आजकल के वातावरण में धातु दौर्बल्य, धातुक्षीणता और धातु विकार जैसी व्याधियों से युवा वर्ग ग्रस्त होता जा रहा है क्यूंकि मन-मस्तिष्क का शरीर पर प्रभाव पड़ता ही है. ऐसे ही कुछ युवा अपने गलत यौन आचरण द्वारा स्वयं को विभिन्न यौन समस्याओं से ग्रस्त कर रहे हैं. ऐसी विकार ग्रस्त अवस्थाओं में अत्यंत उपयोगी एक योग "शिलाजत्वादि वटी" का विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है.
शिलाजत्वादि वटी के घटक द्रव्य ( ingredients of shilajatwadi Vati ) - शुद्ध शिलाजीत, अभ्रक भस्म, स्वर्ण भस्म, लोह भस्म, शुद्ध गूगल, सोहागे का फूला तथा काले भांगरे का ras .
शिलाजत्वादि वटी निर्माण एवं सेवन विधि ( shilajatwadi Vati preparation method , quantity and dosage ) - उपरोक्त सभी द्रव्यों को सामान मात्रा में लेकर मिला लें. फिर इस मिश्रण को काले भांगरे के ऱस में एक खरल में डाल कर तीन दिन तक घुटाई करें. इसके बाद इसकी एक एक रत्ती की गोलियां बनाकर छाया में सूखा लें. इसकी एक एक गोली सुबह शाम अनार के ऱस, दूध या पानी के साथ सेवन करें.
शिलाजत्वादि वटी के उपयोग (Advantages and health benefits of Shilajitwadi Vati ) - शिलाजत्वादि वटी शुक्रस्त्राव और स्वप्नदोष में अत्यंत लाभकारी है. जिन व्यक्तियों की प्रकृति पित्त प्रधान हो, तथा जिनमे अत्यधिक स्त्री सहवास और शराब आदि के सेवन से शरीर में प्रकृति में अधिक उष्णता रहती हो, मस्तिष्क निर्बल हो गया हो, स्त्री के दर्शन मात्र से ही वीर्यपात हो जाता हो, दुबलापन, अग्निमांध, पेट में भारीपन, नींद में कमी, आदि लक्षण उत्पन्न हो गए हों तो उनमे यह वटी बहुत अच्छा लाभ करती है. इस वती के सेवन से मल-मूत्र त्याग करते समय वीर्य जाना , स्वप्नदोष, स्मरणशक्ति की कमी, और ह्रदय की निर्बलता आदि दूर होते हैं तथा बल, वीर्य और उत्साह की वृद्धहि होती है. शिलाजत्वादि वटी बनी बनाई इसी नाम से आयुर्वेदिक दवा की दुकानों में मिलती है.