आयुर्वेद और फिरंग रोग (firang disease and Ayurveda ), syphilis disease in hindi, फिरंग रोग के प्रमुख कारण (causes of firang (syphilis ) in hindi )

आयुर्वेद और फिरंग रोग (firang disease and Ayurveda ), syphilis disease in hindi, फिरंग रोग के प्रमुख कारण (causes of firang (syphilis ) in hindi )

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फिरंग रोग (firang disease ), syphilis disease in hindi

इम्पोर्टेड दुष्ट यौन रोग फिरंग
firang disease

उपदंश से मिलता जुलता पर अलग प्रकार का एक रोग फिरंगियों में पाए जाने के अलावा भारतवासियों को यह रोग फिरंगियों से ही मिलने की वजह से इस रोग को " फिरंग " कहा गया. इस तरह यह "फिरंग रोग " मूलतः भारत का जन्मा हुआ नहीं बल्कि विदेशों से आयातित यानी इम्पोर्टेड रोग है. इसका सम्पूर्ण विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है.

आयुर्वेद के अनुसार यह रोग फिरंग देशों में अधिक होता है इसीलिए आयुर्वेदिक वैद्यों ने इसे "फिरंग रोग' कहा है. आज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जिसे सिफलिस (syphilis ) कहता है वह दरअसल यह फिरंग रोग ही है उपदंश नहीं, क्यूंकि बावजूद इसके की उपदंश और फिरंग में कुछ बातें एक सामान हैं , ये दोनों रोग एक नहीं हैं अलग अलग हैं. आयुर्वेद के 'भावप्रकाश' के अनुसार फिरंग रोग के निदान के विषय में जानकारी प्रस्तुत की जा रही है.

आयुर्वेद के भावप्रकाश में लिखा है की यह फिरंग रोग गंध रोग है जो फिरंग देश के पुरुषों के साथ देहसंसर्ग और स्त्रियों के साथ यौनसंसर्ग करने से उत्पन्न होता है. इस प्रकार यह एक "आगंतुक" रोग है इसमें दोषों का संक्रमण बाद में होता है. उत्तम वैद्य को चाहिए की वह लक्षणों को ठीक से जान-समझ कर दोषों की पहचान कर ले.

आयुर्वेद के भावप्रकाश ने फिरंग रोग के तीन भेद बताये हैं - १) बाह्य (बाहरी ) २) आभ्यंतर (अंदरूनी ) और ३) बहिरन्तरभव (बाहर और अंदर दोनों स्थान पर होने वाला . इन तीनो प्रकार के फिरंग में जो बाहरी फिरंग है वह विस्फोट के समान होता है. व्रण (घाव) के समान फूटता है ; इसमें पीड़ा कम होती है और आयुर्वेद के अनुसार सुख-साध्य होता है यानी उचित चिकित्सा करने पर आसानी से ठीक हो जाता है. अंदरूनी यानी भीतरी फिरंग, जोड़ों में होता है इसमें आमवात की तरह कष्ट होता है, इसमें सूजन भी पैदा होती है और यह कठिनाई से ही ठीक होता है. और जो फिरंग शरीर के बाहर और भीतर दोनों प्रकार का हो यानी सारे शरीर में व्याप्त हो चूका हो वह रोग पुराना (chronic ) हो जाता है, नाना प्रकार के उपद्रवों वाला हो जाता है और असाध्य (uncurable ) हो जाता है . इस रोग के उपद्रवों के विषय में भावप्रकाश में लिखा है :- दुबलापन, बलहीनता , नाक बैठ जाना (पिचक जाना ), अग्निमांध, अस्थिशोथ तथा अस्थियों (हड्डियों ) का टेढ़ा हो जाना - यह सब फिरंग रोग से होने वाले उपद्रव हैं.

फिरंग रोग के प्रमुख कारण (causes of firang (syphilis ) in hindi )

फिरंग रोग का मुख्य कारण है इस रोग से ग्रस्त स्त्री के साथ सहवास करना. स्वस्थ पुरुष फिरंग रोग से ग्रस्त स्त्री के साथ सहवास करने पर इस रोग से ग्रस्त हो जाता है. ऐसे ही स्वस्थ स्त्री इस रोग से ग्रस्त पुरुष के साथ सहवास करने पर रोगग्रस्त हो जाती है. लगभग ९०-९५ % मामलों में , फिरंग रोग होने का कारण रोगग्रस्त के साथ सहवास करना ही पाया जाता है इसलिए इसे मुख्यतः मैथुनजन्य (venereal ) रोग माना जाता है.

दूसरा कारण होता है जननेन्द्रिय के अतिरिक्त अन्य शारीरिक अंगों से निकट-संपर्क करना. इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति को चूमना, परस्पर आलिंगन करना या अन्य तरीकों से निकट- संपर्क में रहने से भी यह रोग ५-१० प्रतिशत रोगियों को होता पाया गया है अतः स्वस्थ स्त्री-पुरुषों को रोगग्रस्त के साथ सहवास करना तो दूर , उनका चुम्बन लेना, उनसे लिपटना या निकट स्पर्श में रहना भी रोगग्रस्त कर देने वाला सिद्ध होता है.

तीसरा कारण माता के गर्भ में रहते हुए शिशु का इस रोग से प्रभावित हो जाना. यह प्रभाव गर्भकाल के उत्तरार्ध भाग में ज्यादातर होता है. प्रथम और द्वितीय कारणों से होने वाले फिरंग रोग को स्वकृतजन्य (aquired ) और तीसरे कारण से होने वाले फिरंग रोग को सहज या जन्मजात (congenital ) कहते हैं.