कमी होना, शराब पीने का शरीर के स्नायविक संस्थान पर असर होना, रक्तचाप का गिरना यानि लो ब्लड प्रेशर होना, अधिक भय या चिंता , मनोकामनाओं का दमन होना, स्नायविक संसथान का कमजोर होना, नपुंसकता या यौन शक्ति में कमी होना, ज़्यादा भूखे रहना, कान की कुछ बीमारियां, शारीरिक कमज़ोरी और थकावट, दिमागी कमज़ोरी और थकावट, अर्दित यानी चेहरे पर लकवा, स्त्रियों में मीनोपॉज यानी रजोरोध का समय होना, लम्बी बीमारी के कारण ज्यादातर बिस्तर पर लेटे रहना आदि कई कारणों से चक्कर आने यानी वर्टिगो की शिकायत हो जाती है.
चक्कर की बीमारी यानि वर्टिगो का निदान रोगी से की गई सघन पूछताछ , क्लीनिकल हिस्ट्री और परिक्षण आदि आवश्यक जांचों द्वारा किया जाता है. कारण की जानकारी प्राप्त होने पर उस कारण को दूर करने की उचित चिकित्सा किसी रोग विशेषज्ञ से करानी चाहिए.