संस्कृत - वासक, वासिका, वास्यति,
हिंदी - वासा, अडूसा, अरुष
बांग्ला - वासक
पंजाबी - वानसा
मराठी - अडुळसा
गुजराती - अरडूसो
तेलुगु - आडसरा, अड्डासारम
तमिल - एधाडड , आधाडाई
मलयालम - आडाटोदकम
कन्नड़ - अडुसोगा
अरैबिक - हूफारिन, कून
इंग्लिश (English) - मालाबार नट (Malabar Nut)
लैटिन - आधा तोडा वासिका (ADHATODA VASIKA)
अडूसा (Adusa) पूरे भारत में पाया जाता है. अडूसा 4 से 8 फुट की ऊंचाई वाला एक ही स्थान पर चारों तरफ फैला हुआ झाड़ीदार पौधा होता है. आयुर्वेद में जिन महत्वपूर्ण औषधियों का वर्णन किया गया है, अडूसा उनमे से एक है. अडूसा (Adusa) के पत्ते हरे, तीन से आठ इंच लम्बे, रोमयुक्त , विशेष असामान्य गंध वाले और अमरुद के पत्तों की तरह भालाकार होते हैं. बीच में पत्तों की चौड़ाई एक से दो इंच होती है. इसका तना कोमल और हल्का होता है और इसके फूल सफ़ेद रंग के बड़े और लम्बी लम्बी मंजरियों में लगे होते हैं . फूल की पंखुड़ियां अंडाकार और पांच खंड़वाली होती हैं. इसमें आधा इंच लम्बाई वाली फली लगती है जिसमे चार बीज होते हैं . इसमें फूल फ़रवरी मार्च में आते हैं. हालाँकि पूरे भारत में सफ़ेद फूल वाला अडूसा ही सबसे अधिक पाया जाता है किन्तु बंगाल में काले फूल वाला अडूसा भी मिलता है जिसके गुणधर्म सामान्य अडूसा से अधिक होते हैं.
अडूसा में गंधयुक्त उड़नशील तेल ,वसा , तथा एक प्रकार का तीक्ष्ण क्षाराभ वासिकिन (Vasicine ) तथा अधातोडिक एसिड (Adhatodic acid ) , शर्करा , गोंद व् लवणयुक्त तत्व होते हैं . अडूसा का औषधीय प्रभाव मुख्यतः बासिकिन तथा तेल के कारण होता है.
अडूसा के पत्तों का विभिन्न प्रकार से आयुर्वेदिक उपयोग किया जाता है. अडूसा के पत्ते सुखाकर उनके चूर्ण के रूप में, अडूसा के ताज़े पत्तों का ऱस निकालकर या पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रयोग में लाया जाता है.
अडूसा का काढ़ा बनाने की प्रक्रिया ( procedure of preparing kaadha of Adusa) - अडूसे के 20 तोला (लगभग 230 ग्राम ) ताज़े पत्तों को केले के पत्ते पर रख कर गोल बड़ी गेंद की तरह बनाकर ऊपर से कपडा लपेटें और कपडे के ऊपर पीली मिटटी या गोबर मिटटी का लेप कर दें. फिर उस पर राख छिड़क कर सुखा दें. इस गेंद को आग पर रख कर तपायें. जब ऊपर की मिटटी लाल हो जाए तब आंच से हटाकर ऊपर से मिटटी , कपडा और केले के पत्ते अलग कर गरम अडूसे के बफाये हुए पत्तों को निकाल कर निचोड़ लें. यह अडूसे का काढ़ा तैयार हो गया.
दमा की बीमारी जब पुरानी हो जाती है तो कफ की अधिकता होने से रोगी को सांस लेने में परेशानी होती है . ऐसी अवस्था में अडूसा का काढ़ा अत्यंत उपयोगी आयुर्वेदिक दवाई है. इसका १० ml काढ़ा समान मात्रा में शहद में मिलाकर लेने से लाभ होता है. यदि कफ गाढ़ा होने से आसानी से बाहर नहीं आये तो एक से दो रत्ती काला नमक, अडूसा का काढ़ा और शहद दस दस ml मात्रा में मिलाकर लेने से लाभ होता है.
दमा की तरह खांसी के लिए भी अडूसा अमृत औषधि है. अडूसा का काढ़ा १० ml , शहद एक चम्मच और अदरक का रस एक चौथाई चम्मच मिलाकर सुबह शाम लेने से खांसी में लाभ होता है.