अथर्व वेद में कहा गया है :- माता, पिता और गुरुजन आदि देवात्माओं द्वारा दिए गए आनंद दायक एवं कल्याणकारी उपदेश के अनुसार मूलयवान ब्रह्मचर्य का पालन कर तथा शरीर को पुष्ट करने वाला व्यायाम कर, हम रस , रक्त आदि धातुओं का शोषण करने वाले रोगों, कीटाणुओं, विकारों तथा काम क्रोध आदि मानसिक विकारों से शरीर की रक्षा करते हैं एवं शरीर और स्वास्थ्य के शत्रुओं को हम परास्त करते भगा देते हैं.
विमर्श - अथर्व वेद के इस मन्त्र में ब्रह्मचर्य और व्यायाम का महत्त्व बताया गया है. ब्रह्मचर्य का पालन करने से शरीर और स्वास्थ्य की रक्षा होती है यानी शरीर कमज़ोर और बीमार होने से बचा रहता है तथा व्यायाम से शरीर और स्वास्थ्य की वृद्धि तथा पुष्टि होती है. इन दोनों के प्रभाव से शरीर स्वस्थ और बलवान बना रहता है. शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बानी रहती है जिससे वह रोगों और कीटाणुओं का मुकाबला कर बीमार होने से बचा रहता है. इसलिए ब्रह्मचर्य का पालन करना और व्यायाम करना प्रत्येक मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है. यदि दीर्घायु तक स्वस्थ और बलवान शरीर वाले बने रहना चाहते हैं तो ब्रह्मचर्य का पालन करें और व्यायाम करते रहें.
अथर्व वेद में यह भी कहा गया है की ब्रह्मचर्य का पालन और तपस्या करके देव पुरुषों ने मृत्यु को मार भगाया है. ब्रह्मचर्य का पालन कर यह जीवात्मा इन्द्रियों से दुर्लभ सुख को प्राप्त करता है.
विमर्श - जीवात्मा अपने कर्मो के शुभ-अशुभ फल भोगने के लिए, नाना प्रकार की योनियों में बार-बार जन्म लेता है और मरता है. केवल मनुष्य योनि ही ऐसी है जिसमे वह फल भोगने के साथ साथ नए कर्म भी करता है जबकि इस योनि के अलावा अन्य सभी योनियों में जीवात्मा सिर्फ पूर्व कर्मो का फल ही भोगता है नया कर्म नहीं करता. इसीलिए भागवत के अनुसार - मनुष्य जन्म सभी जन्मो में उत्कृष्ट है. इस मनुष्य जीवन का सदुपयोग कार्नर, उचित उपभोग करने और अच्छे कर्म कर आत्मोन्नति करने के लिए हमें ब्रह्मचर्य का पालन और व्यायाम का नियमित अभ्यास अवश्य करना चाहिए ताकि हम इस जीवन में लम्बे समय तक स्वस्थ और बलवान बने रह सकें और शुभ कर्म करते