विभिन्न प्रकार के शारीरिक रोगों में वृद्धि के साथ साथ , आज के दौर में, मानसिक रोगों में भी वृद्धि हुई है. ऐसा ही एक रोग है सीजोफ्रेनिया (Schizophrenia ) जिसमे फ्लावर मेडिसिन्स बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती है. सीजोफ्रेनिया (Schizophrenia ) से सम्बंधित उपयोगी विवरण और रोगमुक्ति में कारगर फ्लावर मेडिसिन्स पर Biovatica .Com द्वारा यह आर्टिकल प्रस्तुत किया जा रहा है.
सीजोफ्रेनिया (Schizophrenia ) यानी मानसिक क्षमताओं का हास व् मन-मस्तिष्क का शारीरिक क्रियाओं से तालमेल न होना. सन १९११ में डॉक्टर ब्लूलार ने इस रोग को सीजोफ्रेनिया नाम दिया था. सीजोफ्रेनिया (Schizophrenia ) को मेन्टल डिसोसिएशन भी कहा जाता है. इसका कारण ये है की सीजोफ्रेनिया (Schizophrenia ) से पीड़ित व्यक्ति वास्तविकता या वर्तमान को समझने में असमर्थ होता है परिणामस्वरूप वह परिस्थिति को स्वीकारने, समझने, चिंतन करने, क्रियाकलाप करने व् भावनात्मक संवेग पैदा करने में कोई तालमेल नहीं रख पाता और कभी बिलकुल सामान्य स्वस्थ रहता है तो कभी पागलों की तरह व्यवहार करता है. वैसे तो ये रोग वर्षों से समाज में व्याप्त है परन्तु कुछ समय से बदलते सामजिक परिवेश व् आधुनिकीकरण ने इस रोग को तेजी से फैलाया है. दर्दनाक सच यह है की एकल परिवार, प्रौढ़ावस्था में विवाह व् उसके पश्चात एकल संतान, जिन्हे हम आज हमारी स्वतंत्रता से जोड़ते हैं इस रोग को पनपने के लिए पूर्ण पोषण प्रदान करते हैं. उस पर हमारी आधुनिक, भाग-दौड़ व् प्रतिस्पर्धा से भरी ज़िंदगी आग में घी का काम कर रही है. सीजोफ्रेनिया (Schizophrenia ) के कारण, लक्षण और लक्षणों के आधार पर फ्लावर मेडिसिन्स का चुनाव सम्बन्धी उपयोगी विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है :-
विभिन्न साइकिएट्रिक अस्सोसिएशन्स के अनुसार सीजोफ्रेनिया कोई संक्रामक रोग नहीं है अर्थात इसके फैलने या पनपने में किसी बैक्टीरिया, वायरस, या फंगस आदि का हाथ नहीं है वरन मुख्य रूप से दो कारण इसके जिम्मेदार हैं - १) अनुवांशिकता २) सामजिक परिवेश व् वातावरण . अमेरिकन साइकिएट्रिक असोसिएशन के अनुसार सीजोफ्रेनिया को ९ प्रकार में वर्गीकृत किया जा सकता है.
इसके लक्षण इस प्रकार होते हैं :-
* यह किशोरवय बच्चों में विकसित होती है.
* व्यक्तित्व का विघटन जन्म के कुछ वर्षों बाद ही शुरू हो जाता है.
* ३५ वर्ष व् अधिक उम्र के माता पिता से पैदा हुई संतानों में इसकी संभावना अत्यधिक देखी गयी है.
* सीखने की प्रक्रिया जो उम्र के साथ बढ़नी चाहिए , वह धीमी होती जाती है.
* विचारों, शब्दों व् व्यवहार का तालमेल बिखरने/ टूटने लगता है.
* बच्चे के शब्द असम्बद्ध , अनर्गल होने लगते हैं. बचकानापन बढ़ जाता है.
