अनुचित आहार विहार कब्ज़ को जन्म देते हैं और कब्ज़ से बवासीर का जन्म होता है . यदि आहार विहार उचित हो तो कब्ज़ पैदा न हो और कब्ज़ न हो तो बवासीर का जन्म न हो . बवासीर बीमारी के इलाज में अत्यंत लाभकारी आयुर्वेदिक औषधि " अर्शोविन वटी " के विषय में सम्पूर्ण जानकारी इस आर्टिकल में दी जा रही है .
नीम की निम्बोली और अशोक की छाल 100 -100 ग्राम , नागकेशर , कम्बोजी , जीवन्ति , लाजवंती , बकायन , गोरखमुंडी , रसवंती , कत्था , राल , वायविडंग - सब 25 -25 ग्राम . कचनार , आयापन 50 -50 ग्राम , सुहागा 40 ग्राम और कहरवापिष्टि 10 ग्राम .
कहरवापिष्टि को छोड़ कर शेष सभी द्रव्यों को कूट पीस कर बारीक चूर्ण कर लें और कहरवापिष्टि मिलाकर , त्रिफला के काढ़े के साथ खूब अच्छी तरह घुटाई करके सब द्रव्यों को एक जान कर लें और चने के आकार की गोलियां बनाकर सूखा लें . यह अर्शोविन वटी तैयार हो गयी है .
अर्शोविन वटी की 2 -2 गोली दिन में तीन बार पानी के साथ लाभ न होने तक सेवन करना चाहिए .
अर्शोविन वटी ख़ूनी और बादी , दोनों प्रकार की बवासीर के इलाज में फायदेमंद सिद्ध हुआ है . इसका कारण ये है की आयुर्वेद में दिए गए कुछ योगों के गुणकारी घटक द्रव्यों को चुन कर , प्रमुख रूप से नीम की निम्बोली को शामिल कर तैयार किया गया है . आप अर्शोविन वटी को उपरोक्त विधि अनुसार बना भी सकते है और बाजार से भी खरीद सकते हैं क्योंकि अर्शोविन वटी इसी नाम से बानी बनाई आयुर्वेदिक दवाइयों की दुकानों पर मिलती है .