पेट के कई विकारों को दूर करना वाला एक अत्यंत गुणकारी तथा पेट का मित्र आयुर्वेदिक योग है - लवण भास्कर चूर्ण . इस आर्टिकल में इसका सम्पूर्ण विवरण प्रस्तुत है :-
सेंधा नमक , काला नमक , धनिया , पीपल , पिपला मूल , स्याह जीरा , तेजपात , नागकेशर , तालीस पत्र और अम्ल वेत - सब द्रव्य 20 -20 ग्राम . समुद्र नमक 80 ग्राम , संचर नमक 50 ग्राम . कालीमिर्च , जीरा और सौंठ - 10 -10 ग्राम . अनारदाना 50 ग्राम , दालचीनी व् बड़ी इलायची 5 -5 ग्राम .
लवण भास्कर चूर्ण बनाने की विधि बहुत सरल है . सभी द्रव्यों को अलग अलग कूट पीस कर खूब बारीक़ महीन चूर्ण कर लें . सभी द्रव्यों को अच्छी तरह मिला कर तार की छन्नी से तीन बार छान कर निम्बू के रस में गीला करके सुखा लें . इसे निम्बू की भावना देना कहते हैं . भावना देने से चूर्ण रुचिकर और स्वादिष्ट हो जाता है वैसे निम्बू की भावना देना अनिवार्य नहीं है .
लवण भास्कर चूर्ण का उपयोग पेट की बिमारियों के इलाज के लिए किया जाता है . विभिन्न रोगों में इसके घरेलु इलाज में उपयोगी कुछ अनुभूत व् गुणकारी प्रयोग निम्नलिखित हैं ;-
अग्निमांध में लवण भास्कर चूर्ण का उपयोग - पाचक अग्नि मंद हो जाने से खाया पिया ठीक से और जल्दी हजम नहीं होता इसे अग्निमांध कहते हैं . इसके इलाज के लिए लवण भास्कर चूर्ण आधा चम्मच , सिद्ध कुचिला चूर्ण एक रत्ती मिलाकर सुबह शाम पानी के साथ सेवन करना चाहिए .
अपच से दस्त - पेट में गर्मी बढ़ने , अपच होने और पित्त कुपित होने से पतले दस्त होने लगते हैं . ताज़े जमे हुए दही में पानी मिलाकर फेंट लगाकर पतला कर लें . इसमें आधा चम्मच लवण भास्कर चूर्ण घोल लें . सुबह के भोजन के साथ इसे घूँट - घूँट करके पियें और भोजन के अंत तक इसे भी ख़तम करें . 4 -5 दिन में ही मल - विसर्जन बंध कर होने लगता है .
अफारा - अपच के कारण पेट फूलने को अफारा कहते हैं . इस स्थिति को दूर करने के लिए लवण भास्कर चूर्ण का सेवन दिन में तीन बार करना चाहिए .
पेट का भारीपन - पेट के भारीपन और लगातार डकार आने की स्थिति में आधा चम्मच लवण भास्कर चूर्ण कुनकुने गर्म पानी के साथ लेना चाहिए .
बवासीर - भोजन के साथ एक गिलास ताज़ी छांछ में आधा चम्मच लवण भास्कर चूर्ण घोल कर एक एक घूँट करके पीते रहना चाहिए . शाम को लवण भास्कर चूर्ण का सेवन गर्म पानी या घी के साथ करना चाहिए , छांछ के साथ नहीं .