Bhringraj, भृंगराज तेल(Bhringraj Oil ),BHRINGRAJ Ayurveda in hindi

Bhringraj Ayurveda uses, भृंगराज तेल(Bhringraj Oil ),BHRINGRAJ Ayurveda in hindi

Bhringraj, भृंगराज तेल(Bhringraj Oil ),BHRINGRAJ Ayurveda in hindi

Bhringraj Ayurveda uses, भृंगराज तेल(Bhringraj Oil ),BHRINGRAJ Ayurveda in hindi

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Bhringraj, भृंगराज

बहु-उपयोगी वनस्पति भृंगराज (भांगरा )(Bhringraj, bhaangra )
bhringraj

भृंगराज एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधीय द्रव्य है. आमतौर पर भृंगराज को केवल बालों की समस्या में उपयोगी औषधि के रूप में लोग जानते हैं जबकि कई आयुर्वेदिक योगों के निर्माण में भृंगराज का उपयोग होता है तथा विभिन्न रोगों में भृंगराज का उपयोग औषधि के रूप में होता है. तो लीजिये, Biovatica .Com इस सर्व सुलभ जड़ी-बूटी का परिचय, गुण लाभ तथा औषधीय उपयोग सम्बन्धी सम्पूर्ण विवरण आपके लिए प्रस्तुत कर रहा है :-

भृंगराज के विभिन्न भारतीय भाषाओँ में नाम (names of Bhringraj in different INDIAN languages )

Sanskrit (संस्कृत ) - भृंगराज, भृंग , मारकव, केशराज

हिंदी (हिंदी - भांगरा, भंगरैया )

मराठी (marathi ) - माका

गुजराती (gujarati) - भांगरो

बांग्ला (bangla ) - केसरी

तेलुगु (telugu ) - गलागारा

तमिल (tamil ) - केकेशी

इंग्लिश (english ) - trailing eclipta

लैटिन (latin ) - eclipta alba hassk

भृंगराज के गुण (qualities /characteristics of bhringraj ) - किसी भी पौधे के जड़, तना, पत्ते, पुष्प और फल का जब सम्पूर्ण प्रयोग एक साथ किया जाता है तब उस जड़ीबूटी को पंचांग कहते हैं. भृंगराज या भांगरे का भी पंचांग प्रयोग ही किया जाता है. इसका पौधा तिक्त, चरपरा, कड़वा, रूखा, लघु उष्ण, केशवर्धक, कृमिनाशक, नेत्र ज्योति को बढ़ाने वाला, दांतो को मजबूत करने वाला, कफ रोग, खांसी, दमा, चर्म रोग, शारीरिक आंतरिक विषनाशक, वृणरोपक (घाव को भरने वाला ), ज्वरनाशक तथा चक्कर को दूर करने वाला , यकृतोत्तेजक ( लिवर के लिए उपयोगी ), कांतिवर्धक रसायन औषधि है.

भृंगराज के रासायनिक संघटक (केमिकल इंग्रेडिएंट्स ऑफ़ भृंगराज ) - (भृंगराज/भांगरे में जलीय आर्द्रता सर्वाधिक होती है , इसमें राल और एक्लिप्टिन (ecliptin ) नामक क्षार के साथ वेडेलो लेक्टोन (wedelolactone ) नामक यकृत के लिए लाभदायक तत्व भी होता है.

भृंगराज का परिचय (introduction of bhringraaj ) - भृंगराज ज़मीन पर रेंगता हुआ फैलने वाला वाला एक छोटा पौधा है जो सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है. जिस ज़मीन पर सदैव पानी रहता हो वहाँ यह बारह महीने पाया जाता है. बरसात के दिनों में यह सब जगह पैदा होता है. सामान्यतः तालाब, पानी के पोखर, गड्ढा या नालियों के किनारे पर होने वाला ये जंगली क्षुप होता है.