* युवा होता किशोर लोगों के सामने आने, मिलने जुलने से कतराता है इसी कारण स्कूल , कॉलेज या समारोह में जाने से बचता है की कहीं उसका असंतुलन सबके सामने उजागर न हो जाए.
*हार्मोन्स का बदलाव तीव्रता से होना इसका मूल कारण है.
इसके लक्षण इस प्रकार हैं :-
* रोगी दिन-प्रतिदिन उदासीनता की ओर अग्रसर होता है.
* महत्वाकांक्षा व् रुचियाँ धीरे-धीरे संकीर्ण होती जाती है.
* ये रोगी सदैव चुपचाप रहते हैं, अकेलापन इन्हे पसंद आता है, घर में भी ये सबसे अँधेरे कोने में रहना पसंद करते हैं. लेकिन इन्हे उद्दीप्त किया जाए तो ये हिंसक हो जाते हैं.
* एकांत की तलाश में घर छोड़ कर कहीं दूर जाने की कोशिश करते हैं.
* बड़े होने पर भी बच्चों जैसी हरकतें करते हैं क्यूंकि अब भी वे मन में अपने आप को बच्चा ही महसूस करते हैं.
सीजोफ्रेनिया बीमारी के इस प्रकार में उपरोक्त लक्षणों के साथ-साथ अर्थहीन, तर्कहीन धारणाएं रोगी के मन में स्थापित हो जाती है , जैसे :-
* रोगी को लगता है की उसके परिजन उसके शत्रु बन गए हैं जो भाँती भाँती से उसे प्रताड़ित करते हैं.
* रोगी को अत्यधिक बेचैनी होती है. उसे लगता है की उसके शरीर में विद्युत् तरंगें प्रवाहित/प्रविष्ट हो रही है.
* अनेक तरह के भ्रम मन में पाल कर रोगी सदैव व्याकुल व् असहज रहता है.
* रोगी को उसकी बीमारी का आभास रहता है अतः उसकी समस्त जैविक ऊर्जा का व्यय स्वयं को सामान्य दिखाने व् बाहरी वातावरण से तालमेल बैठने में ही खर्च होता है अतः वह स्वयं को हमेशा थका हुआ महसूस करता है.
यह सीजोफ्रेनिया रोग का अचानक अचानक प्रकट होने वाला प्रकार है, इसमें रोगी जड़ता व् उत्तेजना की अवस्थाओं के बीच झूलता रहता है.
* जड़ अवस्था - रोगी पूर्णतः उदासीन, गतिहीन, भावशून्य हो जाता है. रोगी के हाथ-पैरों में सूजन, नील व् बेड-सोर तक हो जाते हैं परन्तु रोगी इन सभी कष्टों से बेपरवाह रहता है और उसका इनकी तरफ ध्यान ही नहीं जाता.
* उत्तेजित अवस्था - रोगी अचानक हिंसक हो जाता है, ऐसा अचानक संवेगों के उग्रता धारण करने से होता है जिसे नियंत्रित करना रोगी के बस में नहीं रहता. तीव्र उग्रता व् हिंसात्मक व्यवहार के बाद रोगी पुनः निढाल होकर व्यवहार शून्य हो जाता है, कई बार वह अपने हिंसात्मक व्यवहार के लिए दुखी भी होता है.
इस कैटेगरी के सीजोफ्रेनिया के रोगी में संवेगात्मक अस्थिरता इतनी प्रबल होती है की रोगी को संभालना मुश्किल हो जाता है.
* रोगी को हिंसक व् असामाजिक कृत्यों के दौरे पड़ते हैं.
* रोगी अपव्यवहार, तोड़-फोड़ , मारकाट से संतोष प्राप्त करता है.
* इस प्रकार के रोगी आत्मसंतोष के लिए कोई भी कार्य जैसे बलात्कार , खुनी जानलेवा हमला, हत्या व् अन्य कोई भी जघन्य या दर्दनाक कार्य कर सकते हैं.
