Enraging/aggravation or misbalancing of Tridoshas is called Sannipaat or Sannipata. A dosha is misbalanced by certain causes/reasons, diet regimen and lifestyles (Aahar-vihaar). Maintaining a regimen against those causes and situations pacifies the doshas.
Vata imbalance –> Due to long term use of light, dry and easily digestible food, eating too little food for too many days, suffering from sorrow, sadness or worry after not being able to get something desired and beloved, staying awake for late nights, taking bath for too long time, due to the loss of dhaatus like rasa and rakta , and due to undue lustfulness, Vata ( vaayu , Air) gets imbalanced. Vata gets defected due to indigestion and constipation, too. Vata also gets imbalanced after the food is digested, in the second half of night and in the fourth stage of life (in old age). Vata is also remains likely to be negatively affected and imbalanced in the rainy season.
Pitta imbalance –> Causes of pitta imbalance are eating spicy , too hot, too sour and too much fried food, drinking too hot beverages and drinks, staying too long in hot and sunny atmosphere, being angry and staying thirsty for too long. Pitta imbalance also happens at the start of food digestion process, midnight and at the younger or youth stage of life.
Kapha imbalance ->
Kapha gets imbalanced due to eating too soft, too sweet, too oily food, heavy foods that are difficult in getting digested, takes too long in digestion, excess eating of cold or chilled foods, eating acescent, acetic or acid food and foods prepared in spoiled oil. Kapha also gets imbalanced at the end of meal and in early morning. Kapha gets imbalanced due to laziness, not doing any work and sleeping too much.
आयुर्वेद में वात , पित्त कफ का इतना महत्त्व है की इन्हे शरीर और स्वास्थ्य के लिए " त्रिदेव " की तरह महत्वपूर्ण माना जाता है . वात , पित्त और कफ जब स्वाभाविक अवस्था में होते हैं तब ' धारणाद धातवः स्मृताः ' के अनुसार ये शरीर को धारण करने वाले होते हैं और धातु कहे जाते हैं . लेकिन यदि ये कुपित अवस्था में हों तो शरीर को दूषित करने वाले हो जाते हैं और ' शरीरदूषणात दोषाः ' के अनुसार दोष कहलाते हैं . जब वात , पित्त और कफ साम्य अवस्था में रहते हैं तो शरीर स्वस्थ रहता है और जब से असामान्य अवस्था में होते हैं तो शरीर अस्वस्थ हो जाता है . इन तीनो में से जो भी कुपित होता है उससे सम्बंधित बीमारियां पैदा हो जाती हैं .
Biovatica .Com के regular visitors यह जानते हैं कि उचित और नियमित आहार - विहार करने से वात , पित्त व् कफ अपनी प्राकृतिक सामान्य अवस्था में बने रहते हैं जिससे वो शरीर कि सभी धातुओं सहित शरीर को धारण किये रहते हैं और शरीर स्वस्थ व् निरोग बना रहता है . यदि आहार विहार में गड़बड़ी की जाय और स्वाद के वशीभूत हो कर किसी विशेष प्रकार के मनपसंद रसयुक्त पदार्थ का अधिक मात्रा में अधिक समय तक सेवन किया जाए तो उस रस से सम्बंधित तत्वों की शरीर में अधिकता होने से , उस रस से सम्बंधित , वात , पित्त या कफ कुपित हो जायेगा और उस कुपित दोष से पैदा हुए विकार , शरीर को बीमार करने लगेंगे . ऐसा न हो इसके लिए हमें वात , पित्त और कफ को सामान्य रखने के लिए , इनके कुपित होने के कारणों और लक्षणों पर सतर्क नज़र रखनी होगी ताकि उन कारणों से बचाव कर सकें और यदि इनमे से किसी का प्रकोप हो रहा हो तो उसके लक्षणों को पहचान कर यह जान सकें की यह किस दोष के कुपित होने के लक्षण हैं . यदि हम यह जान सकें की यह वात , पित्त और कफ में से किस दोष के कुपित होने के लक्षण हैं तो हम उस दोष का शमन करने के उपाय कर सकेंगे यानी पथ्य आहार - विहार का पालन और अपथ्य आचार - विचार का त्याग कर सकेंगे ताकि दोष - प्रकोप का शमन करने का इलाज सफल हो सके . ऐसा तभी हो सकेगा जब हम तीनों दोषों वात , पित्त और कफ के प्रकोप को पहचान सकें यानी यह जानकारी रखते हों की किसी दोष का प्रकोप होने पर क्या क्या लक्षण प्रकट होते हैं .
