आजकल थायराइड ग्रंथि की बिमारियों से ग्रसित रोगियों की संख्या बहुत बढ़ गयी है. Biovatica .Com को मिलने वाले इमेल्स में इस विषय पर आर्टिकल लिखने का आग्रह हमें काफी समय से website visitors से प्राप्त हो रहा था. अतः इस आर्टिकल में हमने थायराइड के विकार और उपचार सम्बन्धी इस आर्टिकल को आपके समक्ष करने का निर्णय लिया है.
आम बोलचाल की भाषा में अक्सर लोग उच्च रक्तचाप को 'ब्लडप्रेशर हो गया है' ऐसा बोलते हैं. इसी तरह थायराइड ग्रंथि की किसी बीमारी को बोला जाता है की थायराइड हो गया है. थायराइड ग्रंथि हमारे शरीर की महत्वपूर्ण अन्तःस्त्रावी (Endocrine Glands ) में से एक होती है. बचपन से लेकर बुढ़ापे तक थायराइड ग्रंथि का स्वस्थ, सामान्य और संतुलित ढंग से काम करना हमारे विकास और स्वास्थ्य के अनुवर्तन के लिए अत्यावश्यक होता है. वैसे तो 'थायराइड की बीमारी' एक बड़ा विषय है जिसके अंतर्गत कई प्रकार की बीमारियां आती हैं और इस पर विस्तार से चर्चा करना यानि एक छोटी पुस्तक का बन जाना है, फिर भी यहाँ हमारा यह प्रयास रहेगा की संक्षिप्त रूप से शरीर की इस महत्वपूर्ण ग्रंथि का आपसे परिचय करते हुए इससे सम्बंधित मुख्य बिमारियों का विवरण ही प्रस्तुत न करें बल्कि उनका उपचार भी प्रस्तुत करें. कारण यह है की इस ग्रंथि का विकारग्रस्त होना शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित कर उनकी क्रियाशीलता को भी बिगड़ देता है और उपद्रव स्वरुप शरीर में अन्य रोगों की उत्पत्ति भी होने लगती है. अतः इसका समय पर और सही निदान तथा उपचार करना बहुत आवश्यक होता है. तो लीजिये, इस महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा शुरू करते हैं.
थायराइड ग्रंथि सम्बन्धी बिमारियों पर चर्चा करने से पहले या समझ लेना आवश्यक है की हमारे शरीर में थायराइड ग्रंथि के कार्य और उसकी उपयोगिता क्या है? इसलिए हम थायराइड ग्रंथि की संरचना और कार्यप्रणाली से सम्बंधित, सामान्य व्यक्ति के जानने योग्य जानकारी का, संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि इस ग्रंथि के विकारों के शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को समझने में आसानी हो.थायराइड एक तितली के आकर की, नली विहीन ग्रंथि (Endocrine gland )होती है जो गर्दन में टेंटुए (Adams apple ) के पीछे , श्वास नली को घेरते हुए, स्थित होती है. लगभग २० ग्राम वज़न की इस ग्रंथि के दाएं बाएं भाग में लोब्स (Lobes ) होते हैं जो बीच में इस्थमस द्वारा जुड़े होते हैं. यह ग्रंथि आहार से प्राप्त आयोडीन (Iodine ) का उपयोग कर मुख्यतः दो हार्मोन्स बनती है - थायरोक्सिन (Thyroxinei t4 ) और ट्राई- आयोडो थायरोनिन (त्रि-Iodothyronine , t3 ). ये हार्मोन्स हर वक़्त खून में स्त्रावित होते रहते हैं जो शरीर की विभिन्न कोशिकाओं में कार्बोहायड्रेट , प्रोटीन्स और वसा के चयापचय (metabolism ) को संचालित करते हैं और स्थिर रखते हैं. शारीरिक वृद्धि और दिमागी विकास में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. ये शरीर का वज़न, तापमान तथा ऊर्जा व्यय को भी नियंत्रित करते हैं. इनके अलावा एक और हार्मोन इस ग्रंथि से स्त्रावित होता है जिसे कैल्सिटोनिन कहते हैं. यह हार्मोन हड्डियों से कैल्शियम के अवशोषण एवं रक्त में कैल्शियम की मात्रा में कमी करता है.