भृंगराज/भांगरे का पौधा ८-१० इंच से लेकर २ फ़ीट तक लम्बा होता है. यह ज़मीन से आठ-दस इंच ऊपर की ओर खड़ा रहता है और शेष तना व् जड़ ज़मीन पर रेंगती हुई फैली रहती है. इसकी शाखाएं हरी चमकीली और नीले रंग की आभा वाली होती हैं. शाखाओं के ऊपर सफ़ेद रंग के रोम या रुएँ होते हैं. पत्ते एक से २ इंच लम्बे आधा से एक इंच चौड़े होते हैं. तथा हाथ में मसलने पर कुछ कालापन लिए हुए हरे रंग का रस निकलता है जो कुछ ही समय में काला हो जाता है. इसमें सफ़ेद रंग के गोलाकार पुष्पों के गुच्छे आते हैं. फल छोटे छोटे काले रंग के होते हैं. पुष्प वर्षा ऋतू में और फल नवम्बर-दिसम्बर में आते हैं. भृंगराज के पौधे के पंचांग का प्रयोग ताज़े रूप में ही किया जाता है. अतः भांगरे के पंचांग को वर्षा ऋतू के बाद उखाड़ कर स्वच्छ पानी से धोकर मिटटी-कीचड़ व् गंदगी साफ़ कर तत्काल कूट कर इसका रस औषधीय प्रयोग में उपयोग में लाया जाता है. किन्तु जब इसकी सदैव उपलब्धता नहीं रहती है तो इसे इकठ्ठा तोड़ कर मिटटी-कीचड़ गंदगी स्वच्छ पानी से साफ़ कर छाया में सूखा कर रख लिया जाता है. पूर्णतःसुख जाने पर चूर्ण या दरदरा कूट कर इसका क्वाथ (काढ़ा) बना कर प्रयोग में लाया जाता है.

भृंगराज के फूल के रंग के आधार पर इसके तीन भेद आयुर्वेद शास्त्रकारों ने बतलाये हैं - श्वेत, पीत और कृष्ण. सामान्यतः श्वेत (सफ़ेद) भृंगराज ही अधिक जगह मिलता है इसलिए सभी स्थानों पर सफ़ेद भृंगराज का ही प्रयोग होता है. पीत भृंगराज भी यदा-कदा ही देखने को मिलता है जबकि कृष्ण भृंगराज की उपलब्धता आसान नहीं है.

भृंगराज का उपयोग (Ayurvedik uses of bhringraaj ) - भांगरे का औषधीय प्रयोग पूरे भारत के सभी क्षेत्रों में होता है. यूनानी चिकित्सा पद्धति में भी भृंगराज औषधि का विवरण पढ़ने को मिलता है. रुक्ष, कटु, लघु, और तिक्त रस की प्रधानता होने के कारण भृंगराज कफ दोष का शमन करता है तथा उष्ण होने से वात रोग शामक भी है. भृंगराज के प्रयोग से सर के बालों में होने वाली परेशानियों से त्वरित लाभ होता है. इसलिए इसके संस्कृत में पर्यायवाची नाम हैं - केशरंजन, केशराज, कुन्तलवर्द्धन. आयुर्वेद की विशेष औषधियों के निर्माण में भृंगराज रस का प्रयोग किया जाता है.


भृंगराज से बनने वाली ये आयुर्वेदिक औषधियां हैं -- भृंगराज तेल(Bhringraj Oil ), भृंगराजासव , षडबिन्दु तेल, सूतशेखर रस , जलोदरादि रस, अश्वकंचुकि रस आदि.

भृंगराज स्वरस - भृंगराज के ताजे पंचांग का निकाला गया रस ही भृंगराज स्वरस कहलाता है. इस रस की ५ मिली मात्रा सामान्यतः दी जाती है तथा बालकों को इसकी १ से २ बूँद शहद के साथ दी जाती है. रसायन के रूप में बलवृद्धि के लिए इसका २-३ ग्राम चूर्ण घी शहद एवं शक्कर के साथ दिया जाता है. सामान्यतः आयुर्वेद में भांगरे के रस का प्रयोगित वर्णन बहुत पढ़ने को मिलता है किन्तु हर समय इसका ताज़ा रस मिलना आसान नहीं होता है अतः भांगरे के चूर्ण या क्वाथ (फांट) का प्रयोग भी किया जा सकता है. ताज़ा रस तीव्र असरकारक तथा क्वाथ व् चूर्ण क्रमशः अल्पवीर्य होते हैं. ताज़े रस की उपलब्धता न होने पर यह उपाय करें.