पित्त प्रकोप के कारण (Causes of Pitta Dosha Imbalance ) :- पित्त प्रकोप के कारणों पर विचार करते समय हमें यह तथ्य ध्यान में रखना होगा की यदि वात पहले से ही कुपित हो तो पित्त का प्रकोप बहुत जल्दी और अधिक मात्रा में बढ़ता है . पित्त कुपित होने के कारणों में कटु , अम्ल और लवण रस वाले पदार्थों का अधिक सेवन करना , शराब , तम्बाकू , मान , अंडा का सेवन करना , तले हुए तेज़ मिर्च मसालेदार और खटाईयुक्त पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करना , एक बार किये गए आहार के पूर्ण पचने से पहले ही पुनः आहार ले लेना , पानी कम पीना , आमाशय में पित्त का संचित होना आदि उल्लेखनीय है . पित्त प्रकोप का प्रमुख स्थान आमाशय (stomach ) होता है अतः पेट ख़राब रहना भी पित्त प्रकोप का एक प्रमुख कारण होता है .
पित्त प्रकोप के लक्षण (Symptoms of Pitta Dosha Imbalance ) : - हमारे शरीर में एक सामान्य तापमान की जो गर्मी रहती है वह पित्त ( अग्नि ) के ही कारण रहती है . यह अग्नि शरीर के अलग अलग स्थानों पर अलग अलग काम करती है . जब पित्त कुपित होता है तो सारे शरीर में गर्मी बढ़ती है . पित्त से जब ज्वर ( पित्त ज्वर ) होता है तब शरीर का तापमान भी बढ़ता है . पित्त कुपित होने पर पेट में अम्लता ( एसिडिटी ) बढ़ जाना , गले , छाती व् पेट में जलन होना , मुंह से गर्म बफारे निकलना , आँखों में जलन होना , गले में डकार के साथ खट्टा - चरपरा - तीखा पानी आना , उलटी जैसा जी होना या उलटी होना , भयंकर सर दर्द होना , गुदा में जलन होना , पतले दस्त लगना , पेशाब का रंग पीला होना , खट्टी डकार आना , जीभ व् गले में अकड़न मालुम देना , जीभ पर छले होना , खुल कर भूख न लगना , पेट में भारीपन होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं .
पित्त दोष के इलाज के उपाय (Ayurveda tips for the treatment of Pitta Dosha Imbalance ) - पित्त का प्रकोप होने पर पित्त ( आग ) बढ़ाने वाले आहार कम करना और कफ कारक ( पानी ) , शीतल , स्निग्ध , मधुर , तरावट वाले पदार्थों का सेवन करना पित्त दोष का इलाज और शमन करने वाला काम है . पित्त को कुपित करने वाला आहार - विहार न करना भी पित्त दोष का इलाज करने वाला काम है क्यूंकि ऐसा आहार न करने से पित्त को कुपित रहने का आधार नहीं मिल पाता . दिन में 8 -10 गिलास पानी एक एक घंटे के अंतर से पीना , निम्बू पानी व् शक्कर की मीठी शिकंजी पीना भी पित्त दोष के इलाज के पित्त शामक उपाय हैं . पित्त दोष के इलाज के अन्य उपाय में सुबह खाली पेट आधा गिलास पानी व् आधा गिलास दूध मिला कर २ चम्मच शक्कर डाल दें और 10 -15 बार फेंट लगाकर पी जाएँ . उष्ण आहार - विहार त्याग कर शीतल आहार - विहार करने से पित्त दोष का इलाज व् शमन होता है .