रक्त में स्त्रावित थायराइड हार्मोन्स में अधिक प्रतिशत (९३%) T4 का रहता है. अब चूँकि सक्रीय और प्रभावशाली थायराइड हार्मोन T3 होता है अतः रक्त में स्त्रावित T4 हार्मोन का अधिकांश भाग T3 में परिवर्तित हो जाता है. अब यह भी जानना समझना जरुरी है की थायराइड हार्मोन्स के स्त्रवण का सञ्चालन कैसे होता है और कैसे इन हार्मोन्स का का रक्तस्तर मानक स्तर पर बना रहता है. थायराइड ग्रंथि का सञ्चालन मस्तिष्क के तल पर स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि (pituitary gland ) द्वारा होता है और यह पिट्यूटरी ग्रंथि थायराइड हार्मोन्स के रक्त स्तर तथा मस्तिष्क के अति व्यस्त क्षेत्र हाइपोथेलेमस (Hypothalamus ) से संचालित होती है. हाइपोथेलेमस से एक हार्मोन स्त्रावित होता जिसे थाइरोट्रॉपिन रिलीसिंग हार्मोन (TRH ) कहते हैं जो पिट्यूटरी ग्रंथि को उद्दीप्त कर उससे थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन (TSH ) को स्त्रावित करवाता है. यह TSH हार्मोन थायराइड ग्रंथि को उत्तेजित कर T4 -T3 हार्मोन्स का स्त्रवण करवाता है. यानि सामान्य अवस्था में थायराइड हार्मोन्स का उत्पादन और स्त्रवण की दर पिट्यूटरी ग्रंथि से संचालित होती है और यदि रक्त में थायराइड हार्मोन्स का स्तर मानक स्तर से कम होता है तो पिट्यूटरी ग्रंथि से TSH हार्मोन का स्त्रवण बढ़ जाता है ताकि थायराइड ग्रंथि से ज्यादा और आवश्यक मात्रा में हार्मोन स्त्रावित हो तथा यदि रक्त में थायराइड हार्मोन का स्तर अधिक हो जाता है तो TSH का स्त्राव कम हो जाता है ताकि थायराइड हार्मोन्स का निर्माण तथा स्त्राव कम हो जाए. इस तरह रक्त में थायराइड हार्मोन्स का मानक स्तर बना रहता है. यही कारण है की जब भी थायराइड ग्रंथि के किसी विकार के कारण उसकी कार्यप्रणाली गड़बड़ाती है तो इन तीन हार्मोन्स - TSH , T4 और T3 के रक्त स्तर की जांच की जाती है ताकि विकार किस स्तर पर और किस प्रकार का है, यह ज्ञात हो सके.
थायराइड ग्रंथि में होने वाले विकार को हम दो वर्गों में बाँट सकते हैं - पहला संरचनात्मक विकार और दूसरा क्रियात्मक विकार. संरचनात्मक विकार यानि थायराइड ग्रंथि के आकर में वृद्धि होना जिसे घेंघा (Goiter ) रोग कहा जाता है और क्रियात्मक विकार यानि थायराइड का अल्प या अधिक सक्रीय हो जाना जिसे हाइपोथायरॉइडिस्म (Hypothyroidism ) या हाइपरथायरॉइडिस्म (Hyperthyroidism ) कहा जाता है. अब थायराइड सम्बन्धी अलग-अलग बिमारियों में ये दोनों विकार एक साथ हो सकते हैं और नहीं भी हो सकते हैं. जैसे कई बार थायराइड ग्रंथि के आकर में कोई परिवर्तन नहीं होता लेकिन उसकी अति सक्रियता (Hyperthyroidism ) के कारण व्यक्ति परेशां रहता है तो कभी कभी यह ग्रंथि फूल जाती है (Goiter ) लेकिन रक्त में थायराइड हार्मोन्स का स्तर सामान्य (Euthyroid ) रहता है. पहले हम घेंघा (goiter ) के विषय में बात करते हैं क्यूंकि ज्यादातर सिर्फ इसे ही थायराइड ग्रंथि का रोग समझा जाता है जबकि संक्रमण ,अनुवांशिक प्रभाव या रोग प्रतिरोधक तंत्र की विकृति (Autoimmunity ) के कारण अन्य बीमारियां भी उत्पन्न होती हैं. तो आइये पहले घेंघा रोग पर बात कर लें.
