Amla is one of the most wonderful and superior natural herbs Mother Nature has created. It contains all the five liquids or juices except brine or muriate. Amla is the best and natural source of vitamin C. The vitamin C present in it never ever vanishes. Here we are listing detailed introduction, characteristics and health benefits of this marvellous fruit.
In winter season fresh and ripe Amla is available while in other seasons it is found in dry form. Ayurveda has praised Amla a lot and has regarded it as an herbal chemical. That which treats old age and disease is called herbal chemical in Ayurveda. Due to this quality it has been given the title of Amrit-phal (nectar-fruit) by Ayurveda. Amla contains all the qualities of harad and it also counters Prameha with additional qualities such as being rich in mineral and extremely analeptic. Due to its acidic property it counters Vata , due to soft flavour it counters Amla-Pitta and due to sour taste & acerbic quality it counters Kapha. This way it defeats Tridosha .
Amla is a treasure house of vitamin C because the amount of vitamin C found in Amla is not found in any other fruit. And it is also so astonishing that the vitamin C present in Amla never vanishes. Vitamin C is such a delicate element that it gets vanished due to the effect of heat. Hence vitamin C present in other fruits and vegetables gets extinct when it comes in contact with heat or fire but Amla naturally possess such elements which don't let its vitamin C to vanish. Whether Amla is green and fresh, or it is dried and old, its qualities don't go away. Its saltiness and acidic qualities protects its features making it an evergreen fruit for all seasons in forms of various jams, pickles, jells and preserves ( chatni, Achar, Murabba etc.)
भुई आंवला एक छोटा सा पौधा होता है जो भारत में सर्वत्र पैदा होता है और विशेषकर गीली जगह में पाया जाता है. इसका घरेलु इलाज में अच्छा उपयोग होता है. इसके गुण धर्म के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी होती है. भुई आंवला शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में बहुतायत में पाया जाता है. इस आर्टिकल में भुई आंवला के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी जा रही है.
भुई आंवला के विभिन्न भाषाओँ में नाम (Name of BHUI aanvla , BHUI amla in different languages ) :--
संस्कृत (sanskrit ) - भूम्यामल्कि
हिंदी (hindi ) - भुई आंवला
मराठी (marathi ) - भुई आंवली
गुजराती (gujarati ) - भोंय आंवली
बांग्ला (bangla ) - भुई आंवला
तेलुगु (telugu ) - नेल नेल्ली
तमिल (tamil ) - कीलकायनेल्ली
कन्नड़ (kannada ) - अरु नेल्ली
उर्दू (urdu ) - भुई आंवला
लैटिन (latin ) - फलेन्थस निरूरी
english - phyllanthus niruri
भुई आंवला के गुण (quality and characteristics of BHUI aanwla ) - यह वातकारक, कड़वा, कसैला, मधुर, शीतल और प्यास, खांसी, पित्त, रक्तविकार, कफ, खुजली और घाव को ठीक करने वाला है. भुई आंवला लगभग एक बालिश्त से एक फुट तक ऊँचा छोटा पौधा होता है जो गीली ज़मीन में सर्वत्र पाया जाता है. यह वर्षाकाल में बहुतायत में पैदा होता है, शीतकाल में इसमें छोटे छोटे फल लगते हैं जो आंवले की शक्ल के होते हैं. इसके पत्ते भी आंवले के पत्ते जैसे होते हैं इसलिए इसे भुई आंवला कहा जाता है. इसमें फल बहुत ज्यादा मात्रा में लगते हैं इसलिए इसे 'बहुफला' भी कहते हैं. यह ग्रीष्म काल तक सूख जाता है. इसलिए इसे कार्तिक मास में संग्रह कर सुखा कर रख लेना चाहिए.
भुई आंवला के उपयोग (uses of BHUI aanvla ,BHUI Amla ) - कफ एवं पित्त शामक होने से भुई आंवला का उपयोग कफ एवं पित्तजन्य रोगों की चिकित्सा में किया जाता है यह रक्तशोधक और रक्तपित्तहर है - दीपन, पाचन, यकृत को उत्तेजना देने वाला और प्यास का शमन करने वाला है अतः इसका उपयोग रक्त विकार, रक्त पित्त, यकृत दौर्बल्य, कामला, पीलिया, अम्लपित्त, खास, श्वास, प्यास, चर्मरोग और विषम ज्वर में किया जाता है. मूत्र संसथान पर इसका विशेष प्रभाव होता है इसलिए प्रमेह रोग के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है. भुई आंवला से घरेलु आयुर्वेदिक इलाज की कुछ विधियां प्रस्तुत हैं :-
पीलिया - डंठल सहित भुई आंवला की पत्तियां कूट पीस कर महीन चूर्ण कर लें. एक चम्मच चूर्ण एक गिलास दूध में डाल कर १०-१५ मिनट उबाल कर उतार लें और ठंडा करके बिना शक्कर या मिश्री मिलाये , सुबह खाली पेट, रोगी को पीला दें. इस प्रकार छह दिन तक सिर्फ सुबह एक बार पिला कर सातवें दिन रोगी के खून की जांच करा लें. यह प्रयोग पूरी तरह निरापद है. परहेज में तेल, खटाई, तले पदार्थ, मिर्च मसाले , दूध, दही व् गरिष्ठ पदार्थों का सेवन न करें बल्कि गन्ने का रस, फलों का रस, उबला भोजन व् छाछ लेना चाहिए.
श्वेत प्रदर - इस चूर्ण को एक चम्मच मात्रा में लेकर एक कप चावल के धोवन के साथ सुबह खाली पेट पीने से स्त्रियों का श्वेत प्रदर रोग ठीक होता है. यह प्रयोग लाभ न होने तक करते रहना चाहिए.
यकृत - यकृत (liver ) की कमजोरी दूर करने के लिए यह चूर्ण एक चम्मच मात्रा में , एक गिलास छाछ के साथ सुबह खाली पेट पियें. इससे यकृत को बल मिलता है.
भूख खुलना - सुबह भुई आंवला की ५-६ पत्तियां चबाकर खाने से भूख खुल कर लगने लगती है.
घाव - भुई आंवला के पौधे का दूधिया रस घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है.
पेशाब में रुकावट - पेशाब खुल कर न आता हो तो इसके पंचांग का काढ़ा बनाकर एक कप काढ़े में एक चम्मच पीसी मिश्री मिला कर सुबह खाली पेट पीने से पेशाब खुल कर आने लगता है.