विटामिन डी अस्थियों (हड्डियों ) के लिए विशेष रूप से उपयोगी और गुणकारी होता है अतः विटामिन डी अस्थि-दौर्बल्य को दूर करने वाला पोषक तत्व है. शुद्ध विटामिन डी सफ़ेद रंग का, गंध रहित, वसा में घुलने वाला और पानी में न घुलने वाला तत्व है जो अम्ल, क्षार, ताप व् हवा के संपर्क में आने पर नष्ट नहीं होता है.
अस्थियों (हड्डियों ) के लिए विटामिन डी (Vitamin D for the bones ) - विटामिन डी अस्थियों के निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. अस्थियां मजबूत हों , मजबूत रहें इसके लिए अस्थियों पर कैल्शियम जमने की प्रक्रिया ( calcification ) का होना जरुरी होता है. विटामिन डी अस्थियों में कैल्सिफिकेशन की प्रक्रिया में सयोगी होता है जिससे हड्डियां मजबूत होती हैं. साथ ही विटामिन डी की मौजूदगी से , आँतों में कैल्शियम व् फास्फोरस के अवशोषण को बढ़ावा मिलता है यानी यह विटामिन डी शरीर में कैल्शियम व् फास्फोरस का उचित उपयोग कराने में सहायक होता है. शरीर में विटामिन डी, कैल्शियम व् फास्फोरस, ये तीनो पदार्थ उपलब्ध होते हैं तो हड्डियों का विकास उत्तम ढंग से होता है. कहने का मतलब ये है की विटामिन डी के मौजूद रहने पर ही कैल्शियम और फास्फोरस अपना काम ठीक से कर पाते हैं. कैल्सिफिकेशन की क्रिया में सहयोगी होने के कारण विटामिन डी को "कैल्सीफायिंग विटामिन " भी कहा जाता है.
दांतों के लिए विटामिन डी (Vitamin D for the teeth ) - विटामिन डी दांतों के लिए भी उपयोगी होता है अतः दांतों के विकास के लिए भी विटामिन डी का होना बहुत जरुरु होता है यानी कैल्शियम और फास्फोरस के साथ ही विटामिन डी की उपस्थिति दांतो के निर्माण और मजबूती के लिए बहुत जरुरी है. विशेषकर शैशव और बाल्य्काल के समय विटामिन डी की उपलब्धि बहुत जरुरी होती है ताकि दांतों का ठीक से निर्माण हो सके और दांत मजबूत हो सकें.
विटामिन डी वनस्पति-भोज्य पदार्थों में नहीं पाया जाता, इसकी उपस्थिति प्राणिज भोज्य पदार्थों में ही होती है. शाकाहारी अपने आहार में मलाईयुक्त दूध, मक्खन, पनीर आदि को शामिल करके विटामिन डी प्राप्त कर सकते हैं. दूध विटामिन डी प्राप्त करने का अच्छा स्त्रोत है और विशेष बात ये है की दूध में कैल्शियम और फास्फोरस भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. सूर्य की किरणे भी विटामिन डी की अच्छी स्त्रोत हैं. सूर्य के प्रकाश के प्रभाव से भी शरीर में विटामिन डी की कुछ मात्रा निर्मित होती है इसलिए विटामिन डी की प्राप्ति के लिए केवल आहार पर ही निर्भर न रहकर सूर्य के प्रकाश का सेवन भी करना चाहिए.
विटामिन डी की कमी या अनुपस्थिति के कारण, शरीर द्वारा कैल्शियम और फास्फोरस का अवशोषण नहीं हो पाता है जिसका दुष्परिणाम होता है हड्डियों का कमज़ोर होना, दांत ख़राब होना और कमजोर होना. शिशुओं के मामले में इसका दुष्परिणाम ये होता है की दांत देर से निकलते हैं और दांतों की अच्छी रचना नहीं होती जैसे दांतों का सफ़ेद व् सुडौल ना होना, दांतों पर मलिन व् काले रंग का पदार्थ जमना जी दांतों को ख़राब, कमजोर और बदसूरत करता है. विटामिन डी की कमी से बच्चों को रिकेट्स (Rickets ) नामक रोग हो जाता है और प्रौढ़ आयु के स्त्री-पुरुषों को आस्टियोमलेसिआ (Osteomalacia ) नामक रोग हो जाता है. इन दोनों रोगों के विषय में कुछ जानकारी यहाँ प्रस्तुत की जा रही है.