किसी भी कारण से थायराइड ग्रंथि के बढ़ जाने को यानि इसके आकार में वृद्धि होने को गायटर (goiter ) यानि घेंघा रोग होने कहते हैं. वैसे तो ये आकार वृद्धि आयोडीन की कमी से होती है परन्तु किसी भी कारण से पिट्युटरी ग्रंथि से TSH हार्मोन का अधिक स्त्राव भी इस वृद्धि को उत्पन्न करता है. थायराइड हार्मोन के निर्माण में आयोडीन, प्रमुख रूप से आवश्यक होता है. लगभग १५० माइक्रोग्राम आयोडीन की प्रतिदिन आपूर्ति होना आवश्यक होती है. पानी, आयोडाइज़्ड नमक, सिंघाड़ा और थोड़ी मात्रा में हरी सब्जियों में आयोडीन पाया जाता है. आहार द्रव्यों के वे तत्व जो शरीर को आयोडीन की उपलब्धि में कमी करते हैं गायट्रोजन (goitrojen ) कहलाते हैं जैसे - पत्तागोभी, फूलगोभी, सरसों, विशेष प्रकार की पीली शलजम, मूंगफली के लाल छिलके , काजू, सुपारी की ऊपरी परत और सोयाबीन आदि में मुख्य रूप से उपस्थित रहने वाले तत्व आयोडीन से मिलकर अघुलनशील मिश्रण बना लेते हैं जिससे हार्मोन के निर्माण में कमी हो जाती है. तो रक्त में थायराइड हार्मोन के स्तर में कमी पिट्यूटरी ग्रंथि से थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन का अधिक मात्रा में स्त्राव करवाती है जिससे थायराइड ग्रंथि के आकार में वृद्धि होती है. यानि थायरॉइड हार्मोन के उत्पादन में होने वाली कमी की पूर्ति हेतु थायराइड के आकार में वृद्धि होने को सिंपल गायटर कहा जाता है. इसके अलावा अन्य प्रकार के गायटर भी होते हैं जैसे टॉक्सिक गायटर, थायराइडोंटिस (शोथ) , साधारण गठान और कैंसर की गठान आदि.
गायटर उत्पन्न होने पर रक्त में थायराइड हार्मोन्स का स्तर सामान्य रह सकता है (Euthyroid ) या कम हो सकता है (Hypothyroid ) या बढ़ा हुआ हो सकता है (Hyperthyroid ). थायराइड ग्रंथि की अति सक्रियता या अल्पसक्रियता के पीछे कई बार रोग प्रतिरोधक तंत्र की विकृति होती है जिसमे रोगप्रतिरोधक तंत्र शरीर के ही अंगों के विरुद्ध एन्टीबॉडीस बनाने लगता है (Autoimmunity ) जिससे गायटर उत्पन्न होने के साथ ग्रंथि अतिसक्रिय हो जाती है जिसे ग्रेव्स डिसीस (Grave 's Disease ) कहते हैं. इसमें आँखें बाहर निकल आती हैं अतः इसे एक्ज़ोप्थेल्मिक गायटर (Exophthalmic Goiter ) भी कहते हैं या फिर ग्रंथि की सक्रियता कम हो जाती है जिसे हाशिमोटो ( Hashimotos disease ) कहते हैं.
कई बार गायटर शरीर क्रियात्मक कारणों से होता है (Physiological Goiter ) जैसे यौवनारम्भ, गर्भकाल के दौरान या प्रसव पश्चात, रजोनिवृति के समय शरीर में उत्पन्न एंडोक्राइनल स्ट्रेस के परिणामस्वरूप गायटर उत्पन्न होता है. इसी तरह आज के युग की दें 'तनाव' भी थायराइड अल्पसक्रियता का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है.
थायराइड विकार के लक्षणों को दो वर्गों में बांटा जा रहा है - (१) थायराइड अल्पसक्रियता के लक्षण (Hypothyroidism ) (२) - थायराइड अतिसक्रियता के लक्षण (Hyperthyroidism ) . गायटर के आकार और स्थिति के अनुसार श्वासनली और आहारनली पर दबाव पड़ने से श्वास लेने और गुटकने में कठिनाई होती है.