* विशेष कर ऐसे माता-पिता जिनकी विरासत में रोग के लक्षण हों, उनके बच्चे इसके शिकार हो सकते हैं.
* अधिक उम्र में माता-पिता बनने से बच्चे को विरासत में इस रोग के मिलने की सम्भावना अधिक हो जाती है.
* शुरुआत से ही बच्चे के भाषा विकास में बाधा आती है, बच्चा देर से बोलना सीखता है, रुक-रुक कर या हकला कर बोलता है, अधिक उम्र तक तुतलाकर बोलता है या अत्यंत तीव्र अवस्था में गूंगापन भी उत्पन्न हो सकता है.
* छोटे - छोटे काम सीखने में बड़ी कठिनाई होती है जैसे निर्धारित समय व् स्थान पर मल-मूत्र त्याग करना, चम्मच पकड़ना, चप्पल पहनना (सही पैर का ज्ञान नहीं) , जूते के लेस बांधना आदि.
* असंतुलित मुख-मुद्रा, वाणी व् क्रियात्मक व्यवहार करना.
* अचानक क्रोधित हो जाना, तोड़-फोड़ करना, चीखना आदि.
* बच्चे में कुंठा व् हीं भावना घर करने लगती है.
* कामुकता (किशोरावस्था की तरफ बढ़ने पर) व् हिंसक आवेग उत्पन्न होने लगते हैं.
* विचित्र हरकतें करना जैसे अजीब मुखमुद्रा बनाना , चरों हाथ पैरों से चलना, पंजों पर चलना, गोल घूमना, बालों को नोचना, कपडे फाड़ना, स्वयं को चोटिल करना आदि.
* अचानक पैदा होने वाली यह अवस्था तीव्रतम, संवेगों के साथ होती है जिसे संभालना बड़ा चुनौतीपूर्ण होता है. रोगी इस अवस्था में अपने जूनून की चरम सीमा पर सवार होता है व् कुछ भी अनर्थ करने को तत्पर रहता है. यह अवस्था रोगी को कुछ दिनों के लिए अपनी पकड़ में बनाये रखती है व् बाद में रोगी स्वतः ही सामान्य हो जाता है. रोगी जूनून की अवस्था में आसपास के वातावरण व् वर्तमान से पूर्णतः विच्छेदित रहता है. रोगी के परिजनों के लिए यह समय बहुत चुनौतीपूर्ण होता है.
रोग की इस अवस्था में रोग के लक्षण धीरे धीरे प्रकट होते हैं व् समय बीतने के साथ बढ़ते जाते हैं और रोगी के व्यक्तित्व को विखंडित करते हैं. उसे सामान्य जीवन नहीं जीने देते.
* रोग के उपचारांत भी कुछ लक्षण तो रोगी को जीवन पर्यन्त वहन करने पड़ते हैं. ये लक्षण गुप्त अवस्था में रोगी में विद्यमान रहते हैं जो असामान्य वातावरण (जब रोगी असहज होता है) मिलने पर फिर प्रकट होते हैं.
* रोगी के परिजन व् रोगी स्वयं भी इसे स्वीकार कर समायोजन बनाये रखते हैं.
* वातावरण को सामान्य बनाये रख कर व् परिजनों की मदद से सामान्य जीवन जिया जा सकता है.
जैसा की नाम दर्शाता है यह उपचार के बाद कुछ विशेष प्रकार की चिंतन प्रक्रिया व् भावनात्मक विकार के बचे रह जाने के कारण होता है. रोगी यदा- कदा अपनी पुराणी अवस्था को दोहरा सकता है.
* स्वाभाविक समन्वय व् समायोजन का असंतुलन.
* भावनात्मक विकृतियां :- रोगी भावनात्मक अनुभूति से परे हो जाता है तथा उसके लिए सुख व् दुःख में फर्क महसूस करना मुश्किल हो जाता है. परिजनों के भावनात्मक व्यवहार से उसका दिमाग चकराने लगता है और वह यह निर्णय नहीं कर पाता की उसे कैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए. रोगी आनंदविनोद के वातावरण में रोने लगता है और खेदपूर्ण व् शोकाकुल माहौल देख कर हंसने लगता है.