सर्वप्रथम भांगरे के पंचांग को लेकर साफ़ पानी में डालकर उसे अच्छी तरह मसलकर धूल-मिटटी को साफ़ कर लें. इसे छायादार स्थान पर सूखने रख दें. जब यह पूर्णतः सूख जाए तब इसे क्वाथ के लिए मोटा दरदरा व् चूर्ण के लिए बारीक पीसकर छान लें और स्वच्छ बर्तन में भरकर रख लें. यदि बाज़ार से सूखा भांगरे का पंचांग लाते हैं तब भी इसे पानी में मसलकर साफ़ कर के पुनः घर में सूखा कर के पुनः घर में सूखा कर ही काम में लेना चाहिए. जैसा हम बता चुके हैं की भृंगराज के स्वरस की मात्रा रोगी के बल और उम्र के मान से २-४ बूँद से लेकर ५ मिली तक है, क्वाथ की मात्रा १० से २० मिली तक तथा चूर्ण की मात्रा १ से २ ग्राम तक है.

भृंगराज का औषधीय प्रयोग - भृंगराज (भांगरे) का विभिन्न रोगों में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है. कुछ मुख्य बिमारियों से सम्बंधित विवरण यहाँ प्रस्तुत है.

कफजनित विकार - यह बचपन से लेकर बुढ़ापे तक के विभिन्न प्रकार के कफजनित विकारों की उत्तम औषधि है. जब बच्चों में कफ के बढ़ जाने पर छाती से घर घर की आवाज आती है तथा बच्चा कफ से परेशान रहता है तब भांगरे के ताज़ा रस की ३-४ बूँद शहद में मिलाकर दिन में २-३ बार चटाने से तुरंत लाभ होता है. दमा (अस्थमा) में कफ शमन के लिए भंगड़ा और पीपल का संभाग चूर्ण मिलाकर इस मिश्रण की लगभग १ ग्राम मात्रा सुबह-शाम शहद के साथ देना चाहिए.

पीलिया - शरीर के यकृत (लिवर) की नलिकाओं में सूजन होने से पीलिया रोग होता है. इस रोग में यकृत की कोशिकाओं की कार्यप्रणाली विकृत हो जाती है. इसे कामला भी कहा जाता है. भांगरे का रस ५ मिली या भांगरे का चूर्ण १ ग्राम को काली मिर्च चूर्ण १ ग्राम में मिलाकर सुबह गाय के दूध से बने मट्ठे या दही के साथ देने से पीलिया रोग में आराम होता है. इस औषधि का सेवन ३ से ५ दिन लगातार कराना चाहिए . यह यकृत की कार्यप्रणाली को सुधारता है. यकृत के दूषित होने पर पाचन प्रणाली भी गड़बड़ा जाती है जिससे भोजन का पाचन ठीक ढंग से नहीं होता अतः भृंगराज के चूर्ण की १ ग्राम मात्रा सुबह-शाम पानी से देना चाहिए.

वाजीकरण - भृंगराज के बीज वाजीकारक रसायन होते हैं. ये बारीक़ और काले रंग के होते हैं. इन बीजों की आधा चम्मच मात्रा घी और मिश्री के साथ नियमित सेवन करने पर कामशक्ति बढ़ती है.

केशवर्धक - बालों की समस्या के निराकरण हेतु भृंगराज का सर्वाधिक उपयोग होता है. त्रिफला चूर्ण की ५०० ग्राम मात्रा लेकर इसमें ५०० मिली भृंगराज का रस मिलाकर खरल में घोंटे. फिर उसे छाया में सूखा लें. सूख जाने पर पुनः ५०० मिली भृंगराज का रस मिलाकर पुनः उसी प्रक्रिया को दोहराएं. इस प्रकार त्रिफला चूर्ण में भृंगराज रस की तीन बार भावना देकर भृंगराज भावित त्रिफला चूर्ण बनता है. इस चूर्ण की २ ग्राम मात्रा नियमित दूध के साथ लेने से बाल काले और चमकदार होते हैं. बालों की महाभृंगराज तेल से मालिश करें. भांगरे के सूखे चूर्ण में काली तिल्ली एवं मिश्री का चूर्ण मिलाकर १ चम्मच रोज सुबह आंवले के मुरब्बे या दूध के साथ सेवन करने से बालों का झड़ना रुकता है व् बाल गहरे काले होने लगते हैं.