थायराइड अल्पसक्रियता के लक्षण - यह खासतौर पर आयोडीन की आपूर्ति में कमी और विकृत रोगप्रतिरोधक तंत्र द्वारा थायराइड ऊतकों की क्षति होने से उत्पन्न होते हैं. जो लो गायट्रोजन तत्व युक्त आहार अधिक लेते हैं या ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ की भूमि में आयोडीन की कमी रहती है उनके शरीर में आयोडीन आपूर्ति काम होने से ये लक्षण उत्पन्न होते हैं. थायराइड हार्मोन्स के रक्तस्तर में कमी के अनुसार निम्नलिखित में से कोई भी लक्षण उत्पन्न हो सकता है :--
--> शारीरिक व् मानसिक शिथिलता
--> थकावट एवं उत्साह में कमी
-->कब्ज़ रहना
--> वज़न का बढ़ना
--> ठण्ड सहन न होना
--> त्वचा का खुश्क होना
--> बालों का रुखा-सूखा होना व् झड़ना
--> हाथ की उँगलियों में सुइयां चुभना
--> शरीर में पानी रुकने से चेहरे व् पाँव में सूजन आना
--> स्मरणशक्ति का कम होना
--> बिना कारण पेशियों और जोड़ों में दर्द व् जकड़न होना.
--> अवसाद
--> मासिक धर्म का अधिक मात्रा में अधिक समयावधि तक होना.
थायराइड अतिसक्रियता के लक्षण - इस स्थिति में थायराइड ग्रंथि का कोई क्षेत्र अतिसक्रिय हो जाता है. इसमें एक ही गठान (toxic nodule ) हो सकती है या बहुत साडी गठानें (multinodular Goiter ) हो सकती हैं. zyaadatar mamlon में यह रोगप्रतिरोधक तंत्र की विकृति से उत्पन्न शोथ जिसे ग्रेव्स डिसीस kahte हैं से उत्पन्न होती है. रक्त में थायराइड हार्मोन्स के स्तर के बढे हुए रहने से चयापचय सम्बन्धी लक्षण उत्पन्न होते हैं. हार्मोन्स की बढ़ी हुई मात्रा के अनुसार निम्नलिखित में से कोई भी लक्षण उत्पन्न हो सकता है :-
--अत्यधिक पसीना आना
--> गर्मी सहन न होना
--> उँगलियों में कम्पन
--> आँतों की चाल बढ़ जाना
--> चिड़चिड़ापन व् मानसिक चंचलता
--> एकाग्रता में कमी
--> हृदयगति का तेज़ होना व् महसूस होना
--> अच्छी भूख लगने और खाने के बाद भी वज़न गिरना
--> मांसपेशियों में तनाव व् कमज़ोरी के कारण थकन
--> त्वचा का गर्म एवं आर्द्र रहना
--> बाल झड़ना
--> मासिक धर्म का अनियमित एवं कम मात्रा में hona
कभी कभी बुजुर्गों में जब थायराइड हार्मोन्स का अतिस्त्राव हो जाता है तो उसे थायराइड स्टॉर्म कहते हैं. इसमें ह्रदय गति इतनी अधिक बढ़ सकती है की हृदयाघात से रोगी की मृत्यु हो जाती है.
अब थोड़ी सी बात बच्चों में होने वाले थायराइड विकार की भी कर ली जाये. बच्चों में थायराइड ग्रंथि के रोग को क्रिटिनिस्म (Cretinism ) कहते हैं. इसमें थायराइड हार्मोन्स की जन्मजात कमी के कारण शारीरिक और मानसिक विकास रुक जाता है जिससे बाद में पेट में सूजन, नाक चपटी, होंठ व् जीभ मोटे और बाल खुरदुरे होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं. वैसे इसके प्रारंभिक लक्षण उत्पन्न होते हैं जैसे भारी वज़न, पीलिया, शारीरिक विकास में देरी, कब्ज़, दूध पीने में तकलीफ होना आदि.