* व्यक्तित्व का विघटन :- भावनात्मक, बौद्धिक व् क्रियात्मक प्रतिक्रियाओं में समन्वय व् एकरूपता का अभाव होने से सभी क्रिया-कलाप असम्बद्ध व् असंतुलित होते हैं जैसे :-
- खाना खाने बैठे तो खाते ही जाएंगे जब तक कोई रोके नहीं या मिलना बंद न हो.
-भूख-प्यास की अनुभूति ही न हो.
- दैनिक कार्यो के प्रति जागरूकता न होना.
- सोने-जागने , स्नान, साफ़-सफाई, पढाई आदि रोगी के लिए कोई मायने न रखें.
- ३५ वर्ष का युवक , ५ वर्ष के बालक के सामान व्यवहार करे.
- रोगी हँसते हँसते रोने लगे या रट-रट हंसने लगे.
* व्यवहारिक विसंगतियां :- रोगी अजीब हरकत करते देखे जाते हैं जैसे - कंधे उचकाना, आँखें मिचकाना, जुबान बार बार बाहर निकालना, मुंह सिकोड़ना या फुलाना, अंगों (हाथ-पैर ) को झटकाना, बार बार अंगड़ाई लेना, उबासी लेना, कपडे फाड़ना, नग्न हो जाना आदि.
* विभृम व् दृष्टि भृम :- रोगियों में उत्पीड़न व्यामोह (स्वनिर्मित भावना ) की प्रधानता होती है. रोगी यह महसूस करता है की उसके परिजन उसे प्रताड़ित कर रहे हैं, उसे मार डालना चाहते हैं, उसकी इस दशा के ज़िम्मेदार ये ही लोग हैं. इन धारणाओं का कारण रोगी के अंदर पलने वाले अनेक प्रकार के भृम होते हैं जैसे :-
१) श्रवण सम्बंधित (auditory related ) - चीख पुकार सुनाई देना, रोने-हंसने की आवाजें सुनाई देना.
२) दृश्य सम्बन्थित (vision , visual related ) - मृत लोग दिखना, ईश्वर दिखाई देना, आग, तूफान, सुनामी, भूकंप आदि हादसा दिखना और उससे आतंकित हो जाना.
३. स्पर्श सम्बंधित (touch related ) - कोई मुझे मार रहा है, बाँध रहा है,शरीर पर कीड़े रेंग रहे हैं, शरीर पर आग की लपटें , तपन महसूस होना, स्वयं का कागज़ या मिटटी या बर्फ का बना महसूस करना.
४) घ्राण सम्बंधित (smell related ) - फूलों की, भोजन की, मिटटी की खुशबु आना, मुर्दे की सड़ांध, पाखाना की बदबू, जलने की बदबू आना.
५) स्वाद (taste related ) - भोजन कड़वा, बेस्वाद लगना, भोजन में विष मिले होने का भृम होना, भोजन के स्थान पर कीड़े-मकोड़े, केंचए आदि उसे जबरदस्ती खिलाये जाने का भृम होना.
१) अनुवांशिक विसंगतियां
२) दोषपूर्ण पारिवारिक वातावरण
३) विफलता/मानसिक संघर्ष
४) बालयकाल का भावनात्मक आघात.
५) यौन ग्रंथियों का असंतुलित स्त्राव
६) यौन ग्रंथियों का प्रतिगमन ( विधवा व् विधुर के केस में )
७) अंतर्मुखी स्वभाव .
८) हीन भावना .
९) मस्तिष्क आघात .
१०) अत्यधिक प्रतिरक्षा व् सामाजित तत्व.
११) अधिक उम्र के माता-पिता द्वारा नवजात शिशु को विरासत में रोग स्थानांतरण .