अश्वकंचुकि रस आयुर्वेद शास्त्र की अनुपम औषधि है. इस औषधि की महत्ता और उपयोगिता इसके अनुपान भेद में है. अनुपान का अर्थ है जिस सहायक वस्तु के साथ मुख्य औषधि का सेवन किया जाए वह अनुपान कहलाती है. आयुर्वेद में ऐसी सहायक वस्तु यानी अनुपान के रूप में शहद, दूध, घी, गर्म पानी, काढ़ा आदि का प्रयोग बहुतायत में होता है. इन सहायक अनुपान के साथ सेवन करने से मुख्य औषधि के गुण और प्रभाव बदल जाते हैं और एक ही औषधि विभिन्न अनुपानों के साथ भिन्न भिन्न प्रकार के रोगों में प्रभावी सिद्ध होती है. अश्वकंचुकि रस भी ऐसी ही एक मुख्य औषधि है जिसे अलग-अलग रोगों में अलग-अलग अनुपान से देकर लाभ उठाया जाता है. इस लिए इस रस का प्रयोग अनुभवी वैद्य ही करते हैं. यहाँ हम एक जरुरी बात बता दें की यह औषधि जितनी लाभदायक है उतनी ही खतरनाक भी हो सकती है क्यूंकि इस औषधि में जमाल घोटा नामक घटक द्रव्य भी होता है जो की तीव्र विरेचक (दस्तावर) होता है अतः इसकी थोड़ी सी भी अधिक मात्रा लेने पर तीव्र दस्त लग सकते हैं और हानि पहुँच सकती है. यह योग इसी नाम से बना बनाया बाज़ार में मिलता है.तो लीजिये, अश्वकंचुकि रस की निर्माण विधि, घटक द्रव्य एवं मात्रा व् सेवन विधि से सम्बंधित विस्तृत जानकारी यहाँ प्रस्तुत है :-
अश्व कंचुकी रस के घटक द्रव्य (ingredients of Ashwa Kanchuki Rasa ) :- शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, शुद्ध बच्छनाभ, सुहागे का फूला, शुद्ध हरताल, हरड़, बहेड़ा, आंवला, सौंठ, काली मिर्च, पीपल और शुद्ध जयपाल (जमाल घोटा ) - सभी समभाग तथा आवश्यकतानुसार भांगरे का रस.
अश्व कंचुकी रस निर्माण विधि (preparation method of Ashwakanchuki Rasa ) - सबसे पहले शुद्ध पारद और शुद्ध गंधक को खरल में अच्छी तरह घोंट कर कज्जली बना लें. अब इस कज्जली में शेष सभी औषधियों का बारीक कपड़छान चूर्ण बनाकर अच्छे से मिला लें तथा आवश्यकतानुसार भांगरे का रस इसमें मिलाकर खूब घुटाई कर छाया में सूखा लें. इस तरह भांगरे के रस में घुटाई व् सुखाने की प्रक्रिया को २१ बार दोहराना होता है यानी अश्वकंचुकि रस में भांगरे के रस की २१ भावना दी जाती है. २१ बार भावना देने के बाद इसकी १०० मिग्रा की या मूंग के दाने के आकर के बराबर गोलियां बनाकर छाया में सूखा लें. यह अश्वकंचुकि रस तैयार हो गया. इस रस को अष्वचोली या घोड़चोली भी कहते हैं. इस औषधि में प्रयुक्त जमाल घोटा दस्तावर एवं तीक्ष्ण गुणवाला है अतः भांगरे के रस की जितनी अधिक भावना दी जाती है उतनी ही इस औषधि में सौम्यता आती है तथा इसका दाहक व् विरेचक गुण कम होता है. भांगरे का रस जहाँ यकृत के लिए लाभदायक होता है वहीँ जमालघोटा तथा हरताल जैसे घातक द्रव्यों की उग्रता और दाहक गुण को कम करता है.
अश्वकंचुकि रस की मात्रा , उपयोग और अनुपान (quantity and uses of Ashwa Kanchuki Rasa )- अश्वकंचुकि रस की १-१ गोली भिन्न भिन्न रोगों में अलग अलग अनुपान के साथ देने तथा उचित पथ्य का पालन करने से यथोचित लाभ मिलता है. रोग की तीव्रता में इसकी गोली १ से २ की जा सकती है. परन्तु दस्त ज्यादा लगते हों तो मात्रा कम कर लें. "अनुमान तरंगणी " नामक ग्रन्थ में इस औषधि के विभिन्न रोगों में अलग अलग अनुपान भेद का वर्णन मिलता है.