निदान - थायराइड ग्रंथि की क्रियाशीलता में गड़बड़ी ज्ञात करने के लिए सर्वप्रथम रक्त की जांच की जाती है जिसमे TSH , T4 और T3 हार्मोन्स के स्तर को देखा जाता है. यदि थायराइड अल्पसक्रियता यानि हाइपोथायरायडिज्म हो तो T4 और T3 का स्तर कम और TSH का स्तर बढ़ा हुआ मिलता है. यदि थायराइड अतिसक्रियता यानि हाइपरथीरोइडिस्म हो तो T4 और T3 का स्तर बढ़ा हुआ तथा TSH का स्तर कम मिलता है. इसके अलावा रक्त में कुछ एन्टीबॉडीस देखि जाती है जो विभिन्न विकारों को इंगित करती है. थायराइड की सक्रियता जानने के लिए रेडियोएक्टिव आयोडीन अपटेक स्कैन किया जाता है. चूँकि थायराइड के ऊतक आयोडीन को ग्रहण करते हैं इसलिए यदि किसी क्षेत्र में अधिक आयोडीन एकत्रित दिखाई देती है तो उसे हॉट स्पॉट (Toxic Nodule ) का पता चलता है और यदि किसी क्षेत्र में कम या नहीं दिखाई देती है तो कोल्ड स्पॉट का पता चलता है जो कैंसर हो सकता है. हलांक थायराइड कैंसर के मामले बहुत कम देखने में आते हैं. आवश्यकता पड़ने पर अल्ट्रासाउंड या बायोप्सी (FNAC ) भी रोग निदान के लिए की जाती है.
(१) थायराइड रोगों का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक फलों का रस जैसे अनानास , संतरा, सेब, गाजर, अंगूर, नारियल पानी, चुकंदर आदि का रस पीना चाहिए तथा इसके बाद ३ दिन तक फल तथा तिल को दूध में डालकर सेवन करना चाहिए. इसके बाद रोगी को सामान्य भोजन करना चाहिए जिसमे हरी सब्जियां , फल, सलाद तथा अंकुरित दाल अधिक मात्रा में हो. ीा प्रकार से कुछ दिनों तक उपचार करने से रोग में काफी लाभ होता है.
(2 ) फल सलाद तथा अंकुरित आहार के साथ साथ सिंघाड़ा, मखाना तथा कमल गट्टे का सेवन करना भी अत्यंत लाभदायक होता है.
(3 ) थायराइड रोगी को २ दिन के लिए उपवास रखना चाहिए और उपवास के दौरान केवल फलों का रस पीना चाहिए. रोगी को एनिमा द्वारा पेट साफ़ करना चाहिए तथा इसके बाद प्रतिदिन उदरस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए.
(4 ) एक कप पालक के रस में एक बड़ा चम्मच शहद मिलाकर और चुटकी भर जीरे का चूर्ण डालकर प्रतिदिन रात को सोने से पहले सेवन करना चाहिए.
(5 ) कंठ के पास गांठों पर भापस्नान देकर दिन में ३ बार मिटटी की पट्टी बांधनी चाहिए और रात के समय गांठों पर हरे रंग को बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए.
(6 ) एक गिलास पानी में २ चम्मच साबुत धनिया को रात के समय में भिगोकर रख दें और सुबह के वक़्त इसे मसल कर उबाल लें. जब पानी चौथाई भाग रह जाए तो खाली पेट इसे पी लें तथा गर्म पानी में नमक डाल कर गरारे करें. इस प्रकार प्रतिदिन करने से थायराइड रोग में अत्यंत लाभ होता है.
(7 ) त्रिफला गूगल , मेदोहर गूगल और त्रिफला चूर्ण- तीनों १००-१०० ग्राम लेकर अच्छे से मिलाकर ३ बार छान लें. इसकी १-१ चम्मच सादे पानी के साथ दिन में तीन बार सुबह भूखे पेट, दोपहर को खाने के एक घंटा पहले और रात को सोते समय लें.
(8 ) थायराइड के रोगी को तली-भुनी चीजें, मैदा, चीनी, चाय, शराब, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए.
(9 ) तनाव से बचें और अपने आहार में अधिक से अधिक पोषकता वाले खाद्य पदार्थों को शामिल करें.
