पेट में पानी जमा हो जाने पर पेट फूल जाता है , भूख मर जाती है , मुंह सूखता है , प्यास लगती है , पेट बड़ा और बाकी शरीर दुबला हो जाता है . इस आर्टिकल में जलोदर रोग को नष्ट करने वाले एक उत्तम आयुर्वेदिक योग " जलोदरारी रस (Jalodarari Rasa ) " का सम्पूर्ण विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है .
शुद्ध पारद 5 ग्राम , शुद्ध गंधक 10 ग्राम , मैन सिल , हल्दी , शुद्ध जमाल गोटा , हरड़ , बहेड़ा , आंवला , सौंठ , पीपल , काली मिर्च और चित्रक छाल , ये सब द्रव्य 5 -5 ग्राम . भावना द्रव्य - दंतिमूल का काढ़ा , थूहर का दूध और भांगरे का रस आवश्यक मात्रा में .
पहले पारद और गंधक मिलाकर खूब घुटाई करके कज्जली करें फिर मैनसिल मिलाकर रख दें . अब शेष सभी 10 द्रव्यों को कूट पीस कर बारीक चूर्ण करें और सबको खूब अच्छी तरह मिला लें . इसको पहले दंतिमूल काढ़े की फिर थूहर के दूध की और अंत में भांगरे के रस की 7 -7 भावना देकर 1 -1 रत्ती की गोलियां बनाकर छाया में सूखा लें . यह जलोदरारी रस तैयार हो गया .
जलोदरारी रस की एक एक गोली सुबह - शाम दशमूल के काढ़े या गर्म पानी या ऊंटनी के कुनकुने गर्म दूध के साथ लें . यदि पेट या यकृत के विकार के लिए सेवन करना हो तो घृतकुमारी ( ग्वारपाठा ) के साथ लेना चाहिए .
जलोदरारी रस जलोदर रोग को नष्ट करने वाला है . इसके सेवन से जल के सामान पतले दस्त लगते हैं और तीव्र शूल व् सर्वांग शोथ युक्त जलोदर रोग दूर होता है . जलोदरारी रस इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक दवा की दुकानों पर मिलता है .