रिकेट्स - विटामिन डी की कमी या अनुपस्थिति होने पर बच्चे के शरीर की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, नरन होने लगती हैं जिससे मुड़ने लगती हैं. कलाई, घुटनो और एड़ियों के हड्डियों के अंतिम सिरे चौड़े हो जाते हैं. इस बीमारी की गंभीर स्थिति होने पर बच्चे की खोपड़ी की हड्डियां कोमल हो जाती हैं, माथा आगे को निकल आता है, पसलियां भी आगे निकल कर वक्राकार हो जाती हैं. इस लक्षण को "कबूतरी वक्ष " (pigeon chest ) कहते हैं. रीढ़ की हड्डी भी वक्राकार हो जाती है जिससे बच्चा कुबड़े की तरह आगे की तरफ झुका हुआ रहता है. इस बीमारी को सुखिया या सुखमाईली कहते हैं जो विटामिन डी की कमी या अनुपस्थिति के कारण होती है. इतना विवरण पढ़ कर आप इस निष्कर्ष पर पहुँच चुके होने की अन्य पोषक तत्वों की तरह विटामिन डी की कमी या अनुपस्थिति होने पर शरीर की सामान्य वृद्धि और विकास की गति पर बुरा प्रभाव पड़ता है , हड्डियों के साथ ही मांसपेशियों का विकास भी ठीक से नहीं हो पाता है.
यद्यपि भारत जैसे विकास शील देश में, जहाँ अधिकाँश लोगों को ठीक से दो वक़्त का भोजन ही नहीं मिलता, वहां विटामिन की उपलब्धि में अधिकता हो इसकी सम्भावना बहुत काम है तथापि यह जानकारी देना, सावधानी की दृष्टि से, जरुरी है की ऐसा आहार विहार न करें जिससे शरीर में विटामिन डी की अधिकता हो क्यूंकि इस विटामिन की अधिकता होने पर भूख काम होना, पाचन संस्थान सम्बन्धी विकार होना, सुस्ती व् कमजोरी का अनुभव होना जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं. धमनियों, गुर्दों व् फेफड़ों में कैल्शियम का जमाव होने लगता है जो शरीर और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तथा कभी-कभी घातक सिद्ध होता है.
इतने महत्वपूर्ण विटामिन के विषय में यह जानना जरुरी होगा की दैनिक आहार विहार में विटामिन डी की कितनी मात्रा प्राप्त करना जरुरी और हितकारी होगा. यद्यपि भारतीय चिकित्सा एवं अनुसंधान परिषद् (ICMR ) के विशेषज्ञों द्वारा विटामिन डी की दैनिक आवश्यक मात्रा की सिफारिश नहीं की गई है क्यूंकि सूर्य की किरणों की उपस्थिति से, इस विटामिन की पर्याप्त मात्रा, शरीर में निर्मित होती रहती है फिर भी पोषक-तत्वों के विशेषज्ञों के अनुसार, शीशों और स्कूल जाने वाले बच्चों को, १० माइक्रो ग्राम यानी ४०० अंतर्राष्ट्रीय इकाई (I .U . ), बड़े बच्चों, युवा और प्रौढ़ आयु वालों को ५ माइक्रोग्राम (२०० IU ) विटामिन डी की मात्रा प्रतिदिन लेना पर्याप्त होता है. महिलाओं को, गर्भकाल और शिशु को दूध पिलाने के दिनों में , विटामिन डी की १० माइक्रोग्राम मात्रा प्रतिदिन लेना चाहिए. उष्ण कटिबंध (tropical countries ) में इसकी लगभग आधी मात्रा, सूर्य की किरणों से , शरीर में निर्मित हो जाती है. किसी भी कारण से शरीर में विटामिन डी की कमी होने की जानकारी प्राप्त होने पर चिकित्सक के परामर्श अनुसार, आवश्यक समय तक, उचित दवाइयों का सेवन करके और पाठ्य आहार-विहार का सेवन करके, इस कमी को दूर किया जा सकता है.