10 ) हलके व्यायाम तथा कुछ योगासनों के अभ्यास से थायराइड ग्रंथि के स्त्राव को संतुलित करने में मदद मिलती है.
11 ) थायराइड ग्रंथि को स्वस्थ और संतुलित करने वाले आसान और प्राणायाम रोज १५ मिनट का अभ्यास इस ग्रंथि के विकारों से बचाव करने वाला होता है और हो चुका विकार धीरे धीरे ठीक होने लगता है.
आयुर्वेद उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली तथा एक टॉनिक के रूप में हज़ारों वर्षों से उपयोग में लायी जा रही एक जड़ी-बूटी - अश्वगंधा - थायराइड ग्रंथि की दोनों स्थितियों यानि अल्पसक्रियता तथा अतिसक्रियता में अत्यंत परिणामकारी सिद्ध होती है. अश्वगंधा के थायराइड रोगों में उपयोगी होने के चार कारण हैं :-
१) यह जड़ी आपके शरीर के साथ काम करती है, उसके खिलाफ नहीं.
२) यह एक एडाप्टोजेन है जो तनाव, आघात, चिंता और थकान के लिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है. यह 'रसायन' और बलवर्धक है और पुष्टिकारक होने से नियमित रूप से ली जा सकती है. अश्वगंधा अन्तःस्त्रावी प्रणाली को ठीक भी करती है जिससे व्यक्ति को हार्मोनल संतुलन की पुनः प्राप्ति होने में मदद मिलती है.
3 ) अश्वगंधा थायराइड अल्पसक्रियता (hypothyroidism ) ही नहीं बल्कि थायराइड अतिसक्रियता (hyperthyroidism ) में भी उतनी ही प्रभावी और लाभकारी होती है.
4 )इसका शरीर पर समग्र और व्यापक प्रभाव पड़ता है.
अश्वगंधा की २०० से १२०० मिग्रा की छोटी सी खुराक प्रतिदिन लेनी चाहिए. यदि इसकी गंध अनचाही लगे तो इसे तुलसी वाली चाय में मिलाकर लिया जा सकता है.
आधुनिक दौर में लगभग प्रत्येक व्यक्ति किसी ना किसी तनाव से ग्रस्त रहता है , शायद इसीलिए थायराइड ग्रंथि के विकार से ग्रस्त रोगियों की संख्या बहुत बढ़ गयी है. हालांकि शारीरिक और मानसिक तनाव से एड्रिनल ग्रंथियों पर दबाव पड़ता है और उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होने से थायराइड जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं पर तनाव थायराइड ग्रंथि की कार्यक्षमता पर सीधा प्रहार भी करता है . ऐसा किस प्रकार होता है, आइये जानते हैं :-
(१) हमारे शरीर में हाइपोथेलेमस , पिटूइटेरी ग्रंथि और एड्रिनल ग्रंथियों के बीच एक क्रियात्मक लयबद्धता होती है जिसे चिकित्सकीय भाषा में हाइपोथैलमिक =पीटियूटरी - एड्रिनल एक्सिस - (HPA axix ) कहा जाता है . यह लयबद्धता तनाव को शरीर की प्रतिक्रिया , शारीरिक तापमान, पाचन, रोगप्रतिरोधक तंत्र , मनोदशा , यौनक्षमता और ऊर्जा का उपयोग आदि से सम्बंधित महत्वपूर्ण क्रियाओं का सञ्चालन करती है . लगातार तनाव के बने रहने से हाइपोथेलेमस और पिट्यूटरी ग्रंथि की कार्यक्षमता कमज़ोर होने लगती है और परिणामस्वरूप थायराइड क्रियाशीलता कम होने लगती है और हाइपोथायरॉइडिस्म रोग की उत्पत्ति होती है.
(2 ) सक्रीय और प्रभावकारी थायराइड हार्मोन T3 का प्रतिशत बहुत कम होता है अतः रक्त में स्त्रावित होने के बाद T/'/4 का T3 में परिवर्तन आवश्यक होता है. तनाव इस परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करता है.
(3 ) तनाव में उत्पन्न एड्रिनल ग्रंथि की अल्पसक्रियता से रोग प्रतिरोधक तंत्र कमज़ोर पड़ता है और ऑटोइम्म्यूनिटी (Autoimmunity ) बढ़ती है. परिणामस्वरूप हशिमोटो डिजीज होती है.
