आयुर्वेद में श्वास-खास रोगों के लिए कई उत्तम योगों का प्रावधान है. श्वास रोग में ख़ास का तमक श्वास (Bronchial Asthma) में उपयोगी एक आयुर्वेदिक योग "कनकासव" का परिचय यहाँ आपसे करा रहे हैं. कनकासव के घटक द्रव्य और निर्माण विधि का विवरण भी प्रस्तुत किया जा रहा है. वैसे किसी भी अच्छी आयुर्वेदिक फार्मा कंपनी द्वारा निर्मित इस योग का बाज़ार से खरीद कर भी सेवन किया जा सकता है.
कनकासव के घटक द्रव्य (ingredients of kanakasava) - धतूरे का पंचांग ६० ग्राम, वासा मूल ६० ग्राम; मुलहठी, पीपल, कटेली, नागकेशर, सौंठ, भारंगी, तालीसपत्र - प्रत्येक का चूर्ण ४५-४५ ग्राम; धाय के फूल ३७५ ग्राम; साफ़, कुचली हुई बीजरहित मनुक्का ४५० ग्राम; शक्कर २ किलो २५० ग्राम; शहद एक किलोग्राम और पानी सवा लीटर.
कनकासव निर्माण विधि (preparation method of kanakasava) - सभी द्रव्यों का अच्छे से मिलाकर मिटटी के पात्र में डाल कर, मुंह बंद कर संधान विधि से एक माह तक रखें. बाद में निकाल कर छान कर कांच के पात्र में सुरक्षित रख लें.
कनकासव मात्रा और सेवन विधि ( kanakaasav quantity and dosage ) - १० ml से २० ml या २ से ४ चम्मच छोटी चम्मच मात्रा में आधा कप पानी में मिलाकर दोनों वक़्त के भोजन उपरान्त सेवन करें.
कनकासव के लाभ (Advantages and health benefits of kanakasava) - कनकासव खांसी और श्वास रोगों के लिए उत्तम औषधि है. श्वास नलिकाओं में शोथ होने से उत्पन्न होने वाली खांसी और श्वास में यह अच्छा काम करता है. इसके सेवन से श्वास नलिकाओं की संकुचित होने की प्रवृत्ति (bronchospasm ) नष्ट होती है तथा कफ आसानी से बाहर निकलने लगता है. जिससे दमा के कारण होने वाली घबराहट व् बेचैनी तत्काल दूर हो जाती है. इसके अलावा यह आसव राजयक्षमा, जीर्णज्वर, रक्तपित्त, पित्ताशय की पथरी, हिचकी आदि में भी बहुत लाभ करता है. पित्ताशय की पथरी से उत्पन्न दर्द के शमनार्थ इसका अच्छा उपयोग होता है. कनकासव का उपयोग कम मात्रा में करना चाहिए अन्यथा विष प्रकोप होता है. यदि श्वास रोग में कफ अत्यधिक जमा हो गया हो तो कनकासव के साथ अपामार्ग क्षार मिला कर देने से तुरंत लाभ होता है.