(4 ) थायराइड हार्मोन को ग्रहण करने वाले ग्राही क्षेत्र (thyroid receptors ) जो कोशिकाओं पर होते हैं और जिनसे जुड़कर ही यह हार्मोन्स अपना प्रभाव दिखाते हैं, उन ग्राही क्षेत्रों की इन हार्मोन्स के प्रति संवेदनशीलता , तनाव से, कम हो जाती है. यह प्रतिरोध ( thyroid harmone resistence ) उसी प्रकार का होता है जैसा मधुमेह के रोगियों में इन्सुलिन हार्मोन के प्रति होता है.
(5 ) सतत तनाव से कार्टिसोल नामक हार्मोन का स्त्राव बढ़ जाता है जिससे रक्त से अतिरिक्त इस्ट्रोजेन हार्मोन को हटाने की लिवर की क्षमता कम हो जाती है. रक्त में बढ़ा हुआ इस्ट्रोजेन थायराइड बाइंडिंग ग्लोब्युलिन नामक प्रोटीन के स्तर को बढ़ाता है जो थायराइड हार्मोन्स को अपने से बाँध कर निष्क्रिय कर देता है. परिणामस्वरूप स्वतंत्र थायराइड की रक्त में कमी हाइपोथायरॉइडिस्म के लक्षण उत्पन्न करती है.
* संजीवनी थाइरोक्योर चूर्ण की एक-एक चम्मच सुबह खली पेट, दोपहर के खाने से आधा घंटा पहले एवं रात के खाने के २ घंटे बाद सादे पानी से लें.
त्रिफला चूर्ण , कांचनार गूगल, मेदोहर गूगल तथा ट्रफल्स गूगल - सभी १००-१०० ग्राम. इन चारों चूर्ण (गोलियां तोड़ कर चूर्ण नहीं बनाना है, चूर्ण ही लेना है ) को अच्छे से मिलाकर तीन बार छान लें. - यही संजीवनी थाइरोक्योर चूर्ण है.
* आरोग्यवर्धिनी वती की २-२ गोली दिन में ३ बार खाने के बाद सादे पानी से लें.
* अश्वगंधा टेबलेट की एक-एक गोली सुबह, दोपहर और रात को दूध के साथ लें.
* शंखपुष्पी घनवटी की २-२ गोली सुबह, दोपहर और रात को पानी के साथ.
* ५० ग्राम साबुत धनिया रात को दो गिलास पानी में भिगो दें. सुबह इसे उबालें और एक गिलास पानी रह जाने पर उतार कर ठंडा कर छान कर खाली पेट पियें.
( संजीवनी थाइरोक्योर चूर्ण इस पानी के साथ ले सकते हैं,)
* एक कप पालक के रस में २ चम्मच शहद तथा आधा निम्बू निचोड़ कर रात को सोने से पहले पियें.
१) पहले रोगी को कुछ दिनों तक फलों का रस (नारियल पानी, अनानास, संतरा, सेब, गाजर, चुकंदर तथा अंगूर का रस ) पीना चाहिए. इसके बाद ३ दिन तक फल तथा तिल को दूध में डाल कर पीना चाहिए. इसके बाद रोगी को सामान्य भोजन करना चाहिए जिसमे हरी सब्ज़ियां, फल, सलाद और अंकुरित दालें अधिक मात्रा में हों.
२) सिंघाड़ा, मखाना तथा कमलगट्टे का सेवन करना भी लाभदायक होता है.
३) थायराइड रोगों से पीड़ित रोगी को तली भुनी , मैदा से बानी चीजें, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ , चीनी, चाय, कॉफ़ी, शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए.
४) उन चीजों का भोजन में अधिक प्रयोग करना चाहिए जिसमे आयोडीन की अधिक मात्रा हो.
५) यदि रोग पहले से कोई दवा ले रहा हो तो उसे तुरंत बंद नहीं करना चाहिए तथा उपरोक्त दवा का सेवन कम से कम १३ महीने एवं अधिकतम २६ महीने तक लगातार करना चाहिए, दवा बीच में बंद न करें.